Guest Writer: प्रस्तुति : अरविन्द रॉय
छुआछूत का मुख्य कारण मांसाहार शाकाहार से है जिसका इस देश के राजनीतिक दल गलत मतलब निकालते है
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों में वैसे तो कई घटक हैं लेकिन 06 घर सबसे ज्यादा कुलीन माने जाते हैं क्योंकि उनके पूर्वज सर्वाधिक वर्जनाओं का पालन करते थे। इन 06 घरों को खटकुल के नाम से जाना जाता रहा है।
संयम और वर्जना में अपने से पीछे सजातियों के घर खाना पीना तो दूर ये एक दूसरे से भोजन के लिए चूल्हे की आग तक नहीं ले सकते थे। जाहिर है कि बाद में इसी परहेज ने छुआछूत का रूप ले लिया लेकिन यह तय है कि इसकी शुरूआत कमजोर जातियों को अपमानित करने के तौर पर नहीं मानी जा सकती। अगर ऐसा होता तो कनौजिया ब्राह्मण आपस में एक दूसरे से ऐसा बर्ताव क्यों करते।
यह एक तरह से पवित्रता की तपस्या से बंधे रहने जैसी प्रतिज्ञा थी। जिसमें आपस में भी एक दूसरे को बख्शने की गुंजाइश नहीं थी।
बंगाल में मुखोपाध्याय, चट्टोपाध्याय, वंद्धोपाध्याय, गंगोपाध्याय आदि ब्राह्मण भी कान्यकुब्ज क्षेत्र से गये उत्तर भारत के ब्राह्मण थे।
कथा है कि बंगाल के एक समय के राजा बल्लम सेन ने एक बड़ा यज्ञ कराया था जिसके लिए कुलीन व शास्त्रों में पारंगत ब्राह्मण तलाशे गये। बंगाल व मिथिला के ब्राह्मण अपने महायज्ञ में उन्होंने इसलिए नहीं बुलाये क्योंकि उनके यहां मछली खाई जाती थी। इस मामले में कट्टर वर्जनाओं के हामी होने के कारण राजा बल्लम सेन को कान्यकुब्ज ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ लगे। इसलिए उन्होंने कान्यकुब्ज प्रदेश से इनको बुलवा लिया।
बाद में ये ब्राह्मण स्थायी रूप से जब बंगाल में बस गये तो इन्हीं लोगों को चटर्जी, बनर्जी, मुखर्जी आदि कहा जाने लगा।
कान्यकुब्ज प्रदेश में तीन जिले गंगा के इस पार के और तीन उस पार के शामिल है। ये जिले हैं फरूर्खाबाद, कानपुर, फतेहपुर, हरदोई, रायबरेली व उन्नाव।
कान्यकुब्ज प्रदेश में रहने वाले किसी भी जाति के लोग कनौजिया कहलाये जाते रहे हैं न कि सिर्फ ब्राह्मण। राजा जयचन्द्र कान्यकुब्ज प्रदेश के थे इसलिए उनक वंशजों की उपाधि कान्यकुब्जेश्वर रहती है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के अनुज संतबख्श सिंह भी इस उपाधि को धारण करते थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह को यह उपाधि इसलिए नहीं मिली कि उन्हें राजा मान्डा ने गोद ले लिया था और मान्डा रियासत का कान्यकुब्ज प्रदेश से कोई संबंध नहीं था।
कान्यकुब्जों में 20 बिस्वा के ब्राह्मण सबसे ऊचे माने जाते हैं। बिस्वा का संबंध जमीन से है लेकिन कान्यकुब्जों में यह शुद्धता को नापने का पैमाना है। शुद्धता की कसौटी पर 24 कैरेट का साबित करने का मतलब है सबसे ज्यादा प्रतिबंधित जीवन जीने में सक्षम होना।
अरविन्द रॉय
Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,
Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com