एक नहीं बहुत से कारण थे एक हुतात्मा के हाथो दुसरे महात्मा का वध होने के लिये।
सही इतिहास जानिए भारतवासियों और स्वयं ही तय कीजिये की श्री नाथूराम जी का अपराध कितना निजी था और कितना राष्ट्र हित में…………..आप ही तय कीजिये
आपको जरा सा भी ये लगता है कि नाथूराम जी का निर्णय राष्ट्रहित के लिए था स्वयं के लिए नहीं तो अवश्य कृतज्ञता के दो श्रद्धा सुमन अर्पित कीजिये उस व्यक्ति के लिए जिसने ये जानते हुए भी यह पाप अपने सर लिया कि उसकी मरने के पश्चात भी कितनी भर्त्सना होगी।
गाँधी जी के मरने के बाद दंगो में ३५०० से भी अधिक ब्राह्मणों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। एक अहिंसावादी के लिए कि गयी ये हिंसा से भी उस समय कि सरकार का मन न भरा तो श्री नाथूराम जी के द्वारा न्यायालय में दिए गए उनके अंतिम भाषण पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। उनके भाषण को सही से सुनाने के बाद आपको भी अवश्य लगेगा कि नाथूराम जी का उद्देश्य देश हित और हिन्दू हित ही था और इसीलिए उन्होंने इतना भारी पाप का बोझ भी सहर्ष स्वीकार किया था।
महात्मा नथुराम गोडसेजी को विनम्र श्रद्धांजली …. वंदे मातरम!!
श्री गोडसे ने गाँधी के वध करने के 150 कारण न्यायालय के समक्ष बताये थे। उन्होंने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़करसुनाना चाहते है । अतः उन्होंने वो 150 बयान माइक पर पढ़कर सुनाए।
लेकिन कांग्रेस सरकार ने (डर से) नाथूराम गोडसे के गाँधी वध के कारणों पर बैनलगा दिया कि वे बयां भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पायें।
गोडसे के उनबयानों में से कुछ बयान क्रमबद्ध रूप में, आपकेसमक्ष प्रस्तुत हैं। आप स्वं ही विचार कर सकते है कि गोडसे के बयानोंपर नेहरू ने क्यो रोक लगाई ? और गाँधी वध उचित था या अनुचित।

हुतात्मा नाथूराम गोडसे((19 May 1910 – 15 November 1949)- मैंने गांधी को क्यो मारा ?
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो, गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी जी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला
किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-
“नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”

देशभक्ती हे पाप असे जर l तर मी पापी घोर भयंकर l
मात्र पुण्य ते असेल, माझा नम्र तरी अधिकार तयावर वेदीवर या राही मी स्थिर….
देशभक्ती हे पाप असे जर l
तर मी पापी घोर भयंकर l
मात्र पुण्य ते असेल,
माझा नम्र तरी अधिकार तयावर
वेदीवर या राही मी स्थिर llधृll
द्रौपदीस छळले दुष्टांनी l
कुरुतीर्थी लढले भीमार्जुन
न्हाली रुधिराने वसुंधरा l
अन्यायाचे हो परिमार्जन
सीतेसाठी श्रीरामांनी l
लंकेवर केले रणकंदन
मात्र आज या नव्या भारती l
अबला हतबल सबलावाचून
अबलांचा तो करुणार्तस्वर l
सह्याद्रीच्या ये कानावर
वेदीवर या राही मी स्थिर ll१ll
न्यायासाठी आप्तांशीही लढणे l
मागे फिरणे नाही
होता संभ्रम धनुर्धराला l
स्फूर्तिप्रद हरी गीता गाई
ठाई ठाई खला मारिले त्याने, जग कल्याणापायी
केले का हो पाप तयाने ? आपण
म्हणतो नाही ! नाही !
समजा असले ! कृष्णार्पण ते ! कर्ता तो अन निमित्त
मी तर वेदीवर या राहो मी स्थिर ll२ll
भू विभाजने कष्टी झाले त्या व्रणीतांचे करण्या सांत्वन
फास घेतला गळ्याभोवती l
परी नाही विचलित माझे मन
दुष्टांना देणे सहायता l
ठरते अत्याचारा इंधन
काया जरी हि वडिलोपार्जित l
रक्षा कायेची माझे धन
धन ते टाका सिंधूमध्ये अखंडत्व
देशा आल्यावर वेदीवर या राही मी स्थिर ll३ll
पुजनीय नथुरामजी गोडसे यांना विनम्र अभिवादन ……
नथुरामजी गोडसे को विनम्र श्रद्धांजलि

Reference: https://www.dailynv.com/2016/07/150.html?m=1
संकलित
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