बहुप्रसिद्ध श्रीराम स्तुति ‘श्री राम चंद्र कृपालु भजमन…(Shri Ramchandra Kripalu Bhajman…)’ बड़े ही चाव से रामभक्तों के द्वारा विभिन्न अवसरों पर गयी जाती है। विशेषतया श्री राम नवमी, विजय दशमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा (जानिए रामचरितमानस नाम ही क्यों रखा गया?), श्री हनुमान जन्मोत्सव और अखंड रामायण के पाठ आदि अवसरों पर यह प्रमुखता से वाचन की जाने वाली वंदना है।
तुलसीदासजी ने इसकी रचना तब की थी जब कलियग ने उन्हें बहुत सताया था और अंततः उन्हें श्री हनुमान जी(जानिए वह स्थान जहाँ हनुमान जी तुलसीदास जी से मिले थे) ने आदेश दिया की वो प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्ति हेतु , विनय पत्रिका की रचना करें। यह बहुमूल्य कृति उन्ही परीक्षा भरी घड़ियों की देन हैं। विनय पत्रिका की रचना कलियुग के दुर्गुणों भरे प्रभावों से बचने के लिए हुयी थी। अतः इसके नियमित पाठ से ज्ञान चक्षु खुलते हैं और प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर सरलता से आगे बढ़ता है।
तुलसी तुलसी सब कहे, तुलसी वन की घास।
हो गयी किरपा श्री राम की, तो बन गयो तुलसीदास।
भगवान राम की पूजा करने से उनकी कृपा तो मिलती ही है, साथ ही उनके भक्त हनुमान जी का भी आशीर्वाद आप पर बना रहता है. श्री राम के नाम का जप करने से उनके परम भक्त हनुमान जी आसानी से खुश हो जाते हैं. इसलिए बजरंगबली की पूजा करने से पहले रघुनंदन राम की यह स्तुति अवश्य गाएं और उनकी कृपा-दृष्टि पाएं।
Significance of Shri Ram Chandra Kripalu Bhajaman Stuti
This stuti is very popular and soothing to listen to. The real joy can only be understood when you listen to it in a mellifluous voice.
When Stuti Shri Ramchandra Kripalu Bhajaman is sung?
Very Popular Shri Ram Stuti- Shri Ram Chandra Kirpalu Bhajman…..is often recited on various occasions related to Prabhu Shri Ramchandrji and his devotees. It is almost a must prayer on Shri Ramnavami (Birth of Prabhu Shri Rama), Shri Ramcharitmanas katha, Shri Hanuman Janmotsav, Akhand Ramayan, Kirtan etc.
Get the blessing of Hanuman ji
Those who wish to get the blessing of Shri Hanumanji also recite this stuti before Hanumanji’s pooja. As Shri Hanuman ji is greatest devotee of Prabhu Shri and he is easily appeased by the stuti (Prayer) of Shri Ram ji.
In which book is Shri Ram Chandra Kripalu Bhajaman written?
We are hereby giving the meaning and explanation of Shri Ram Stuti- Shri Ram Chandra Kirpalu Bhajman…. in English and Hindi both for the benefit of Prabhu Shri Ram Bhaktas. This stuti was written by Goswami Tulasidasji in his highly respected work ‘Vinay Patrika’.
This stuti can be found in stanza no 45 of Vinay Patrika. It is supposed to be sung in ‘Rag Gauri’.
Why was it written?
It was written after the demon Kaliyuga appeared in Tulsidas’s dreams and threatened to devour him . Tulsidasji then on Shri Hanumanji’s instructions wrote Vinay patrika.
Benefits of recitation of Shri Ramchandra Kirpalu Bhajman Stuti
Recitation of this ‘Stuti'(Praise) of Prabhu Shri Ram, will get you rid from fear of evil effects of Kaliyuga, eventually. If you are totally out of wrongly life and recite Vinay Patrika regularly, you will definitely get the blessings and Shri Rama and it will help you to proceed fearlessly on the path of Sanyasa and devotion. Vinay Patrika is essentially a scared text for spiritual elevation.
Shri Tulasidasji wrote Vinay Patrika, where he praised various gods, Lord Ganesha, Lord Sun, Bhagwan Shiva, Devi; holy rivers Ganga, Yamuna; holy places Kashi, Chitrakoot & to the close ones of Shri Ram ji, Hanumanji, Lakshmanji, Bharatji,Shatrughn ji & Mata Sita…he requested them to grant him undeterred faith and devotion in the holy feet for Prabhu Shri Rama.
How was Vinay Patrika and this Stuti approved?
Then he wrote varius praises and glory of Lord Shri Ram and requested him to protect him from evil of Kaliyuga. At the end of Vinay Patrika, he sees that his Vinay Ptarika was presented in the court of Prabhu Shri Rama, and he finally approves the request of Tualsidas. Thus, Shri Tulasidas attained peace of mind knowing fully well that his Prabhu will take care of him and will never leave him at the hand of Kaliyuga or any other evil devices of this illusionary world.
Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Hindi Lyrics
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।1।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।2।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।3।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।4।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।5।।
छंद :
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
।।सोरठा।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन का अर्थ सहित व्याख्या- Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Lyrics with Meaning
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम् ॥1॥
Shri RamChandra Kripalu Bhajman Haran Bhav Bhay Daarunam ।
Navkanj lochan kanj mukh kar kanj pad kanjaarunam ॥1॥
अर्थ:
- श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर
- हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है
– दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible)
- नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है
- कंज-मुख – मुख कमल के समान हैं
- कर-कंज – हाथ (कर) कमल के समान हैं
- पद-कंजारुणम्॥ – चरण (पद) भी कमल के समान है
व्याख्या- हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर. वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है। उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है। मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं।
Meaning: O my mind, chant the name of Prabhu Shri Ram. He is the saviour of soul from this dreaded cycle of brith death and rebirth and is remover of ‘Daruna’-state of abject poverty.
His eyes are like the petals of freshly blossomed Lotus. His face is beautiful and pleasant to eyes as Lotus flower. His palms are soft like lotus petal. His soles of feet are soft and pink (Arunam-like redisheness of early morning sky) like lotus petals too.
Explanation: Here poet is trying to explain how pleasant and delightful appearance of Lord Shri Ram is. Yet he is mater of everything and grants freedom from repeated cycles of birth, death to the soul. Therefore, O my heart and, my mind leave every other thing and focus on only chanting the name of Lord Shri Ram and sing his praise.
कंदर्प अगणित अमित छबि, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची, नौमि जनक सुतावरम् ॥2॥
Kandarp Aganit Amit chhavi , Nav neel neeraj Sundaram।
Patpeet Maanahun tadit ruchi-shuchi, naumi Janak sutaavaram ॥2॥
अर्थ:
- कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है
- नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है
- पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है
- नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ
व्याख्या-उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवो से बढ्कर है. उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ।
Meaning: Prabhu Shri Ram’s appearanceis resplendent like Sun and surpasses the beauty of myriad of Kamadevas( Cupids). Prabhu’s skin tone luster is of the color of freshly blossomed blue lotus.
Explanation: Prabhu Shri Ram’s appearance is resplendent like Sun, and it is more enchanting than the beauty of crores of Kamadevas (Lord of love) together. Prabhu’s luster is of the color of freshly blossomed blue lotus (Why Lotus is so important?).
The pure yellow garments on dark skin is captivating and appears as beautiful as like lightening in waterfilled clouds.
भज दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द, दशरथ नन्दनम॥3॥
Bhaj deen bandhu Dinesh daanav daityavansh nikandanam।
Raghunand andankand Koshal chand , Dasharath nandanam॥3॥
अर्थ:
- भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी
- दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले
- रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान
- दशरथ नन्दनम् – दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर
व्याख्या-हे मन! दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी , दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले,आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन(जानिए दशरथ जी के जन्म की रोचक कथा) श्रीराम का भजन कर।
Meaning: O my Mind, sing the hymns of Lord Shri Ram who is resplendent like Sun, protector of weak like an elder brother to them, and destroyer of demons and their lineage alike.
The progeny of Raghu, Lord Shri Ram is as beautiful as moon and the root of all joys for mother Koshalya and enhancer of the joy of Dasharatha.
Explanation: O my mind! Sing the glory and praise of Prabhu Shri Ram because he is very kind to destitute and poor people. If you remember him then he will help you like and elder brother and get you out of your miserable situation. He is Sun himself. Like Sun he is the cause of all energy and life on this planet. Under his influence only all weathers operate, and crops grow. He is full of brilliance and hence no darkness can stand against him. When he is with you are truly protected. Prabhu Shri Ram is destroyer of demons and their progeny. He protects his devotees from evils and evil people.
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर, सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम ॥4॥
Sir mukut kundal tilak chaaru, udaaru ang vibhushanam ।
Ajaanubhuj shar chaapdhar sngraamjit Khar Dushanam॥4॥
अर्थ:
- सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और
- उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है
- आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और
- शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है.
- सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है
व्याख्या– जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है। जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है। जो धनुष-बाण लिये हुए है। जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है।
Meaning:
Lord Shri Ram is adorned with beautiful Crown on his head, Tilak on his forehead, pendants in ears and with beautiful ornaments amply on all his shapely limbs.
His hands are long and reaching upto his knees(Ajanbahu). He wields bow and arrow in his hands and killed demons Khar and Dushan in battle.
Explanation: Prabhu Shri Ramji is adorned with beautiful jewels on all his limbs, Head bears a Jewel studded Crown, ‘Tilaka’ of Sanadal, Ashtagandha, kumkum, akshata on his forehead. He has beautiful fish shaped earrings. His upper arms carry arm ring, wrists the anklets and jewel studded rings in his fingers. His has beautiful jewel studded necklaces, his waist carry beautiful belly chain adorned with amblers.
Tulasidas ji says that Prabhu Ram’s arms are very long and reach till his knees. He wields bow and arrow in them with which he has killed [powerful demons like Khara and Dushana. Even Ravana proclaimed that Khar and Dushan were as powerful as him and thus feared the if goes to fight Ram and Lakshman one-on-one in Dandaka Forest then he would be killed too. That’s why he avoided fight and resorted to abduct Mata Sita in Lord Shri Rama’s absence.
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनम्॥॥5॥
Iti Vadati Tulasidas , Shankar, Shesh, Muni Mna Ranjanam।
Mam Hridaykanj Nivas Kuru, Kaamaadi Khaldal Ganjanam॥5॥
अर्थ:
- इति वदति तुलसीदास – तुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि
- शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले
- मम हृदयकंज निवास कुरु – श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो
- कामादि खलदल गंजनम् – कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है
व्याख्या- जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है। तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे।
Meaning: Thus, Tulasidas ji says that Shri Ramji is the eternal happiness in hearts of Lord Shiva, Sheshanaga, and ascetics alike.
I pray to him to reside in the lotus of my heart and destroy the lust, desire, anger, jealousy, greed and attachment. And thus, lead me to freedom from cycle of birth, death and rebirth.
Explanation: It is to be noted that heart chakra in yoga is said to be Anahat Chakra which has 12 petals and somewhere near this only is said to be the seat of soul. As Soul is part of Parmatma, if you let Parmatma reside in your heart then it is a yoga or union of ‘Jeeva’ and “Parmatma’. Ultimately the dual nature gets completely annihilated and only Paramtama remains.
Sri Ram Stuti is completed above. However there few couplets which are sung at time with this stuti as it is believed that singing these couplets will fulfill wishes. Hence we are giving the couplets and their meaning below as reference.
मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो॥
Manu jaahin raacheu so Baru , sahaj sundar saanvaro।
Karuna nidhaan sujaan sheelu, sanehu jaanat raavaro ॥
- मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु – जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा
- सहज सुन्दर साँवरो – वह स्वभाव से सहज, सुंदर और सांवला है
- करुना निधान सुजान सीलु – वह करुणा निधान (दया का खजाना), सुजान (सर्वज्ञ, सब जाननेवाला), शीलवान है
- सनेहु जानत रावरो – तुम्हारे स्नेह को जानता है
व्याख्या-जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सांवला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा। वह दया का भण्डार और सुजान (सर्वज्ञ) है। तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है।
Mata Parvati Say sto Maa Sita that: O Sita, you will get the one you have loved . He is naturally beautful, plesanat and has dark complexion.
He is epitome of kindness, gentle, has high morals and he know your love for him.
एही भांति गोरी असीस सुनी, सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि, मुदित मन मंदिर चली॥
Ehi bhanti Gauri ashish suni , Siy sahit hiy harashi ali।
Tulasi Bhavanih pooji puni-puni , mudit man mandir chalin॥
- सिय सहित हिय हरषीं अली – जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई
- एही भांति गोरी असीस सुनी – इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर
(इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई)
- तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि – तुलसीदासजी कहते है, भवानीजी को बार-बार (पुनि-पुनि) पूजकर
- मुदित मन मंदिर चली – सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली।
व्याख्या- इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकी जी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्षित हुई। तुलसीदास जी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीता जी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली।
Meaning: Hearing thus great words of Mother Bhavani, Mata Sita’s heart’s joy knew no bounds. She and her friends were overjoyed with the blessing of Mother Bhavani.
Mother Sita worshiped Mother Bhavani , bowed to her many times and she and her friends returned to the Palace in great elation.
जानी गौरी अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
Jaani Gauri anukool , Siy hiy harashu na jaai kahi ।
Manjul mangal mool baam ang farakan lage।।
व्याख्या-गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे।
Meaning: Thus knowing that Mother Gauri in her favour , the joy in Mother Sita’ heart knwe no bounds. Her left organs started quivering which is a great good omen.
Explanation: Traditionally in India it is believed that quivering of left limbs are good omen for women and quivering of right limbs are good for men. While the opposite side on both cases are bad omen.
FAQs related to Shri Ramchandra Kripalu Bhajman
Q1. Who wrote Shri Ramchandra Kripalu Bhajman
A. Goswami Tulasidas wrote Shri Ramchandra Kripalu Bhajman stuti to please Lord Shri Rama.
Q2. Where is ‘Shri Ramchandra Kripalu Bhajman’ mentioned?
A. Shri Ramchandra Kripalu Bhajman stuti is found in Vinay Patrika, another great creation of Goswami Tulasidas ji.
Q3. What is the stanza number of Shri Ram Chandra Kripalu bhajman stuti?
A. This stuti can be found in stanza no 45 of Vinay Patrika .
Q4. In which Raga Shri Ramchandra Kripalu bhjaman should be sung?
A.It is supposed to be sung in ‘Rag Gauri’.
Q5. Kanj Lochan meaning-What’s the meaning of kanj lochan?
A. Kanj=Lotus, Lochan-Eyes. Hence Kanj Lochan means Lotus like eyes
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1.Shodashopachar Pooja Procedure
2.Shri Ram Chalisas by Sant Haridas & Sundardas
3.Ramrakshastrot by Buhdkaushik Rishi
4.Shri Ram Stuti done by Bhagwan Shiva
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