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श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय 5(५): भक्त चमन जी रचित

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(1)

श्री दुर्गा स्तुति पाठ-पांचवाअध्याय

पांचवा आध्याय

ऋषि राज कहने लगे, सुन राजन मन लाय |
दुर्गा पाठ का कहता हूं, पांचवा मैं अध्याय |

     एक समय शुम्भ निशुम्भ दो हुए दैत्य बलवान |
     जिनके भय से कांपता था यह सारा जहान |

इन्द्र आदि को जीत कर लिया सिहासन छीन |
खोकर ताज और तख्त को हुए देवता दीन |

     देव लोक को छोड़ कर भागे जान बचायें |
     जंगल जंगल फिर रहे संकट से घबराये |

तभी याद आया उन्हें देवी का वरदान |
याद करोगे जब मुझे करूंगी मई कल्याण |

     तभी देवताओं ने स्तुति करी |
     खड़े हो गये हाथ जोड़े सभी |

लगे कहने ऐ मैय्या उपकार कर |
तू आ जल्दी दैत्यों का संहार कर |

     प्रक्रति महा देवी भद्रा है तू |
     तू ही गौरी धात्री व रुद्रा है तू |

तू है चन्द्र रूपा तू सुखदायनी |
     है बेअन्त रूप और कई नाम है |
     तेरा नाम जपते सुबह शाम है |

तू भक्तों कई कीर्ति तू सत्कार है |
तू विष्णु कई माया तू संसार है |
तू ही अपने दासों कई रखवार है |

     तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
     नमस्कार है मां नमस्कार है |

तू हर प्राणी में चेतन आधार है |
तू ही बुद्धि मन तू ही अहंकार है |
तू ही निद्रा बन देती दीदार है |

     तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
     नमस्कार है मां नमस्कार है |

तू ही छाया बनके है छाई हुई |
क्षुधा रूप सब में समाई हुई |
तेरी शक्ति का सब में विस्तार है |

     तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
     नमस्कार है मां नमस्कार है |

     है तृष्णा तू ही क्षमा रूप है |
     यह ज्योति तुम्हारा ही स्वरूप है |
     तेरी लज्जा से जग शर्मसार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही शांति बनके धीरज धराये |
     तू ही श्रद्धा बनके यह भक्ति बढ़ावे |
     तू ही कान्ति तू ही चमत्कार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही लक्ष्मी बन के भण्डार भरती |
     तू ही व्रती बनके कल्याण करती |
     तेरा स्म्रति रूप अवतार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही तुष्ठी बनी तन में विख्यात है |
     तू हर प्राणी की तात और मात है |
     दया बन समाई तू दातार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही भ्रान्ति भ्रम उपजा रही |
     अधिष्टात्री  तू ही कहला रही |
     तू चेतन निराकार साकार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     तू ही शक्ति है ज्वाला प्रचण्ड है |
     तुझे पूजता सारा ब्रह्माण्ड है |
     तू ही ऋद्धि सिद्धि का भण्डार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     मुझे ऐसा भक्ति का वरदान दो |
     'चमन' का भी उद्धार कल्याण हो |
     तू दुखिया अनाथों की गमखार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मां नमस्कार है |

     नमस्कार स्तोत्र को जो पढ़े |
     भवानी सभी कष्ट उसके हरे |
     'चमन' हर जगह वह मददगार है |

तुझे मां करोड़ों नमस्कार है |
नमस्कार है मान नमस्कार है |

दोहा:- राजा से बोले ऋषि सुन देवन की पुकार |
          जगदम्बे आई वहां रूप पार्वती धार |
         गंगा-जल में जब किया भगवती ने स्नान |
         देवों से कहने लगी किसका करते हो ध्यान |

इतना कहते ही शिवा हुई प्रकट तत्काल |
पार्वती के अंश से धारा रूप विशाला |

         शिवा ने कहा मुझ को हैं ध्या रहे |
         यह सब स्तुति मेरी ही गा रहे |

हैं शुम्भ और निशुम्भ के डराये हुए |
शरण में हमारी हैं आए हुए |

         शिवा अंश से बन गई अम्बिका |
         जो बाकी रही वह बनी कलिका |

धरे शैल पुत्री ने यह दोनों रूप |
बनी एक सुन्दर बानी एक कुरूप |

         महांकाली जग में विचारने लगी |
         और अम्बे हिमालय पे रहने लगी |

तभी चंड और मुण्ड आये वहां |
विचरती पहाड़ों में अम्बे जहां |

         अति रूप सुन्दर न देखा गया |
          निरख रूप मोह दिल में पैदा हुआ |

कहा जा के फिर शुम्भ महाराज जी |
की देखि है इक सुन्दरी आज ही |

        चढ़ी सिंह पर सैर करती हुई |
         वह हर मन में ममता को भरती हुई |

चलो आंखो से देख लो भाल लो |
रत्न है त्रिलोकी का संभाल लो |
सभी सुख चाहे घर में मौजूद है |
मगर सुन्दरी बिन वो बेसूद है |

         वह बलवान राजा है किस काम का |
         न पाया जो साथी यह आराम का |

करो उससे शादी तो जानेंगे हम |
महलों में लाओ तो मानेंगे हम |

         यह सुनकर वचन शुम्भ का दिल बढ़ा |
         महा असुर सुग्रीव से यूं कहा |

जाओ देवी से जाके जल्दी कहो |
की पत्नी बनो महलों में आ रहो |

         तभी दूत प्रणाम करके चला |
         हिमालय पे जा भगवती से कहा |

मुझे भेजा है असुर महाराज ने |
अति योद्धा दुनिया के सरताज ने |

         वह कहता है दुनियां का मालिक हूं मैं |
         इस त्रिलोकी का प्रतिपालक हूं मैं |

रत्न हैं सभी मेरे अधिकार में |
मैं ही शक्तिशाली हूं संसार में |

         सभी देवता सर झुकायें मुझे |
         सभी विपता अपनी सुनायें मुझे |

अति सुन्दर तुम स्त्री रत्न हो |
हो क्यों नष्ट करती सुन्दरताई को |

         बनो मेरी रानी तो सुख पाओगी |
         न भट्कोगी बन में न दुःख पाओगी |

जवानी में जीना वो किस काम का |
मिला न विषय सुख जो आराम का |

         जो पत्नी बनोगी तो अपनाऊंगा |
         मैं जान अपनी कुर्बान कर जाउंगा |

 दोहा:- दूत  की बातों पर दिया देवी ने न ध्यान |
      कहा डांट कर सुन अरे मुर्ख खोले के कान |

सुना मैंने वह दैत्य बलवान है |
वह दुनियां में शहजोर धनवान है |

         सभी देवता हैं उस से हारे हुए |
         छुपे फिरते हैं डर के मारे हुए |

यह माना की रत्नों का मालिक है वो |
सुना यह भी स्राष्टि का पालक है वो |

         मगर मैंने भी एक पर्ण ठाना है |
         तभी न असुर का हुकम माना है |

जिसे जग में बलवान पाऊँगी मैं |
उसे कन्त अपना बनाऊंगी मैं |

         जो है शुम्भ ताकत के अभिमान में |
         तो भेजो उसे आये मैदान में |

दोहा:- कहा दूत ने सुन्दरी न कर यूं अभिमान |
     शुम्भ निशुम्भ है दोनों ही, योद्धा अति बलवान |

उन से लड़कर आज तक जीत सका न कोय |
तू झूठे अभिमान में काहे जीवन खोय |

         अम्बा बोली दूत से बन्द करो उपदेश |
         जाओ शुम्भ निशुम्भ को दो मेरा सन्देश |

'चमन' कहे दैत्य जो, वह फिर कहना आए |
युद्ध की प्रतिज्ञा मेरी, देना सब समझाए |

प्रस्तुति सौजन्य-श्री संजय मेहता जी, लुधियाना

भक्त श्री चमन जी के दुर्गा स्तुति के १३ अध्याय

श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -१ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -२ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -३ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -४ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -५ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -६ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -७ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -८ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -९ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -१० : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -११ : भक्त चमन जी विरचित
श्री दुर्गा स्तुति पाठ अध्याय -१२ : भक्त चमन जी विरचित


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।। जय माँ अम्बे भगवती ।।

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