तोतली रानियां
तोतली रानियां
(मजेदार पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक राजा था। उसके तीन रानियां थीं। राजा का नसीब कि तीनों तोतली थीं। राजा ने चौथी रानी से ब्याह करने की बात सोची। अच्छा घर देखकर राजा ने सगाई कर ली। कन्या की तारीफ़ करते हुए किसी ने राजा से कहा था कि कन्या अच्छी रूपवती है, और बहुत अच्छे स्वभाव की है। राजा के मन में ब्याह की खुशी समाती नहीं थी।
राजा विवाह करने निकला। कन्या तोतली थी, लेकिन कन्या के मां-बाप बड़े चंठ थे। उन्होंने कन्या को पहले से ही सिखा रखा था कि राजा कुछ भी क्यों न कहे, उसे एक शब्द भी बोलना नहीं है। राजा मन-ही-मन खुश हो रहे थे कि रानी मीठी-मीठी बातें करके उनका अच्छा मनोरंजन करेगी।
पर नई रानी तो गूंगी बनकर खड़ी रही। राजा ने बहुत चाहा कि रानी बोले, पर रानी क्यों बोलने लगी? उसने तो जैसे अपने होंठ सी लिए थे। राजा मन-ही-मन बोला, ‘यह तो कुएं में से निकलकर खाई में गिरने जैसा हुआ। तोतली को छोड़कर बोलती को लेने गये, तो यह गूंगी पुतली पल्ले पड़ी।’ राजा बहुत निराश हो गया।
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एक दिन यह चौथी रानी बाड़े में उपले लेने गई। वहां एक चींटे ने उसे इतने ज़ोर से काटा कि रानी एकदम, चीख उठी, “मां, मुझे चींटे ने ताटा है,चींटे ने।” राजा अपने झरोखे में बैठे थे। उन्होंने यह सुना। वह समझ गये कि चौथी रानी भी तोतली है।
राजा ने यह बात छिपाकर रखी थी कि उसकी चारों रानियां तोतली हैं। स्वयं अपनी ओर से राजा ने किसी को कुछ कहा नहीं था। लेकिन दीवान के मन में कुछ शंका पैदा हो गया। ठीक जानकारी पाने के लिए दीवान ने राजा से अकेले में पूछा, “राजाजी, गांव के लोग कहते हैं कि आपकी सब रानियां तोतली हैं। क्या यह सच है?”
राजा ने कहा, “दीवानजी! आपकी बात बिलकुल झूठी है।”
दीवान बोले, “आप मुझे भोजन के लिए न्यौते तो मैं साबित कर दूंगा।”
इस पर राजा ने दीवान को अपने महल में भोजन के लिए न्यौता। सब रानियों से कहा गया था कि कोई कुछ भी न बोले। राजा और दीवान दोनों आमने-सामने भोजन करने बैठे। तरह-तरह की रसोई बनाई गई थी। बड़ियां भी बनी हुई थीं।
दीवान ने बहुत कोशिश की कि रानियां कुछ बोलें, पर एक भी रानी बोली नहीं। आखिर दीवान थक गए, लेकिन इसी बीच उनको एक तरकीब सूझी। बड़ियां बहुत ही बढ़िया बनी थीं। बड़ी खाते-खाते दीवान ने उनकी खूब तारीफ शुरू कर दी। जब बड़ियों की बहुत तारीफ़ हुई, तो रानियां मन-ही-मन मारे खुशी के फूल उठीं। इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर दीवान ने पूछा, “ये बड़ियां किसने तली हैं?”
इस पर एक रानी बोली, “ये बइयां तो मैंने तइयां” (ये बड़ियां तो मैंने तली हैं)।
राजा के मना करने पर भी एक रानी बोल उठी ,थी, इसीलिए दूसरी ने सयानी बनकर उससे कहा, “मना तरने पर भी बोई त्यों?” (मना करने पर भी बोली क्यों)?
तीसरी रानी ने सोचा कि यह तो बहुत ही बुरा हुआ। राजा ने साफ़-साफ़ कहा था कि कोई बोलना मत, फिर भी ये दो बोल उठीं! उसके मन में थोड़ा गुस्सा भी आया, और कुछ अधिक सयानी बनकर उलाहने-भरी आवाज़ में उसने कहा, “ये बोई तो बोई, पर आप त्यों बोई?” (ये बोलीं तो बोलीं, पर आप क्यों बोलीं?)
चौथी रानी ने सोचा कि ये तीनों रानियां मूर्ख हैं। राजा ने मना किया था, फिर भी ये बोलीं और दीवानजी को सब पता चल गया। उसके मन में थोड़ा अभिमान भी आ गया। दीवानजी को उसके भेद का पता नही चला, यह सोचकर वह मन-ही-मन खुश हो उठी, और खुशी-ही-खुशी में वह बोली, “मै तो बोई बी नहीं और चाई बी नहीं!”(मैं तो बोली भी नहीं और चाली भी नहीं)। सुनकर राजा और दीवान दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।