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ज्ञानी से ज्ञानी मिले दोहा|Gyani Ko Gyani Mile

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संत कबीर के द्वारा कथित ज्ञानी से ज्ञानी मिले वाला दोहा हमें दो रूपों में मिलता है। भावार्थ और सार एक ही जैसा होने के बावजूद इन दोनों के शब्दों में भिन्नता है। प्रस्तुत है दोनों दोहों के अर्थ एवं व्याख्या-

ज्ञानी से ज्ञानी मिले -पहला दोहा

ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट।
ज्ञानी अज्ञानी मिलै, हौवे माथा कूट।।

अर्थ: जब दो ज्ञानी (जानकर) लोग मिलते हैं तो ज्ञानवर्धक बाते करते हैं। जिससे ज्ञान बढ़ता है और लोगों को आनंद मिलता है।
जबकि यदि ज्ञानी को कोई अज्ञानी व्यक्ति मिल जाए (जो अपने हठ के आगे ज्ञान की बात सुनने को ही न तैयार हो) तो केवल तर्क वितर्क में केवल विवाद ही होता है। जो किसी के लिए लाभप्रद नहीं होता।

ज्ञानी से ज्ञानी मिले- दूसरा दोहा

ज्ञानी से ज्ञानी मिले करे ज्ञान की बात।
गदहा से गदहा मिले होय रे लातम लात।।


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अर्थ: जब दो ज्ञानी आपस में मिलते हैं तो ज्ञान की बाते करते हैं। (जिससे सबका भला होता है और वातावरण सुखमय होता है। ) और वहीँ जब दो मूर्ख व्यक्ति मिलते हैं हैं तो आपस में घमासान होता है।

यहाँ पर संत कबीर जी ने मूर्ख व्यक्तियों के लिए गदहा शब्द का प्रयोग किया है। कबीर जी वाराणसी के रहने वाले थे और उस क्षेत्र में गदहा शब्द गधे के लिए प्रयोग किया जाता है। खासकर मूढ़मति लोगों के लिए भी गदहा एक अपशब्द की तरह से प्रयुक्त होता है। जगजाहिर है की गधे एक दूसरे पर लातों का प्रयोग (Kick) करते हैं। गधे अपने पिछले दोनों पैरों से एक साथ प्रहार करते हैं जिसे दुल्लती (Dulatti) कहा जाता है। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति भी साधारण वाद विवाद सुलझाने के लिए मार पीट पर उतर आते हैं। इसी को कबीर जी ने लातम लात कहा है।

संभवतः किन्ही दो व्यक्तियों को आपसे में व्यर्थ की बात पर लड़ते-झगड़ते देख उनके मन में यह बात उठी होगी और उन्होंने इसे इस कालजयी दोहे में रच दिया। संत कबीर ने ज्ञान पर और भी बड़े अच्छे दोहे कहे हैं। इन्हे भी देखिये।

कठिन शब्दार्थ

  • माथा – सर, मस्तक
  • कूट – फूटना , टूटना
  • लात – पैर
  • गदहा – गधा
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