1679 ईसवी । औरंगज़ेब ने समस्त वैष्णव मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया ।
मथुरा के श्रीनाथ जी मंदिर के पुजारी श्री कृष्ण की मूर्ति लेकर राजस्थान की ओर निकल गए ।
जयपुर व जोधपुर के राजाओं ने औरंगजेब से बैर लेना उचित नहीं समझा । पुजारी मेवाड़ की पुण्यभूमि पर महाराणा राजसिंह के पास गए ।महाराणा राजसिंह के पास गए ।
(वीर शिरोमणि महाराण प्रताप के पौत्र थे और उन्ही की भांति प्रचंड वीर थे। मुग़ल शासक औरंगजेब भी उनसे भय खाता था।)
एक क्षण के विलम्ब के बिना राज सिंह ने यह कहा –
“ जब तक मेरे एक लाख राजपूतों का सर नहीं कट जाए , आलमगीर भगवान की मूर्ति को हाथ नहीं लगा सकता । आपको मेवाड़ में जो स्थान जंचे चुन लीजिए , मैं स्वयं आकर मूर्ति स्थापित करूँगा । “
मेवाड़ के ग्राम सिहाड़ में श्रीनाथ जी की प्रतिष्ठा धूमधाम से हुई , जिसमें स्वयं महाराणा राज सिंह पधारे ।
आज जो प्रसिद्ध नाथद्वारा तीर्थस्थल है , वह सिहाड़ ग्राम ही है ।
औरंगजेब ने राज सिंह जी को पत्र लिखा कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को शरण दी तो युद्ध होगा ।
राज सिंह जी ने कोई उत्तर ना दिया । चुपचाप मारवाड़ के वीर दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में राठौडों व मेवाड़ के हिन्दुओं की सामूहिक सेना का गठन करने लगे ।
1679-80 ईसवीं । दो वर्षों तक मुग़ल मेवाड़ संघर्ष चला ।कहते हैं कि दो बार राज सिंह जी ने औरंगजेब को गिरफ़्तार करके दया करके छोड़ दिया ।
यह इस बात से सत्यापित है कि 1680 में पूर्ण रूप से पराजित औरंगजेब अपना काला मुँह लेकर सर्वथा के लिए राजस्थान से चला गया ।
महाराणा राज सिंह ने मुगलो के विरुद्ध निर्णायक युद्ध लड़ा था। फिर कोई मुगलो ने कभी साहस नहीं किया साहस नही किया चितौड़ पर हमले का।
यद्यपि महाराणा राज सिंह जी की असामयिक मृत्यु के बाद उनके पुत्र जय सिंह जी ने औरंगजेब से फिर कई युद्ध किये और उसे कई बार हराया। हारकर औरंगजेब ने महाराण जय सिंह जी से संधि कर ली।
महाराणा राज सिंह जी के वीर सरदार दुर्गादास राठौड़ की स्वामिभक्ति , कर्तव्य परायणता और वीरता के किस्से आज भी राजस्थान के जान मानस में प्रचलित हैं। औरंगजेब की इस हार को हमारे वामपंथी इसिहासकारों ने कभी हमें बताना उचित नहीं समझा।
नाथद्वारा हम में से बहुत लोग गए हैं ।
हमें क्यूँ नहीं पता कि यह विग्रह मूल रूप से मथुरा के हैं ?
किसके कारण पुजारियों को पलायन करना पड़ा ?
किसने अपना सर्वस्व दाँव पर लगाकर श्रीनाथ जी की रक्षा की ?
किसी ने राज सिंह जी का नाम भी सुना है ?
हमें क्यूँ नहीं पता कि पचास सहस्त्र (हज़ार) मेवाड़ व मारवाड़ के हिन्दुओं ने शीश का बलिदान देकर मुग़लों से श्रीनाथ जी की रक्षा की थी ?
इस अभागे देश के इतिहासकार तो ठग हैं ही , पर हम हिन्दुओं को क्या हुआ है ?
भोगविलास में हम अपने देवताओं, अपने महिमाशाली पुरखों के नाम तक विस्मृत कर चुके हैं !
अब नाथद्वारा जाएँ तो इन महान पूर्वजों की स्मृति में दो अश्रु बहाएँ व आकाश की ओर मुँह करके इन महान आत्माओं का धन्यवाद दें जिनके कारण हम आज हिन्दू हैं ।
महाराणा प्रताप के प्रपौत्र: राणा राजसिंह का इतिहास ( Rana Rajsingh History):
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Note: विक्रम आदित्य सोलंकी ने भी औरंगज़ेब को सामने से हराया था और उसके बाद उसे बंदी बना लिया था तब औरंगज़ेब ने उनके पैरो में अपनी पगड़ी रख कर क्षमा मांगी थी और तब उन्होंने उसे जीवन दान दिया था।
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