Writer: अरविन्द रॉय
निमेज ओझा का इतिहास बताता है के सारे ब्राह्मण एक है|
प्रसिद्ध भूमिहार ओझा उपनाम वाले श्री डी पी ओझा, पूर्व-डीजीपी::
मिथिला से दो मैथिल चक्रपाणि झा और शूलपाणि झा निमेज में आए थे,उन्हीं में से एक के वंशज निमेज के ओझा कहाते हैं और दूसरे के वंशज उन्हीं लोगों के महाब्राह्मण। उनके पुरोहित पराशर गोत्र ओझा हैं जो सुरगुनियाँ कहाते हैं। यह सुरगुनियाँ मैथिल सुरगने से बना मालूम होता है। सुरगुने भी पराशर गोत्र ही हैं।
गाजीपुर के नारायणपुर आदि ग्रामवासी किनवार नामधारी भूमिहार ब्राह्मणों के पुरोहित अपने को नगवा कहते हैं। उससे प्रकट है कि किनवार, नोनहुलिया, कुढ़नियाँ (आजमगढ़ के सर्यूपार आदि के भूमिहार ब्राह्मण) नगवा, वीरपुर के वहियार उपाध्याय और निमेज के ओझा ये सब एक ही के वंश में हुए और मूल में एक ही हैं। इन सबों का गोत्र कश्यप है इसमें तो संदेह नहीं।
उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के हल्दी क्षेत्र के राजा का साम्राज्य बिहार तक फैला हुआ था| बिहियां की लड़ाई में राजा खेत रहे| रानी अपनी बांदी के साथ गंगा पार कर बलिया के हल्दी राज्य में आ गईं | रानी गर्भवती थीं; चक्रपाणि ओझा ने उन्हें आश्रय दिया| चारो तरफ खबर फैल गई कि राजा का बीज सुरक्षित है|बिहार और उत्तर प्रदेश के राजपूत लामबन्द होने लगे|
तभी चैरो बंश के राजा ने हल्दी पर चढ़ाई कर दी| चक्रपाणि ओझा व शूलपाणि ओझा की कूटनीति से चैरो वंश के राजा व उसकी सेना को सोमरस पिला धुत कर दिया| उसके बाद लामबन्द राजपूतों ने भयंकर मार काट मचाई| चैरो बंश का नाश हो गया| नियत समय पर रानी ने एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया| जब तक बच्चा बड़ा नहीं हो गया तब तक उसके संरक्षक के तौर पर शूलपाणि ओझा ने राज काज सम्भाला|
जब राजकुमार बड़े हुए तब उनका राज्याभिषेक हुआ| राजकुमार ने खुश हो उस क्षेत्र के पूरे ओझा वंश को 52 गांव दान में दे दिए| ये लोग 52 गांव के ओझा कहलाए | तभी से उस क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित हुई, “पहले ओझा, तब राजा ” | 52 गाँव के ओझा कालरात्रि देवी (दुर्गा का एक रूप) की पूजा करते हैं| इनका गोत्र कश्यप होता है| यहाँ से निकलकर रामा ओझा पिथौरागढ़ पहुँचे थे , जो अस्कोट के राजा के यहाँ राज गुरु रहे औरआज पिथौरागढ़ में ओझा लोग सम्मानित ब्राह्मण हैं
छपारा और मुजफ्फरपुर के कुछ गांवों में ओझा सरनेम भूमिहारो के हैं। : श्री डी पी ओझा, पूर्व-डीजीपी
उत्तराखंड में ओझा जयानंद और विजयानंद नाम के दो चचेरे भाई (ओझा और झा) दरभंगा (मगध-बिहार) से श्रीनगर,गढ़वाल में आये। वो मैथली ब्राह्मण थे। उन्हें “ओनी” में जागिर दी गई थी, इसलिए ओझा और झा (दो अलग गोत्र – कश्यप और भारद्वाज) को एक जाति ओनियाल में बनी, जो बाद में उनियाल बन गई। माता भगवती सभी यूनियाल,ओजा,झा ब्राह्मणों के कुलदेवी हैं|
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