June 1, 2023

तिलभांडेश्वर महादेव,सोनारपुरा बनारस

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शिव की नगरी काशी के कण-कण में वास है। यहां शिव के अनेक रूप भी हैं। शिव ही यहां के आराध्य हैं और शिव ही लोगों की रक्षा और भरण पोषण करते हैं। शिव के इस आनंद वन में शिव के चमत्कारों की कोई कमी नहीं है। यहां बाबा भैरव रूप में रक्षा करते हैं तो द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ तारक मंत्र से तारते हैं। इन रूपों के आलावा महादेव का एक और रूप हैं जो काशी में सोनारपुरा क्षेत्र में करते हैं और हर साल अपनी उपस्थिति से सबको आश्चर्य में डालते हैं। इन्हें तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है जो हर साल एक तिल के बराबर बढ़ते हैं। सावन में तिलभाण्डेश्वर के दर्शन के लिए भक्तों का जमावड़ा लगता है।

तिलभाण्डेश्वर महादेव का आकार काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है और हर वर्ष इसमें तिल भर की वृद्धि होती है। इस स्वयंभू शिवलिंग के बारे में वर्णित है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य से शिवलिंग उत्पन्न हो गया। जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा तो पूजा-अर्चन करने के बाद तिल चढ़ाने लगे। मान्यता है कि तभी से इन्हें तिलभाण्डेश्वर कहा जाता है। इस शिवलिंग में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं।

बताया जाता है कि मुस्लिम शासन के दौरान मंदिरों को ध्वस्त करने के क्रम में तिलभाण्डेश्वर को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गयी। मंदिर को तीन बार मुस्लिम शासकों ने ध्वस्त कराने के लिए सैनिकों को भेजा लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा घट गया कि सैनिकों को मुंह की खानी पड़ी।

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अंग्रेजी शासन के दौरान एक बार ब्रिटिश अधिकारियों ने शिवलिंग के आकार में बढ़ोत्तरी को परखने के लिए उसके चारो ओर धागा बांध दिया जो अगले दिन टूटा मिला। तब से आस्था और गहरी हो गयी। समय बीतता गया और बाबा हर साल बढ़ते गए। आज काशी की जिस गली में मंदिर हैं वो 25 फिट तक ऊपर जा चुका है। 

काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में बाबा तिलभांडेश्वर का प्राचीन मंदिर है। ये मन्दिर काशी के केदार खंड में स्थित इस मन्दिर की मान्यता ये है कि बाबा तिलभाण्डेश्वर स्वयंभू हैं भगवान शिव का ये लिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है। 

यहां बाबा पर जल, बेलपत्र के अलावा तिल भी चढ़ाया जाता है। इससे शनि दोष भी खत्म होता है और सुख की प्राप्ति होती है। बाबा तिलभाण्डेश्वर के हर दिन दर्शन करने से अन्नपूर्णा में वृद्धि और पाप से तिल भर मुक्ति मिलती हैं। यह मंदिर समय सुबह 5 बजे खुलता है और रात्रि साढ़े 9 बजे तक है। वहीं दिन में 1 से 4 बजे के बीच गर्भगृह बंद रहता है। प्रतिदिन आरती सुबह 6 बजे होती है। मंदिर परिसर में ही तिलभाण्डेश्वर मठ भी स्थित है। जिसमें साधु संत रहते हैं।

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