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नन्द सो कन्द

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नन्द सो कन्द

(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)

एक था ब्राह्मण और एक था बाबा। दोनों एक साथ यात्रा पर चले। गरमी का मौसम था। ऐन दोपहर का समय। दोनों को प्यास लगी, पर आसपास कहीं पानी था नहीं। भूख भी लगी थी। भूख-प्यास के बारे में सोचते-सोचते दोनों आगे बढ़े। रास्ते में एक बनिया मिला। बनिया भी भूखा-प्यासा था।

तीनों ने मिलकर तय किया कि चलें और कुछ मेहनत करें। जो भी मिल जाये, बराबरी से बाट लें। चलते-चलते रास्ते में गन्ने का एक खेत मिला। पहले ब्राह्मण खेत में पहुंचा और बोला, “नारायण, नारायण!”

गन्ने वाले किसान ने कहा, “पता नहीं, ये बम्मन-फम्मन कहां से चले आते हैं? यहां कोई भण्डार भरा है कि देते ही चले जायं!”

ब्राह्मण की टेर खाली गई और वह लौट आया।

बाद में बाबाजी खेत में पहुंचकर बोले, “अलख निरंजन! अलख निरंजन!” सुनकर किसान बोला, “अरे, इन बाबा-बैरागियों की तो कोई गिनती ही नहीं रही! किन-किन को दें और कितना दें!” बाबाजी भी खिसियाकर लौट आए। अब बनिये की बारी आई। बनिया गन्ने के खेत में पहुंचा और किसान ने पूछा, “कहिए, पटेलबाबा! गुड़ बिकाऊ है?”

किसान बोला, “आइए, सेठजी! कितना गुड़ लेना है?”

बनिये ने कहा, “यही कोई सौ मन ले लेंगे।”

किसान बोला, “आइए, आइए, हम भाव तय कर लें।”

किसान और सेठ ने मिलकर भाव तय कर लिया और गुड़ तुलवाने का दिन भी ठहरा लिया। सबकुछ निपटा देने के बाद बनिये ने विदा ली। लेकिन कुछ ही देर बाद बनिया लौटा और बोला, “पटेलबाबा! यह जो सौदा तय हुआ, इसका कुछ बयाना तो दो!”

पटेल ने बीस बढ़िया गन्ने उखाड़कर बनिये को सौंप दिए। अब बंटवारे का काम शुरू हुआ। सबको बराबर-बराबर तो मिलना ही चाहिए।

लेकिन बनिये ने एक तरकीब सोच ली थी। वह अपने-आप बांटने बैठा। कुछ सोचने का-सा दिखावा करके बनिये ने कहा, “सुनो भैया! शास्त्र में लिखा है कि आगे-आगे ब्राह्मण। इसलिए ब्राह्मण को तो हमें आगे का ही हिस्सा देना चाहिए।”

यह कहकर बीसों गन्नों का ऊपर वाला हिस्सा काटकर ब्राह्मण को सौंप दिया। ब्राह्मण ने अपना हिस्सा खुशी-खुशी ले लिया।

फिर बनिये ने कहा, “नन्द सो कन्द! शास्त्र में कहा है कि बनिये को बीच का हिस्सा देना चाहिए।”

यह कहकर गन्नों के बीच वाले टुकड़े बनिये ने रख लिये।

अब गन्नों का निचला हिस्सा बचा।

बनिये ने कहा, “दाढ़ी सो फन्द! शास्त्र का वचन है कि बाबाजी को तो जड़ वाला हिस्सा ही देना चाहिए।”

बनिये ने बीच का बढ़िया हिस्सा अपने लिए रख लिया और ब्राह्मण को और बाबाजी को भी खुश कर दिया।

सब खुश होकर अपने-अपने घर चले गए।

 

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