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ठण्डा टपका

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ठण्डा टपका

(मजेदार पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)

एक बुढ़िया थी। वह एक झोपड़ी में रहती थी। बारिश के दिन थे। पानी बहुत बरसा। बुढ़िया की झोपड़ी में पानी चारों तरफ टपकने लगा और जगह-जगह पानी के गड्ढे भर गए।

एक दिन की बात है। रात को एक सिंह बुढ़िया की झोपड़ी के पिछवाड़े छिपकर खड़ा था। उसी समय बुढ़िया के पैर में ठोकर लगने से वह गड्ढे में गिर पड़ी। उसके कपड़े भीग गए। उसे ठण्ड लगने लगी। बुढ़िया बोली:
मैं शेर से नहीं डरती।
मैं बाघ से नहीं डरती।
मैं तो इस ठण्डे टपके से डरती हूं।

बुढ़िया की यह बात सुनकर सिंह सोचने लगा, ‘यह बुढ़िया शेर से नहीं डरती, बाघ से नहीं डरती और ठण्डे टपके से डरती है, तो वह ठण्डा टपका कैसा होगा?’

इतने में बुढ़िया की पीठ पर पानी की एक बड़ी-सी बूंद पड़ी। बुढ़िया परेशान होकर बोली:
मैं शेर से नहीं डरती।
मैं बाघ से नहीं डरती।
मैं तो इस ठण्डे टपके से डरती हूं।


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बुढ़िया के मुंह से फिर वही बात सुनकर सिंह घबराया और ठण्डे टपके से बचने के लिए अपनी पूंछ उठाकर जंगल की तरफ दौडा।

रास्ते में उसे बरगद का एक पेड़ मिला। एक बन्दर थर-थर कांपता हुआ बरगद की एक डाल पर बैठा था। नीचे, बरगद के तने की आड़ मे, रात में रास्ता भूला हुआ एक मुसाफिर लेटा था।

सिंह को दौड़ता हुआ देखकर बन्दर ने पूछा, “सिंह भैया! जंगल के राजा होकर भी आज आप थर-थर कांपते हुए किधर दौड़े जा रहे है?”

सिंह ने कहा, “भैया! मैं तो ठण्डे टपके से डर रहा हूं, एक बुढ़िया कह रही थी:
मैं शेर से नहीं डरती।
मैं बाघ से नहीं डरती।
मैं तो इस ठण्डे टपके से डरती हूं।

बुढ़िया की यह बात सुनकर मैं तो अपनी जान लेकर भाग खड़ा हुआ।”  सिंह की बात सुनकर बन्दर भी बहुत डर गया।

पेड़ के पास सिंह को खड़ा देखकर पेड़ के नीचे लेटे आदमी को डर लगा कि कहीं यह सिंह मुझे खा न ले। इसलिए उसने फुर्ती के साथ पेड़ पर चढ़ जाने का विचार किया। ज्योंही पेड़ की डाल पकड़कर वह पेड़ पर चढ़ने लगा कि, उसके एक हाथ में बन्दर की लटकती हुई ठण्डी- ठण्डी पूंछ आ गई। पूंछ के पकड़ते ही वह जोर से चौंका और यह मानकर कि ठण्डा टपका पहुंचा है, वह ज़ोर से चीखा और पेड़ पर से नीचे कूदा। आदमी के हाथ से पूंछ फिसल गई और एक धमाके की आवाज के साथ वह भी नीचे आ गिरा। जब बन्दर चीखा और आदमी धम्म-से नीचे गिरा, तो सिंह ने समझा कि ठण्डा टपका आ पहुंचा है, उसने बन्दर को पकड़ लिया है। यह देखकर सिंह बहुत घबरा उठा और रात के अंधेरे में दौड़ता-दौड़ता बहुत दूर निकल गया।

उसी रात एक किसान की बकरी खो गई थी। किसान उसे खोजता हुआ जंगल मे घूम रहा था। अंधेरे मे सिंह उसके साथ टकरा गया टकराते ही उसे डर लगा कि ठण्डा टपका आ पहुंचा है, उधर किसान ने समझा कि उसकी बकरी ही उससे टकराई है। सिंह ठण्डे टपके के डर से कांपता हुआ एक तरफ खड़ा हो गया। किसान को लगा कि पास में जो जानवर खड़ा है, वह उसकी बकरी ही है, इसलिए वह लपककर उसके पास जा पहुंचा, उसे गालियां दीं, उसके कान पकड़े और दो-चार घूसें जड़ दिए । सिंह ने सोचा, ‘अब तो मैं बेमौत मरा। मैं इस ठण्डे टपके के हाथों से छूट नहीं पाउँगा।’ डर-ही-डर में उसने मार खा ली और एक भीगी बिल्ली की तरह किसान के साथ चलने लगा।

घर पहुंचकर किसान ने बकरी के खूंटे से उसे बांध दिया।

सबेरे उठकर जब किसान की पत्नी बकरी को दुहने के लिये उसके पास पहुंची, तो उसने बकरी की जगह सिंह को बंधा पाया। उसने किसान से सारी बात कही और जब दोनों को भरोसा हो गया कि खूटें से बकरी नहीं, सिंह बंधा है, तो उन्होंने छुरी लेकर सिंह के गले की रस्सी दूर से काट दी, और फिर दोनों अपने घर में घुस गए।

सिंह ने मन-ही-मन सोचा, ‘अच्छा ही हुआ, जो ठण्डे टपके से छुटकारा मिल गया!’

 

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