भज मन राम चरण सुखदाई का अर्थ: हे मन तू सुख देने वाले प्रभु श्री राम के चरणों का भजन कर।
Bhajman Ram charan sukhdai meaning: O mind, worship the feet of Prabhu Shri Ram, which is the bestows of all kind of happiness.
भजमन राम चरण सुखदाई भजन(Bhajman Ram Charan Sukhdayi)
भजमन राम चरण सुखदाई,भजमन राम चरण सुखदाई ॥
जेहि चरनन से निकसी सुरसरि,संकर जटा समाई ।
जटासंकरी नाम परयो है, त्रिभुवन तारन आई ॥
Bhajman Ram Charan Sukhdayi, Bhajman Ram Charan Sukhdayi ॥
Jehi Charanan se Nikasi Sursari Sankar Jata Samai ।
Jatasankari Naam Parayo Hai, Tribhuvan Taran Aai ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi… ॥
अर्थ: हे मन तू सुख देने वाले प्रभु श्री राम के चरणों का भजन कर। जिन चरणों से देवनदी गंगा निकली और श्री शिव जी के जटाओं में स्थान ग्रहण किया। शिव जी की जटाओं में स्थान पाने के कारण तीनो लोकों को तारने वाली माँ गंगा का एक नाम जटाशंकरी पड़ा।
भजमन राम चरण सुखदाई, भजमन राम चरण सुखदाई ॥
जिन चरनन की चरनपादुका, भरत रह्यो लव लाई।
सोइ चरन केवट धोइ लीने, तब हरि नाव चलाई/चढ़ाई ॥
Jin Charananki Charanpaduka Bharat Rahyo Lav Lai ।
Soi Charan Kevat Dhoi Leene Tab Hari Naav Chalai ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi… ॥
अर्थ: जिन चरणों की चरणपादुका (खड़ाऊं) भरत जी ने अथाह प्रेम किया (राजसिंहासन पर प्रभु श्री राम के खड़ाऊं रखकर स्वयं राज व्यवस्था देखते रहे)। उन्ही चरणों को निषाद राज केवट ने जब प्रेमपूर्वक धो लिए तब ही उसने नाव चलाई।
भजमन राम चरण सुखदाई, भजमन राम चरण सुखदाई ॥
सोइ चरन संत जन सेवत, सदा रहत सुखदाई ।
सोइ चरन गौतमऋषि-नारी,परसि परमपद पाई ॥
Soi Charan Sant Jan Sevat Sada Rahat Sukhdai ।
Soi Charan Gautamrishi-nari Parsi Parampad Pai ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi… ॥
अर्थ: जिन चरणों की संतजन सेवा करते हुए सदा सुखी रहते हैं। उन्ही चरणों के स्पर्श से (छूने पर) से गौतम ऋषि की पत्नी माता अहिल्या देवी को (शिला रूप से मुक्ति पाकर) भगवान के धाम में परम पद प्राप्त हुआ।
भजमन राम चरण सुखदाई,भजमन राम चरण सुखदाई ॥
दंडकबन प्रभु पावन कीन्हो,ऋषियन त्रास मिटाई ।
सोई प्रभु त्रिलोकके स्वामी,कनक मृगा सँग धाई ॥
Dandakaban Prabhu Pawan Keenho Rishiyan Traas Mitai ।
Soi Prabhu Trilokake Swami Kanak Mriga Sang Dhai ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi… ॥
अर्थ: उन्ही चरणों से प्रभु के दण्डक वन को पवित्र किया, (राक्षसों से वन प्रदेश को मुक्त कर) ऋषियों का दुःख दूर किया। वही तीनो लोकों के स्वामी भगवान् राम (माया से रचित) सोने के हिरन के पीछे भागे।
भजमन राम चरण सुखदाई, भजमन राम चरण सुखदाई ॥
कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल, तिन जय छत्र फिराई/धराई ।
रिपु को अनुज बिभीषन निसिचर, परसत लंका पाई ॥
Kapi Sugreev Bandhu Bhay-byakul Tin Jay Chhatr Phirai ।
Ripu Ko Anuj Bibhishan Nisichar Parsat Lanka Pai ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi… ॥
अर्थ: प्रभु के उन्ही चरणों के प्रताप से भाई (बाली) के भय से पीड़ित सुग्रीव को विजय का छत्र पहनाया (किष्किंधा का राजा बनाया )। उन्ही चरणों के स्पर्श से अपने शत्रु (रावण) के छोटे भाई विभीषण ने भी लंका का राज्य पाया।।
भजमन राम चरण सुखदाई, भजमन राम चरण सुखदाई ॥
सिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक, सेष सहस मुख गाई ।
तुलसीदास मारुत-सुत की प्रभु, निज मुख करत बड़ाई ॥
Siv Sanakadik Aru Brahmadik Sesh Sahas Mukh Gai ।
Tulsidaas Marut-sutaki Prabhu Nij Mukh Karat Badai ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi… ॥
अर्थ: प्रभु के उन्ही चरणों के प्रताप की महिमा भगवान् शिव, सनकादिक ऋषि (सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार) और भगवान् शेषनाग जी भी अपने हजार मुख से गाते रहते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि वायुपुत्र श्री हनुमान जी की प्रभु स्वयं अपने मुख से प्रशंसा करते हैं।
भजमन राम चरण सुखदाई, भजमन राम चरण सुखदाई ॥
॥ Bhajman Ram Charan Sukhdayi,Bhajman Ram Charan Sukhdayi॥
अर्थ:हे मन तू सभी प्रकार के सुख देने वाले प्रभु श्री राम के चरणों का भजन कर।हे मन तू सभी प्रकार के सुख देने वाले प्रभु श्री राम के चरणों का भजन कर।
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