कैंची धाम कैसे अस्तित्व में आया
लोगों के मुताबिक बाबा 1940 के आस-पास उत्तराखंड के प्रवास पर थे।
भवाली से कुछ किलोमीटर आगे जाने के बाद बाबा करोरी एक छोटी सी घाटी के पास रुके और सड़क किनारे बनी पैरापट पर बैठ गए।
सामने पहाड़ी पर दिखाई दिए एक आदमी को उन्होंने आवाज दी, “पूरन…ओ पूरन…पूरन यहां आओ।”
पूरन नीचे आया और कम्बल लपेटे अजनबी से अपना नाम सुनकर अचंभित रह गया।
अजनबी व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा, “अचरज मत कर हम मैं तुझे पिछले कई जन्मों से जानता हूं। मेरा नाम बाबा नीम करोरी हैं। हमें भूख लगी है. हमारे भोजन की व्यवस्था कर।”
पूरन ने घर जाकर अपनी मां से बताया कि नीचे पैरापट पर बाबा नीम करोरी बैठे हैं और भोजन मांग रहे हैं। घर में दाल-रोटी बनी थी। पूरन की मां ने वही परोस दी।
बाबा ने भोजन के बाद पूरन से गांव के दो-तीन लोगों को बुलाकर लाने को कहा। बाबा उन सब को लेकर नदी के पार जंगल में गये और उनसे एक जगह खोदने को कहा।
बाबा ने कहा, “पत्थर को खोदो। यहां गुफा है, गुफा में धूनी है।”
अचरज में पड़े लोगों ने जब उस जगह को खोदा तो, ऐसा लगा कि, जैसे गुफा में धूनी किसी ने अभी ही लगाई हो। धुनी के पास चिमटा भी गड़ा था। पूरन और गांव वाले हैरान थे कि उन्हें यहां पूरा जीवन हो गया और किसी को इस गुफा के बारे में पता नहीं था।
‘पत्थरों के नीचे गुफा, धूनी और चिमटा, हवन कुण्ड की जानकारी किसी साधारण व्यक्ति को तो हो नहीं सकती। कंबल लपेटे यह कोई आम इंसान नहीं है।
लोग यही सोच रहे थे कि बाबा बोल पड़े, कि हमारे पास कोई चमत्कार-वमत्कार नहीं है। चलो अब यहां से यहां हनुमान बैठेगा।
बाबा ने नदी से पानी मंगवाया और स्थान का शुद्धिकरण किया। साथ ही वहां कुटिया नुमा जगह बना दी। कुछ दिन बाद बाबा ने पूरन को बताया कि यह सोमवारी बाबा की तपस्थली है। इसका पुनरुद्धार करना है। यही कुटिया आज कैंचीधाम के रूप में विख्यात है।
-अनिल सुधांशु
Trivia: Kainchi is a term used for two sharp hairpin bends of the motor road in local dialect hence the name. It has NO relation with scissors.
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