हलुए की चाह
श्री इफ्तिखार हुसैन आइ.ए.एस., रजिस्टार कोआपरेटिव सोसाइटीज, उत्तर प्रदेश एक बार नैनीताल से बाबा के दर्शन के लिए कैंची आश्रम जाने के लिए तैयार हुए।
उन्होंने बाबा को अर्पित करने के लिए कुछ आम खरीदे, जिनमें एक आम कुछ भिन्न आकार का था जो उन्हें बहुत पसन्द आया। इस आम को देखकर इनके मन में विचार आया कि यदि बाबा यही आम उनको प्रसाद के रूप में दे दें तो वे पहुँचे हुए फकीर माने जा सकते हैं।
वे गाड़ी में बैठकर आश्रम को रवाना हुए। यह बात उनकी जानकारी में थी कि बाबा सभी को पूरी सब्जी का प्रसाद खिलाते हैं, इस कारण उनके मन में विचार आया कि यदि वे गरम-गरम हलुआ खिला दें तो बात पक्की हो जायेगी कि बाबा सिद्ध पुरुष हैं।
श्री इफ्तिखार जी के आश्रम पहुँचने के पूर्व ही बाबा हलुआ बनाने का आदेश दे चुके थे। जब इफ्तिखार साहब कैंची पहुँचे तो बाबा उस समय अपनी कुटिया में बन्द थे। थोड़ी देर बाद जब दरवाजा खुला तो सभी लोगों ने कुटिया में प्रवेश किया।
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इफ्तिखार साहब ने ज्योंहि सब आम बाबा के चरणों में रखे, बाबा मुस्कराये और तुरन्त उनकी पसन्द का आम उनके हाथों में रख दिया। यह देखकर वे चकरा गये और बोल उठे, “हुजूर ! मुझसे बड़ी गलती हुई।” महाराज ने तुरन्त गरम-गरम हलुआ मंगाकर उन्हें खाने को दिया। अब तो कहना ही क्या था, इफ्तिखार साहब की आँखों से आँसू बह निकले और वे विनीत भाव से अपनी गलतियों की माफी माँगने लगे।
इस घटना का उल्लेख सम्वत् 2035 की स्मृति सुधा के पृष्ठ 41 में हुआ है।
श्री बाबा नीम करौली जी महाराज सर्वज्ञता
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अलौकिक यथार्थ से
मुद्रलेखन श्री प्रेम तिवारी द्वारा