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श्री निर्मला चालीसा-1

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श्री निर्मला चालीसा-1

( कवि सी. एल. पटेल रचित )

॥दोहा॥

वन्दौं श्री गणपतिपद, विघ्नविनाशन हार।
पवित्रता की शक्ति जो, सब जग मूलाधार॥

॥चौपाई॥

जय जय जय हे निर्मला माता। जय जय जय हे जन सुख-दाता॥1॥
आदि शक्ति की तुम अवतारा।लिन्हों जनम हरण महि-भारा॥2॥

दया क्षमा करुणा की जननी।आई तुम भव-भय हरणी॥3॥
परमेश्वर की शक्ति परमेश्वरी। हे जगन्माता ! हे जगदीश्वरी!॥4॥

तेरी कृपा से सब काज संवरते।सब सहजी-जन ध्यान नित धरते॥5॥
महाशक्ति तुम आदि कुण्डलिनी।आदि माता जग की तुम जननी॥6॥


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महालक्ष्मी महासरस्वती महाकाली।त्रिगुणात्मिका तुम सब जग की माली॥7॥
तुम वीराट तुम ही वीराटांगना। तुम श्री विष्णु तुम ही लक्ष्मीरमणा॥8॥

निराकार से तूने आकार बनाया।कुछ नहीं से कैसे कुछ लाया॥9॥
कैसा तूने यह जहान बनाया। धरती और आसमान बनाया॥10॥

तूने ही अंबर में टाँके हैं तारे।धरा पर भी हैं तेरे ही प्यारे॥11॥
चर-अचर और इंसान बनाया। चाँद-सितारों से आसमान सजाया॥12॥

दिन-रात और अंधेरा उजाला। काल-चक्र का पहिया डाला॥13॥
है तेरी शक्ति अनंत अपार। तू ही है सबका पालनहार॥14॥

सहजयोग में दिया तूने अमृत घोल। बन गया जीवन अब अनमोल॥15॥
कैसी अजब है तेरी यह माया।अब तक कोई भेद न पाया॥16॥

इस मिथ्या जग में मन भरमाया। कण-कण में है तू ही समाया॥17॥
यह भव-सागर है दुस्तर भयकारी। बसत यहाँ हैं मक्र झख भारी॥18॥

व्याल-कराल अनेकों बसत यहाँ हैं।बूड़त हैं उनको डसत यहाँ हैं॥19॥
तेरा पार न कोई पाया। सब भक्तों को तूने पार कराया ॥20॥

प्रेम की नैया तूने बनाया।सहजयोग में सबको पार लगाया॥21॥
इस कलियुग में सतयुग लाया। पाप-पुण्य में भेद कराया॥22॥

अंतिम-निर्णय सहजयोग में लाया।“आत्मा” का साक्षात्कार कराया॥23॥
सहजयोग में ही पाया आत्मा का दर्शन। हो गया खत्म अब माया का नर्तन॥24॥

देखा भीतर कितना सुन्दर है जीवन। आनंद भरा हर साँस का स्पन्दन॥25॥
पाँच तत्वों का है यह खेल।जड़-चेतन का है यह अद्भुत मेल॥26॥

आत्मा ही है परमात्मा की परछाईं। माँ! तूने सब कुछ सहज में दिखाई॥27॥
सब धर्मों का तूने भेद मिटाया। “विश्व निर्मला धर्म” में सब एक बताया॥28॥

अनेकता में एकता दिखलाया। देश,धर्म, वर्ण, रंग-भेद, मिटाया॥29॥
सहज-क्राँति का हुआ है दर्शन। सबके जीवन में आया है परिवर्तन॥30॥

जन-जन के रोगों का हरण किया। मानव ने आत्मा का वरण किया॥31॥
वसुधैव कुटुंबकम का सपना। हो गया अब सारा जग अपना॥32॥

चाह गई चिंता मिटी हुआ मन हरा। हर-पल जीवन का अब आनंद भरा॥33॥
तेरा प्रेम ही है तेरा पवित्र अनल। जल जाते जग के सब गरल॥34॥

काम-क्रोध मोह मद-मत्सर। मिट गया भेद-भाव परस्पर॥35॥
सत्य-अहिंसा क्षमा अरु प्रेम। सिखाया ध्यान-धरणा दिया योग-क्षेम॥36॥

तेरे दर्शन से कटे सब भव-पाशा।हो गई पूरी हमरी आशा॥37॥
हे आदिमाया महामाया आदिशक्ति! तेरे चरणो पर हो अनन्य-भक्ति॥38॥

हाथ पकड़ कर हमको ले चल। जायें न हम फिर फिसल॥39॥
ऐसी भक्ति सबको दे दो माता! जैसे सागर में बूंद समाता॥40॥

॥दोहा॥

जो यह पढ़े निर्मला चालीसा। होई मुक्ति साक्षी सहजयोगीसा॥
प्रणतपाल श्री निर्मला माँ, करुणासिंधु अपार। गये शरण श्री माँ राखिहैं, सब अपराध बिसार॥

॥साक्षात श्री आदिशक्ति माता जी श्री निर्मला देव्यैः नमो नमः॥

( कवि सी एल पटेल रचित )

Writer- Kavi C.L Patel

Source: https://sites.google.com/site/shrimatajinirmaladevikimahima/home/sri-nirmala-calisa

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