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मगर और ग्वाला

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मगर और ग्वाला

(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)

एक था मगर। एक दिन उसने सोचा कि चलूं और इस नदी में से निकल कर तालाब में पहुंच जाऊं। नदी तो सूखने लगी है।

रात होते ही मगर नदी में से निकला और उसने चलना शुरु कर दिया। आधा रास्ता पार कर पाया था कि सवेरा हो गया। मगर ने सोचा, “अब चलूंगा तो कोई देख लेगा और मार डालेगा।”

यह सोचकर वह एक गडढे के पास पड़ा रहा। पास ही से अपने गाय बैल को लकर एक ग्वाला निकला। मगर ने कहा, “ग्वाले भैया, ओ ग्वाले भैया! क्या तुम मुझे तालाब तक ले चलोगे?”

ग्वाला बोला, “नहीं भाई, नहीं! तुम तो मुझे ही खा जाओगे?”

मगर ने कहा, “मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा। तुम देख लेना। तुम मेरा भरोसा करो। मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा।”

ग्वाले ने मगर को उठा लिया। वह उसे तालाब के पास ले गया, और किनारे पर रख दिया।

मगर ने कहा, “भैया! मुझे पानी में छोउ़ दो। अभी तो न मेरे पैर भीगे हैं, न हाथ भीगे हैं। मैं तो बिलकुल कोरा हूं। तुम मुझे घुटने-घुटने तक पानी में ले चलो।”

ग्वाला मगर को घुटने तक गहरे पानी में ले गया।

मगर ने कहा, “भैया! अभी न मेरे पैर भीगे हैं, न हाथ भीगे हैं। मैं तो बिलकुल कोरा हँ। जरा कमर तक गहरे पानी में ले चलो।”

ग्वाला मगर को कमर तक गहरे पानी में ले गया।

मगर ने कहा, “भैया! अभी न मेरे पैर भीगे हैं, न हाथ भीगे है। मैं तो बिलकुल कोरा हूं। तुम मुझे गले तक गहरे पानी में ले चलो।”

ग्वाला मगर को गले तक गहरे पानी में ले गया।

फिर मगर ने ग्वाले सकहा, “अब तो मैं तुमको खा ही जाऊंगा! भला, मैं तुमको कैसे छोउ़ सकता हूं?”

ग्वाला बोला, “अरे, तुम यह क्या कर रहे हो? तुमको तपती धूप में से उठाकर मैं यहां ले आया। अब तुम मुझको ही खाना चाहते हो? मैंने तो तुम्हारे साथ भलाई की, और अब तुम मुझे खाना चाहते हो। यह तो कोई ठीक बात हुई नही।”

मगर ने कहा, “लेकिन अगर मैं तुमको न खाऊं, तो मर ही जाऊं”

ग्वाला बोला, “नहीं नही। आओ हम किसी से न्याय करवा लें।”

तभी एक गधा उधर से रेंकता-रेंकता निकला।

ग्वाले ने कहा, “गधे भैया! गधे भैया! तुम हमारा न्याय कर जाओ न! तुम तो समझदार जानवर लग रहे हो।”

गधा बोला, “कहो भाई, कहो! आपका क्या झगड़ा है?”

ग्वाले ने सारी बात कह सुनाई। सुनकर गधा बोला, “भैया! इस दुनिया में तो यही सब चलता रहता है। जब मैं जवान था, तो डण्डों की मार खाता रहता था। जब तक मैं बोझ ढोता रहा, मेरे मालिक ने मुझे रखा और मुझसे काम करवाया। अब जब मैं बूढ़ा हो गया हूं, तो मुझे दो डण्डे मारकर मालिक ने घर से बाहर निकाल दिया है। इस दुनिया का न्याय ही उलटा है। तुमने भला किया, तो अब तुम्हीं भुगतो। तुमसे किसने कहा था कि तुम मगर को उठाकर पानी में ले जाओ?” यह कहकर गधा चला गया।

मगर ने कहा, “बस अब मैं तुम्हें खाऊंगा।”

ग्वाला बोला, “उतावले मत बनो। हम किसी और से पूछ देखें। गधे ने जो कहा, क्या सब कोई वहीं कहेंगे? गधा तो दु:ख का मारा था। इसीलिए उसने ऐसी बातें कहीं।”

तभी उधर से एक बैल निकला। ग्वाले ने कहा, “बैल भैया, ओ, बैल भैया! जरा इधर आओ, और हमारा न्याय कर जाओ।”

बैल बोला, “कहो भाई, क्या बात है?”

ग्वाले ने सारी बात कह सुनाई।

बैल ने कहा, “भैया, इस दुनिया में तो यही सब होता रहा है। मेरी तरफ देखो। जबतक मेरी यह देह काम करती रही, मेरे मालिक ने मुझसे खूब मेहनत करवाई। लेकिन जब मैं थका, तो डण्डे मारकर घर से बाहर निकाल दिया। मैंने भला किया और अब बुरा भुगत रहा हूं। यह मगर जी कर रहा है, उसमें अचरज की बात ही क्या है? इस दुनिया में तो यही सब होता है।”

बैल चला गया।

मगर ने कहा, “अब मैं तुम्हें खा जाऊंगा।”

ग्वाला बोला, “भैया, जल्दी मत करो। हम और किसी से पूछकर देख लें।

इसी बीच उधर से एक सियार निकला।

ग्वाले ने कहा, “सियर भैया, ओ सियार भैया! जरा इधर आओ। देखो, यह कैसा उलटा न्याय है? यह मगर रास्ते में पड़ा पानी के लिए तड़प रहा था। वहां से मैं इसे तालाब तक लाया और इसको पानी में पहुंचाया। अब यह मुझे ही खा जाना चाहता है!

सियारने कहा, “यह तो भारी अन्याय कहा जायगा। तुम थोड़ा ठहरो, मैं तुम्हें अभी छुड़ाता हूं।”

यह कहकर सियार ने अपनी बोली में जोर की आवाज लगाई। उसकी आवाज सुनकर जंगल के सारे सियार वहां इकट्रठे हो गए। फिर सब सियारों ने मिलकर बात की बात में तालाब का सारा पानी अपने मुंह में भर-भरकर खाली कर डाला। मगर अधमरा सा हो गया और उसने ग्वाले को छोड़ दिया।

मगर ने कहा, “अरे सियार के बच्चे! तू याद रखना। मैं तुझे करौंदा खाते हुए पकडूंगा, गूलर खाते हुए पकडूंगा, हर हालत में पकडूंगा, तुझे तो मैं पकड़कर ही दम लूंगा। बचने नहीं दूंगा।”

सियार बोला, “हां रे हां, तुझसे जो भी हो सके तू कर लेना!”

दूसरे दिन सियार झील का पानी पीने आया कि उससे पहले मगर वहां पहुंचकर बिना हिले-डुले सो गया। सियार पानी पीने पहुंचा।

सियार ने कहा, “आज मेर मां ने कहा है कि ‘झीरें’ का पानी गन्दा होता है, इसलिए गड्रढे का ताजा पानी पीना अच्छा है।” यह कहकर सियार ने गडढे का पान पिया और वहां से चला गया।

मगर ने सोचा, “सियार तो पकड़ा नहीं जा सका, पर कोई चिन्ता की बात नहीं। कल गड़ढे पोखरे में ही जाकर बैठूंगा।”

दूसरे दिन जब सियार पानी पीने पहुंचा, तो उस गडढे में मगर दिखाई पड़ा। सियार समझ गया। उसने कहा, “आज तो मेरी मां ने कहा है कि

गड्रढे पोखर का पानी गन्द होता है, इसलिए ‘झीरे’ का ताजा पानी पीना ही अच्छा है।” इतना कहकर सियार ने ‘झीरे’ का पानी पिया।

मगर ने कहा, “पता नहीं, यह कमबख्त कब पकड़ में आवेगा?”

इसके बाद मगर करौंदे के पेड़ के नीचे छिपकर जा बैठा। जैसे ही सियार करौंदे खाने पहुंचा, मगर ने उसकी टांग पकड़ ली।

सियार बोला, “अच्छा ही हुआ कि मेरा पैर पकड़ने के बदले तुमने करौंदे की डाल पकड़ी है, नहीं तो आज मेरी जान ही निकल जाती।”

मगर ने सोचा, “अरे, यह तो गलती हो गई। इस कमबख्त की टांग पकड़ने की बदले मैंने डाल पकड़ ली।” यह कहकर जैसे ही मगर ने पैर छोड़कर डाल पकड़ी कि सियार दूर जाकर खड़ा हो गया और हा हा हा करता हुआ मगर को चिढ़ाने लगा।

इसके बाद मगर सियार की गुफा में जाकर बैठ गया और वहां हूं हूं-हूं बोलने लगा। सियार ने आकर कहा, “यहां रोज तो कोई बोलता नहीं है। आज यह कौन बोल रहा है? कोई अजनबी आकर बैठा लगता है। क्यों न मैं इसे जला ही डालूं?”

यह सोचकर सियार ने अपनी गुफा के अन्दर और बाहर कांटों क झाडियों का ढेर लगा दिया और उन्हें सुलगा दिया। उनके साथ बेचारा मगर भी जल गया।

 

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