श्री राम चालीसा-2
(संत श्री सुन्दर दास रचित)
॥दोहा॥
गणपति चरण सरोज गहि । चरणोदक धरि भाल॥
लिखौं विमल रामावली । सुमिरि अंजनीलाल ॥
राम चरित वर्णन करौं । रामहिं हृदय मनाई ॥
मदन कदन रत राखि सिर । मन कहँ ताप मिटाई॥
॥चौपाई॥
राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै ॥१॥
राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै ॥२॥
रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं॥३॥
राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ॥४॥
राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै ॥५॥
राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत ॥६॥
रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत ॥७॥
राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ॥८॥
राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै ॥९॥
राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन ॥१०॥
रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै ॥११॥
राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ॥१२॥
राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा ॥१३॥
राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें ॥१४॥
रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें ॥१५॥
राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ॥१६॥
रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें ॥१७॥
राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । ममता त्यागि एक रस जानिहें ॥१८॥
राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें ॥१९॥
राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ॥२०॥
रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों ॥२१॥
राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा ॥२२॥
राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता ॥२३॥
राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ॥२४॥
राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा ॥२५॥
रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत ॥२६॥
राम नाम लेही ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा ॥२७॥
राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ॥२८॥
रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु ॥२९॥
राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट ॥३०॥
राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर ॥३१॥
रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ॥३२॥
राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा ॥३३॥
राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता ॥३४॥
रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला ॥३५॥
राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ॥३६॥
राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ ॥३७॥
रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा ॥३८॥
रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा ॥३९॥
रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ॥४०॥
॥दोहा॥
राम नाम नित भजहु मन । रातिहुँ दिन चित लाई ॥
ममता मत्सर मलिनता । मनस्ताप मिटि जाई ॥
राम का तिथि बुध रोहिणी । रामावली किया भास ॥
मान सहस्त्र भजु दृग समेत । मगसर सुन्दरदास ॥
॥इतिश्री प्रभु श्रीराम चालीसा समाप्त॥
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