पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाने वाला गणगौर व्रत
शिव- पार्वती के अटूट बंधन और प्रेम का प्रतीक है गणगौर
पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है गणगौर व्रत
खुशियों भरा वैवाहिक जीवन और पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाना गणगौर व्रत आज है। यह त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है। वहीं, सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखती हैं। गणगौर के दिन घरों में कई तरह के पकवान बनते हैं और पूरा माहौल लोक गीतों से गूंज उठता है। सही मायने में यह पर्व आस्थार, प्रेम, त्याहग, समर्पण और सौहार्द का प्रतीक है।
गणगौर कब मनाया जाता है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लौ तृतीया का दिन गणगौर के रूप में मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह पर्व हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आता है।
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गणगौर का महत्व
गणगौर राजस्थावन और मध्य प्रदेश का लोकपर्व है। इन राज्यों में हिन्दू धर्म को मानने वाली महिलाओं के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। यह सांस्कृतिक विरासत, प्रेम और आस्था का जीवंत उदाहरण है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। कहते हैं कि इस व्रत को रखने से पति की उम्र लंबी होती है और कुंवारी कन्याओं मनपसंद जीवन साथी मिलता है।
कैसे मनाया जाता है गणगौर
गणगौर होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक यानी 17 दिनों तक चलने वाला त्योहार है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा (मां पार्वती) होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद भगवान शिव (इसर जी) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। फिर चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।
होली के दूसरे दिन यानी कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्यावएं मिट्टी के शिव जी यानी की गण एवं माता पार्वती यानी की गौर बनाकर प्रतिदिन पूजन करती हैं।
इन 17 दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठ कर दूब और फूल चुन कर लाती हैं। उन दूबों से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। फिर चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं। दूसरे दिन यानी कि चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
गणगौरों के पूजा स्थल गणगौर का पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल माना जाता है। विसर्जन के दिन सुहागिनें सोलह श्रृंगार करती हैं और दोपहर तक व्रत रखती हैं। महिलाएं नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं।

