तुलसीदास के दोहे-9: मित्रता
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।तिन्हहि विलोकत पातक भारी।निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख रज मेरू समाना। जो...
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।तिन्हहि विलोकत पातक भारी।निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख रज मेरू समाना। जो...
सो कलिकाल कठिन उरगारी।पाप परायन सब नरनारी। कलियुग का समय बहुतकठिन है।इसमें सब स्त्री पुरूस पाप में लिप्त रहते हैं।...
जद्यपि जग दारून दुख नाना।सब तें कठिन जाति अवमाना। इस संसार में अनेक भयानक दुख हैं किन्तु सब से कठिन...
संगति शब्द ही दो शब्दों से मिलकर बना है सम अर्थात बराबर , गति अर्थात परिणति या परिणाम। इसका सीधा...
बन बहु विशम मोह मद माना।नदी कुतर्क भयंकर नाना। मोह घमंड और प्रतिश्ठा बीहर जंगल और कुतर्क भयावह नदि हैं।...