चेतसिंह घाट- काशी के घाट
घाट एवं घाट स्थित किले का निर्माण पूर्व काशी नरेश बलवंत सिंह के द्वारा कराया गया था। घाट का नामकरण महाराजा प्रभु नारायण सिंह द्वारा अपने पूर्वज चेत नारायण सिंह के नाम पर किया गया। पूर्व में यह घाट शिवाला घाट का हिस्सा था। ऐतिहासिक दृष्टि से काशी के महत्वपूर्ण घाटों में चेत सिंह घाट का विशिष्ट स्थान है। सन 1781 मे वारेन हेस्टिंग व चेतसिंह का प्रसिद्ध युद्ध इसी घाट पर स्थित किले में हुआ था। जिसमें चेतसिंह पराजित हो गए और किले पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
19वीं शताब्दी के अंत में महाराज प्रभु नारायण सिंह ने अंग्रेजों से पुनः यह किला प्राप्त कर लिया और किले के उत्तरी भाग को नागा साधुओं को दान कर दिया। घाट पर 18 वीं शताब्दी के दो शिव मंदिर है।
बीसवीं शताब्दी के पूर्व घाट सांस्कृतिक कार्यक्रमों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था चैत्र के प्रथम मंगलवार से प्रारंभ साप्ताहिक प्रसिद्ध ‘बुढ़वा मंगल मेला‘ काशी के इसी घाट पर संपन्न होता था। अपरिहार्य कारणों से विगत कुछ वर्षों से स्थानीय सांस्कृतिक संस्थाएं दशाश्वमेध घाट पर आयोजित करती हैं। अधिकतर स्थानीय लोग ही इस घाट पर स्नान करते हैं 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया।


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