प्राचीन गुरुकुलों में पढ़ाई जाने वाली विद्यायें
प्राचीन गुरुकुलों में वर्ण व्यवस्था और सामाजिक आवश्यकता नुसार चार तरह की विद्यायें सिखाई पढ़ाई जाती थीं| किसी भी पदार्थ के वास्ताविक स्वरूप का ज्ञान जिस साधन के द्वारा होता है , या जिससे पदार्थ का यथार्थ रूप प्रकट होता है उसे विद्या कहते हैं , उसके विपरीत आचरण अविद्या कहलाती है ।
विद्या के चार क्षेत्र हैं :-
- आन्वीक्षकि
- त्रयी
- वार्ता
- दण्डनीति
(1.) आन्वीक्षकि :-
पूर्ण ब्रह्म विद्या जिसमें वैदिक दर्शन, उपनिषद् आदि का समावेष है जो जड़-चेतन, आत्मा-अनात्मा के विवेचन को तर्क प्रणाली से प्रस्तुत करते हैं ।
(2) त्रयी :-
हर प्रकार के कर्मकाण्ड जिनमें यज्ञादि,उपासना, अध्यात्म ज्ञान, विवाहकर्म,उपनयन, अश्वमेध, नरमेध यज्ञादि सबका समावेष हो ।
(3) वार्ता :-
जिसमें जीवनोभूत विद्याओं का समावेष हो जैसे कृषि , उद्योग, वाणिज्य, पशुपालन , सेवा, शिल्प आदि ।
(4) दण्डनीति :-
प्रजापालन, आन्तर और बाह्य कारणों से राष्ट्र की रक्षा, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, राजनीति शास्त्र , से सब प्रकार के अस्त्रों शस्त्रों का संचय ताकि राष्ट्र द्रोहीयों को मृत्यु के मुख में शीघ्र ही धकेला जा सके ।
इन चार क्षेत्रों में से हर मनुष्य अपने योग्य विद्या चुन कर किसी भी वर्ण को प्राप्त हो सकता था , यही महर्षि मनु की वर्ण व्यवस्था का मूलभूत आधार था । इसी के आधार पर आर्यों ने विश्व पर चक्रवर्ती शासन किया था । यही वो विद्या है जो गुरुकुलों में पढ़ाई जाती रही है ।
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