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कम्युनिस्ट चीन के ऊपर भारतीयों का आज़ादी पूर्व उपकार

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1938 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया । जापान के विमान जब तक चीन पर बम वर्षा और करते गोली बारी करते रहते। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चीनी जापान से मुकाबला करने की कोशिश कर रहा था।

1938 मे चीन के पास डाक्टरो की पर्याप्त टीम तक नहीं थी जो जापानी हमले में घायल सैनिकों की चिकित्सा कर सके ?

कम्युनिस्ट जनरल Zhu De ने 1938 मे कांग्रेस के बड़े नेता जवाहर लाल नेहरू से अनुरोध किया कि ” घायल चीनी सैनिकों की चिकित्सा में कुछ सहायता दल भेजे “

चूंकि भारत उसे समय स्वतंत्र नहीं था और स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर रहा था ! ऐसे में सैद्धांतिक आधार पर संघर्षरत भारत , स्वतंत्रता के लिये संघर्षरत दूसरे संघर्षरत देश को सहायता दल भेजने का अनुरोध स्वीकार किया ।
1938 मे भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाषचंद्र बोस थे ।
नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय जनता से अपील किया कि चीन की सहायता के लिये भारतीय जनता आर्थिक व कार्मिक सहयोग दे ।
इस अपील पर भारतीय जनता द्वारा चीन की सहायता के लिए चंदा दिया गया ! उस समय 22000 रुपये एकत्रित हुये ! और नेता जी की अपील पर पांच डाक्टर चीन को सहायता मिशन पर जाने के लिये तैयार हुये ।

इन पांच डाक्टरो में नाम थे ..

  1. Dr. M. Atal ..इलाहाबाद ( प्रयागराज से )
  2. Dr. M. Cholkar ( नागपुर से )
  3. Dr. Dwarka Kotnis ( शोलापुर ,महाराष्ट्र से )
  4. Dr. B.K. .Bashu ( कोलकाता से )
  5. Dr. Debesh Mukharjee ( कोलकाता से )

उस समय नेता जी सुबाष चंद्र बोस ने एक लेख भी लिखा जिसमें नेता जी ने चीन पर आक्रमण के लिए जापान की आलोचना भी किया ।

( परंतु बाद में भारतीय स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ने के लिये नेता जी जर्मनी व जापान की सहायता लेना भी स्वीकार कर लिया था )

1939 मे ..भारतीय चिकित्सको का दल समुद्र के रास्ते चीन पहुंचा ! पहले वुहान पहुंचा फिर वहा से यूनान प्रांत पहुंचा जहां चीन की क्रांतिकारी सेना का बेस था ।

कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ ज़ेदोंग , Zhu De सहित बड़े नेताओ ने इस दल का स्वागत किया ।
और चिकित्सको का दल कम्युनिस्ट पार्टी क्रांतिकारी सैनिकों की चिकित्सा में जुट गया ।

बाद में डाक्टर कोर्टनिस के अतिरिक्त अन्य चिकित्सक भारत वापस आ गये थे। परंतु डाक्टर कोटनिस चीन में ही रहे । डाक्टर कोटनिस चीन की एक नर्स से विवाह कर लिया और उससे एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया चिनहुआ ।
डाक्टर कोटनिस चीन में 72 घंटे तक लगातार चीन के कम्युनिस्ट सैनिकों की चिकित्सा करते । लगातार आपरेशन करते ।
एक बार जापानी सैना ने डाक्टर कोटनिस को बंदी भी बना लिया था । परंतु डाक्टर जापानी सैनिकों की कैद से बच गये ।
लगातार काम करते करते …डाक्टर कोटनिस स्वयं बीमार पड़ गये । उन्हें दौरे भी पड़ने लगे । अंत में 1942 मे डाक्टर कोटनिस का चीन में ही देहांत हो गया । और उन्हें चीन में ही दफनाया गया ।

डाक्टरो कोटनिस की मृत्यु के लगभग सात वर्ष बाद (1949 ) उनकी विधवा ने पुनः विवाह कर लिया चीन के ही किसी व्यक्ति से ! डाक्टर कोटनिस का पुत्र चिनहुअ या तिनहुआ मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था ..परंतु दुर्भाग्यवश 1967 से मे संभवतः चिकित्सीय लापरवाही के कारण उसकी मृत्यु हो गयी ।

भारतीय योगदान का प्रतिफल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने किस प्रकार दिया ..?

1962 में ही ..जब भारत स्वतंत्र होकर अपने पुन:निर्माण का प्रयत्न कर रहा था ..तो चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया । भारत चीन के इस विश्वासघात से स्तब्ध हो गया ?
हमने सुना है कि इजराइल आज तक हाईफा मे भारतीय सैनिकों के योगदान का अहसान मानता हैं ..परंतु चीन ??
संभवतः चीन जिस विचारधारा को लेकर चल रहा है ..उसमे रिश्ते-नाते ..मानवीय संवेदना का कोई स्थान नहीं है..?
मानवता से परे ..रिशतों को मान्यता तक न देने वाले अहसानफरामोश से देश से बातचीत से मामला सुलझ सकता है ??
शक्ति को संचित करते रहना ही ..एकमात्र विकल्प है ??


लेख सौजन्य: कुमार_पवन

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