Join Adsterra Banner By Dibhu

राजपूत किरण देवी से अकबर ने मांगी थी अपने प्राणों की भीख !!

0
(0)

राजपूत किरण देवी से अकबर ने मांगी थी अपने प्राणों की भीख !!

राजस्थान वीरों ओर योद्धाओं की धरती है। यहां के रेतीले धोरों का वीरता और शौर्य से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। इतिहास आज भी ऐसे वीरों और वीरांगनाओं की कहानी कहता है जिनके त्याग और बलिदान ने इस धरा की शान बढ़ाई।
ऐसी ही प्राचीन कहानियों में एक वीरांगना किरण देवी का जिक्र आता है। कहते हैं कि उसने शहंशाह अकबर को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। अकबर ने किरण देवी से प्राणों की भीख मांगी थी।

मर्दानी किरणदेवी और महाविलासी अकबर की दास्तां फरहाना ताज अकबर प्रतिवर्ष नौरोज के मेले का आयोजन करता था, जिसमें वह सुंदर युवतियों को खोजता था, और उनसे अपने शरीर की भूख शांत करता है।

एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था, कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरणदेवी पर जा पड़ी। वह किरणदेवी के रमणीय रूप पर मोहित हो गया। किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के छोटे भाई शक्तिसिंह की पुत्री थी और उसका विवाह बीकानेर के प्रसिद्ध राजपूत वंश में उत्पन्न पृथ्वीराज राठौर के साथ हुआ था। अकबर ने बाद में किरणदेवी का पता लगा लिया कि यह तो तुम्हारे ही गुलाम की बीबी है, तो उसने पृथ्वीराज राठौर को जंग पर भेज दिया और किरण देवी को अपनी दूतियों के द्वारा बहाने से महल में आने का निमंत्रण दिया। अब किरणदेवी पहुंची अकबर के महल में, तो स्वागत तो होना ही था और इन शब्दो में हुआ, ‘‘हम तुम्हें अपनी बेगम नाना चाहते हैं।’’ कहता हुआ अकबर आगे बढ़ा, तो किरणदेवी पीछे को हटी…अकबर आगे बढ़ते गया और किरणदेवी उल्टे पांव पीछे हटती गयी…लेकिन कब तक हटती बेचारी पीछे को…उसकी कमर दीवार से जा ली।

‘‘बचकर कहाँ जाओगी,’’ अकबर मुस्कुराया, ‘‘ऐसा मौका फिर कब मिलेगा, तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोंपड़ा में नहीं हमारा ही महल में है’’
‘‘हे भगवान, ’’ किरणदेवी ने मन-ही-मन में सोचा, ‘‘इस राक्षस से अपनी इज्जत आबरू कैसे बचाउ?’’
‘‘हे धरती माता, किसी म्लेच्छ के हाथों अपवित्र होने से पहले मुझे सीता की तरह अपनी गोद में ले लो।’’ व्यथा से कहते हुए उसकी आँखों से अश्रूधारा बहने लगी और निसहाय बनी धरती की ओर देखने लगी, तभी उसकी नजर कालीन पर पड़ी। उसने कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया। उसके ऐसा करते ही अकबर जो कालीन पर चल रहा था, पैर उलझने पर वह पीछे को सरपट गिर पड़ गया, ‘‘या अल्लाह!’’

उसके इतना कहते ही किरणदेवी को संभलने का मौका मिल गया और वह उछलकर अकबर की छाती पर जा बैठी और अपनी आंगी से कटार निकालकर उसे अकबर की गर्दन पर रखकर बोली, ‘‘अब बोलो शहंशाह, तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? किसी स्त्री से अपनी हवश मिटाने की या कुछ ओर?’’
एकांत महल में गर्दन से सटी कटार को और क्रोध में दहाडती किरणदेवी को देखकर अकबर भयभीत हो गया। एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है:

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।

‘‘मुझे माफ कर दो दुर्गा माता,’’ मुगल सम्राट अकबर गिड़गिड़ाया, ‘‘तुम निश्चय ही दुर्गा हो, कोई साधारण नारी नहीं, मैं तुमसे प्राणों की भीख माँगता हूँ। यही मैं मर गया तो यह देश अनाथ हो जाएगा।’’
‘‘ओह!’’ किरणदेवी बोली, ‘‘देश अनाथ हो जाएगा, जब इस देश में म्लेच्छ आक्रांता नहीं आए थे, तब क्या इसके सिर पर किसी के आशीष का हाथ नहीं था?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ अकबर फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘पर आज देश की ऐसी स्थिति है कि मुझे कुछ हो गया तो यह बर्बाद हो जाएगा।’’
‘‘अरे मूर्ख देश को बर्बाद तो तुम कर रहे हो, तुम्हारे जाने से तो यह आबाद हो जाएगा। महाराणा जैसे बहुत हैं, अभी यहाँ स्वतंत्रता के उपासक।’’
‘‘हाँ हैं,’’ वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आर्य कभी किसी का नमक खाकर नमक हरामी नहीं करते।’’

‘‘नमक हमारी,’’ किरणदेवी बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘तुम्हारे पति ने रामायण पर हाथ रखकर मरते समय तक वफादारी का कसम खायी थी और तुमने भी प्रीतिभोज में मेरे यहाँ भोजन किया था, फिर यदि तुम मेरी हत्या कर दोगी तो क्या यह विश्वासघात या नमकहरामी नहीं होगी।’’
‘‘विश्वासघाती से विश्वासघात करना कोई अधर्म नहीं राजन,’’ किरणदेवी फिर गरजी, ‘‘तुम कौनसे दूध के धुले हो?’’

‘‘हाँ मैं दूध का धुला हुआ नहीं, पर मुझे क्षमा कर दो, हिन्दुओं के धर्म के दस लक्षणों मेें क्षमा भी एक है, इसलिए तुम्हें तुम्हारे धर्म की कसम, मुझे अपनी गौ समझकर क्षमा कर दो।’’

‘‘पापी अपनी तुलना हमारी पवित्र गौ से मत करो,’’ फिर वह थोड़ी सी नरम पड़ गयी, ‘‘यदि तुम आज अपनी मौत और मेरी कटारी के बीच में धर्म और गाय को नहीं लाते तो मैं सचमुच तुम्हें मारकर धरती का भार हल्का कर देती।’’ फिर चेतावनी देते हुए बोली, ‘‘आज भले ही सारा भारत तुम्हारे पांवों पर शीश झुकाता हो? किंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश आज भी अपना सिर उचा किए खड़ा है। मैं उसी राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है। हम राजपूत रमणियाँ अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकती हैं और मार भी सकती हैं। यदि तु आज बचना चाहता है तो अपनी माँ और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा कर कि आगे से नौरोज मेला नहीं लगाएगा और किसी महिला की इज्जत नहीं लूटेगा। यदि तुझे यह स्वीकार नहीं है, तो मैं अभी तेरे प्राण ले लूंगी, भले ही तूने हिन्दू धर्म और गौ की दुहाई दी हो। मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है।’’
अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ कि तू मृत्यु के पाश में जकड़ा जा चुका है। जीवन और मौत का फासला मिट गया था। उसने माँ की कसम खाकर किरणदेवी की बात को माँ लिया, ‘‘मुझे मेरी माँ की सौगंध, मैं आज से संसार की सब स्त्राी जाति को अपनी बेटी समझूँगा और किसी भी स्त्राी के सामने आते ही मेरा सिर झुका जाएगा, भले ही कोई नवजात कन्या भी हो और कुरान-ए-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि आज ही नौरोज मेला बंद कराने का फरमान जारी कर दूँगा।’’

वीर पतिव्रता किरणदेवी ने दया करके अकबर को छोड़ दिया और तुरन्त अपने महल में लौट आयी। इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर न केवल अपनी इज्जत की रक्षा की, अपित भविष्य में नारियों को उसकी वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया। और उसके बाद वास्तव में नौरोज मेला बंद हो गया। अकबर जैसे सम्राट को भी मेला बंद कर देने के लिए विवश कर देने वाली इस वीरांगना का साहस प्रशंसनीय है।

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः