राजा गोपीचंद ने दिये माँ को तीन वचन
राजा गोपीचंद का मन गुरु गोरखनाथ के उपदेश सुनकर साँसारिकता उदासीन हो गया |माँ से अनुमति लेकर राजा गोपीचंद साधु बन गये |
साधु बनने के बहुत दिन बाद एक दिन वह अपने राज्य लोटे और भिक्षापात्र लेकर अपने महल में पहुँच आवाज़ लगाई ,”अलखनिरँजन !”
आवाज़ सुन कर उन की माँ भिक्षा लेकर महल के बाहर आई |
गोपीचंद ने अपना भिक्षापात्र माँ के आगे कर दिया और कहा माँ मुझे भिक्षा दो |
माँ ने भिक्षापात्र में चावल के तीन दाने डाल दिये |
गोपीचंद ने जब इसका कारण पूंछा तो माँ बोली, “तुम्हारी माँ हूँ |चावल के तीन दाने मेरे तीन वचन हैं | तुम्हे इनका पालन करना है |
पहला वचन -तुम जहाँ भी रहो वेसे ही सुरक्षित रहो जेसे पहले मेरे घर रहते थे !
दूसरा -जब खाओ तो बेसाहीं स्वादिष्ट भोजन खाओ जेसा महल में खाते थे !
तीसरा वचन -उसी प्रकार की निँद्रा लो जेसी राजमहल में अपने आरामदेह पलंग पर लेते थे !”
गोपीचंद इन तीन वचनों के रहस्य को नही समझ सके और कहने लगे माँ अब मैं राजा नही रहा तो केसे सुरक्षित रह सकता हूँ?
माँ ने कहा, “तुम्हे सैनिकों की आवश्यकता नही !तुम्हे क्रोध ,लोभ ,माया ,घमंड ,कपट जेसे शत्रु घेरेँगे ,इन्हे पराजित करने के लिये सतसँगत ,अच्छे विचार ,अच्छा आचरण रखना होगा !”
गोपीचंद ने फ़िर पूंछा, “वन में मुझे कौन अच्छा भोजन पकायेगा |”
माँ ने कहा, “जब ध्यान और योग में तुम्हारा पूरा दिन व्यतीत होगा तब तुम्हे तेज भूख लगेगी तब उस स्थिति में जो भी भोजन उपलब्ध होगा वह स्वाद वाला होगा | और रही सो ने की बात तो कड़ी मेहनत से थककर चूर होने के बाद जहाँ भी तुम लेटोगे नींद तुम्हे घेर ही लेगी |”
माँ के तीन वचनों ने गोपीचंद की आँखे खोल दी !जिसके बाद वह फ़िर से ज्ञान की तलाश में निकल गये !
आदेश आदेश श्री गुरुजी को आदेश
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