श्री दुर्गा स्तुति अध्याय 4(४):भक्त चमन जी रचित|Durga Stuti Adhyay 4
श्री दुर्गा स्तुति पाठ-चौथा अध्याय-Durga Stuti 4 Adhyay in Hindi
चौथा अध्याय आदिशक्ति ने जब किया महिषासुर का नास। सभी देवता आ गये तब माता के पास। मुख प्रसन्न से माता के चरणों में सीस झुकाये। करने लगे स्तुति मीठे बैन सुनायें। हम तेरे ही गुण गातें हैं, चरणों मैं सीस झुकाते हैं। तेरे जे कार मनाते हैं, जै जै अम्बे जै जगदम्बें। जै दुर्गा आदि भवानी की, जै जै शक्ति महरानी की। जै अभयदान वरदानी की , जै अष्टभुजी कल्याणी की। तुम महा तेज शक्तिशाली। तुम ही हो अदभुत बलवाली। तू रण चण्डी तू महाकाली। तुम दूसरों की हो रखवाली-हम तेरे ही गुण गाते हैं। तुम दुर्गा बन कर तारती हों। चण्डी बन दुष्ट संहारती हों। कलि रण में ललकारती हों। शक्ति तुम बिगड़ी संवारती हो-हम तेरे ही गुण गाते हैं। हर दिल में वास तुम्हारा हैं। तेरा ही जगत पसारा हैं। तुमने ही अपनी शक्ति सें। बलवान दैत्य को मारा है-हम तेरे ही गुण गाते हैं। ब्रह्म विष्णु महोदेव बड़े। तेरे दर पर कर जोड़ खड़ें। वर पाने को चरणों में पड़ें। शक्ति पा जा दैत्यों से लड़े-हम तेरे ही गुण गातें हैं। हर विधा का है ज्ञान तुझें। अपनी शक्ति पर मान तुझें। हर इक की है पहचान तुझें। हर दास का माता ध्यान तुझे-हम तेरे ही गुण गाते हैं। ब्रह्म जब दर पर आते हैं। वेदों का पाठ सुनते हैं। विष्णु जी चंवर झुलाते है। शिव शम्भु नाद बजाते है-हम तेरे ही गुण गाते हैं। तू भद्रकाली है कहलाई। तू पारवती बन कर आई। दुनियां के पालन करने को। तू आदि शक्ति है महामाई-हम तेरे ही गुण गाते है। भूखों को अन्न खिलाये तू। भक्तों के कष्ट मिटाये तू। तू दयावान दाती मेरी। हर मन की आस पुजाये तू-हम तेरे ही गुण गाते है। निर्धन के तू भण्डार भरे। तू पतितों का उद्धार करें। तू अपनी भक्ति दे करके। भव सागर से भी पर करे-हम तेरे ही गुण गाते है। है त्रिलोकी में वास तेरा। हर जीव है मैय्या दास तेरा। गुणगाता जमीं आकाश तेरा। हमको भी है विशवास तेरा-हम तेरे ही गुण गाते है। दुनियां के कष्ट मिटा माता। हर एक की आस पूजा माता। हम और नहीं कुछ चाहते हैं। बस अपना दस बना माता-हम तेरे ही गुण गाते है। तू दया करे तो मान भी हो। दुनिया की कुछ पहचान भी हो। भक्ति से पैदा ज्ञान भी हो। तू कृपा करे कल्याण भी हो-हम तेरे ही गुण गाते है। देवों ने प्रेम पुकार करी। मां अम्बे झट प्रसन्न हुई। तब मधुर वाणी से कहने लगी। मांगो वरदान जो मन भए। देवों ने कहा तब हर्षाये। जब भी हम प्रेम से याद करें। मां देना दर्शन दिखलाये-हम तेरे ही गुण गाते है। तब भद्रकाली यह बोल उठी। तुम करोगे याद मुझे जब ही। मैं संकट दूर करूं तब ही। इतना कह अंतरध्यान हुई। तब 'चमन' ख़ुशी हो सब ने कहा। जय जगतारणी भवाणी मां-हम तेरे ही गुण गाते है। वेदों ने पार न पाया है। कैसी शक्ति महामाया है। लिखते लिखते यह दुर्गा पाठ। मेरा भी मन हर्षाया है। नादान 'चमन' पे दया करो। शारदा माता सिर हाथ धरो। जो पाठ प्रेम से पढ़ जाये। मुंह मांगा माता वर पाये। सुख सम्पति उसके घर आये। हर समय तुम्हारे गुण गाये। उसके दुःख दर्द मिटा देना। दर्शन अपना दिखला देना-हम तेरे ही गुण गाते है। जैकार स्तोत्र यह पढ़े जो मन चित लाये। भगवती माता उसके सब देगी कष्ट मिटाए। माता के मन्दिर में जा सात बार पढ़े जोए। शक्ति के वरदान से सिद्ध कामना होए। 'चमन' निरन्तर जो पढ़े पाठ एक ही बार। सदा भवानी सुख दे भरती रहे भण्डार। इस स्तोत्र को प्रेम से जो भी पढ़े सुनाए। हर संकट में भगवती होवे आन सहाए। मान इज्जत सुख सम्पति मिले 'चमन' भरपूर। दुर्गा पाठी से कभी रहे न मैय्या दूर। जगदम्बे महाकालिका चण्डी आदि भवानी।
प्रस्तुति सौजन्य-श्री संजय मेहता जी
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।। जय माँ अम्बे भगवती ।।