दरवाजा खोल रे भटूरिया
(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक थी बकरी। वह जंग में झोंपड़ा बनाकर रहती थी। उसके सात बच्चे थे। उनको वह ‘भटूरिया’ कहती थी।
बकरी रोज जंगल में चरने जाती थी। जाते समय बच्चों से कहती थी, “खबरदार, कोई दूसरा आए, तो दरवाजा मत खोला। मैं आकर धीमी आवाज में यों बोलूंगी:
दरवाजा खोल रे भटूरिया।
तुम्हारी मां आई रे भटूरिया।
तुमको दूध पिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको खाना खिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको पानी पिलाएगी रे भटूरिया।
जब मैं यह कहूं, तभी तुम दरवाजा खोलना, समझे।”
झोंपड़ी के पास ही पीपल का पेड़ था। बकरी उससे भी विनती करती, “पीपल भैया! मेरे इन बच्चों को संभालना। दूसरा कोई आए, तो इनको चेतावनी देते रहना।”
इतना कहकर बकरी रोज चरने चली जाती और जब शाम को लौटती, तो कहती:
दरवाजा खोल रे भटूरिया।
तुम्हारी मां आई रे भटूरिया।
तुमको दूध पिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको खाना खिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको पानी पिलाएगी रे भटूरिया।
एक दिन क बात है। बकरी रोज की तरह बच्चों को सबकुछ समझाकर, और पीपल से विनती करके, जंगल में चरने चली गई।
उस दिन वहां एक राक्षस आया। झोपड़ी के पिछवाड़े छिपकर उसने सारी बातें सुन ली। बकरी बच्चों को समझाकर जंगल में चरने चली गई।
कुछ देर के बाद राक्षस वहां पहुंचा। बकर की सी आवाज में उसने कहना शुरु किया:
दरवाजा खोल रे भटूरिया।
तुम्हारी मां आई रे भटूरिया।
तुमको दूध पिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको खाना खिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको पानी पिलाएगी रे भटूरिया।
यह जानकर कि मां आई होगी, जब बच्चे दरवाजा खोलने दौड़े, तो पीपल ने कहा:
“दरवाजा मत खोलना रे भटूरिया।
यही तो राक्षस है रे भटूरिया।
यह तुमको खा जाएगा रे भटूरिया।
दरवाजा मत खोलना रे भटूरिया।”
राक्षस को पीपल पर गुस्सा आ गया। उसने पीपल के पेउ़ को जड़मूल से उखाड़कर फेंक दिया। राक्षस बहुत बलवान था। एक लात मारकर उसने दरवाजा तोड़ डाला और अन्दर जाकर वह उन बच्चों को खा गया। बाद में दरवाजा बन्द करके आराम से सो गया।
इसी बीच बकरी आ पहुंची। दरवाजा खुलवाने के लिए बोली:
दरवाजा खोल रे भटूरिया।
तुम्हारी मां आई रे भटूरिया।
तुमको दूध पिलायेगी रे भटूरिया।
तुमको खाना खिलाएगी रे भटूरिया।
तुमको पानी पिलाएगी रे भटूरिया।
लेकिन झोंपड़ी में तो राक्षस सोया था। बकरी सोचने लगी, “बच्चे बोलते क्यों नहीं है, दरवाजा खोलते क्यों नहीं है?”
इसी बीच बकरी की निगाह पीपल के पेड़ पर पड़ी। पीपल को तो किसी ने उखाड़ डाला था!
बकरी बोली, “हाय, हाय! जरुर कोई आया है और मेरे बच्चों को खा गया है।”
जैसे ही बकरी ने दरवाजे को धक्का मारा, अन्दर से हो हो हो की आवाज आई। बकरी ने कहा, “हो न हो, यह तो कोई बड़ा राक्षस है। हे भगवान! जिसने मेरे बच्चों को खाया हो, उसका पेट फूट जाय।”
इतना कहते ही राक्षस का पेट फट गया, उसमें से बकरी के छोटे-छोटे बच्चे निकल पड़े। वे अपनी मां के पास पहुंचकर चप-चप करते हुए उसका दूध पीने लगे।
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