काकी मुद्रा- छः महीने के अभ्यास से समस्त रोगों की शांति होती है- सिर्फ़ 2 से 3 मिनिट रोज करना है
काकी मुद्रा
छः महीने तक सिर्फ़ 2 से 3 मिनिट रोज करना है
काक मुद्रा में प्राणों का आयाम न करके प्राण वायु का पान किया जाता है |उस समय जीभ को कौवे की चोंच के समान अर्ध गोलाकार या नालीदार बना लिया जाता है ,अतः इसे काकी मुद्रा कहा जाता है |वृद्धावस्था को रोकने के लिए यह अत्यंत उपयोगी कहा गया है |इसके छः महीने के अभ्यास से समस्त रोगों की शांति होती है |सामान्य व्यक्ति को निरोगी बने रहने के लिए , सिर्फ़ 2 से 3 मिनिट रोज करना है | हालाँकि की रोग की विभीषिका के अनुसार अभ्यास की तीव्रता और समय को बढ़ाना की उचित है |
मुख के होठों का इस प्रकार संकोचन करें, जिससे कि कौए की चोंच के समान उसकी आकृति बन जाए (प्रायः मुख से सीटी बजाने में भी ऐसी आकृति बन जाती है|) इस प्रकार की आकृति बनाकर धीरे-धीरे वायु खींचकर पान करें| यह ध्यान रहे कि इस मुद्रा में नासिका-छिद्रों द्वारा वायु नहीं खींची जाती (नासिका द्वारा श्वास नहीं लिया जाता)|
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यह गुदा, उदर, कंठ और हृदय विकार आदि को दूर करने के लिए बहुत उपयोगी है| साधक की जठराग्नि तीव्र होती है और कोष्ठबद्धता आदि विकारों का शमन हो जाता है|.
अभ्यास की विधि:
दोनों अंगूठे के साथ दोनों नासा छिद्र बंद करे|आंखों को को खोले रखिए।
अपने होंठों के साथ एक चोंच बनाइए और धीरे-धीरे श्वास लें।
जब फेफड़े श्वास से भर जाते हैं,तो मुंह बंद करें और श्वास को भीतर रोके रखें|
सिर को नीचे की तरफ झुकाएे ताकि ठोड़ी गले को छू सके। इस अवस्था में जितनी देर सुख पूर्वक रह सकें रहें |
जितना संभव हो सके उतना ही रहें।
जब श्वास निकालने के लिए तैयार हो, तो गर्दन ऊपर उठाएं और नाक के माध्यम से निकालें।
शुरू में कम से कम दो से तीन मिनट तक अभ्यास करें।
जैसे ही आप और सक्षम हो जाते हैं, धीरे-धीरे अभ्यास का समय बढ़ाते हैं। काकी मुद्रा चेहरे को टोन करता है नाक के मार्ग को मजबूत करता है|
श्वसन प्रणाली को मजबूत करता है, ताज़ा करता है और त्वचा को फिर से जीवंत करता है|
त्वचा की कमी को कम करता है| चेहरे की चमक बढ़ जाती है| थायराइड और पैराथीरॉइड को प्रभावित करता है|
5 वें चक्र-विशुद्धि चक्र को साफ करता है।