June 10, 2023

श्री शाकंभरी चालीसा-1

0
0
(0)

माता श्री शाकंभरी देवी चालीसा-1

॥दोहा॥

श्री गणपति गुरुपद कमल, सकल चराचर शक्ति ।
ध्यान करिअ नित हिय कमल । प्रणमिअ विनय सभक्ति ।
आद्या शक्ति पधान, शाकम्भरी चरण युगल ।
प्रणमिअ पुनि करि ध्यान, नील कमल रुचि अति बिमल ॥

॥चौपाई॥

जय जय श्री शाकम्भरी जगदम्बे, सकल चराचर जग अविलम्बए ।
जयति सृष्टि पालन संहारिणी, भव सागर दारुण दुःख हारिणी ।

नमो नमो शाकम्भरी माता, सुख सम्पत्ति भव विभव विधाता ।
तव पद कमल नमहिं सब देवा, सकल सुरासुर नर गन्धर्वा ।

Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀


आद्या विद्या नमो भवानी, तूँ वाणी लक्ष्मी रुद्राणी ।
नील कमल रूचि परम सुरूपा, त्रिगुणा त्रिगुणातीत अरूपा ।

इन्दीवर सुन्दर वर नयना, भगत सुलभ अति पावन अयना ।
त्रिवली ललित उदर तनु देहा, भावुक हृदय सरोज सुगेहा ।

शोभत विग्रह नाभि गम्भीरा, सेवक सुखद सुभव्य शरीरा ।
अति प्रशस्त धन पीन उरोजा, मंगल मन्दिर बदन सरोजा ।

काम कल्पतरु युग कर कमला, चतुर्वर्ग फलदायक विमला ।
एक हाथ सोहत हर तुष्टी, दुष्ट निवारण मार्गन मुष्टी ।

अपर विराजत सुरुचि चापा, पालन भगत हरत भव तापा ।
एक हाथ शोभत बहु शाका, पुष्प मूल फल पल्लव पाका ।

नाना रस, संयुक्त सो सोहा, हरत भगत भय दारुण मोहा ।
एहि कारण शाकम्भरी नामा, जग विख्यात दत सब कामा ।

अपर हाथ बिलसत नव पंकज, हरत सकल संतन दुःख पंकज ।
सकल वेद वन्दित गुण धामा, निखिल कष्ट हर सुखद सुनामा ।

शाकम्भरी शताक्षी माता, दुर्गा गौरी हिमगिरि जाता ।
उमा सती चण्डी जगदम्बा, काली तारा जग अविलम्बा ।

राजा हरिश्चन्द्र दुःख हारिणी, पुत्र कलत्र राज्यसुखं कारिणी ।
दुर्गम नाम दैत्य अति दारूण, हिरण्याक्ष कुलजात अकारूण ।

उग्र तपस्या वधि वर पावा, सकल वेद हरी धर्म नशावा ।
तब हिमगिरि पहुँचे सब देवा, लागे करन मातु पद सेवा ।

प्रगट करुणामयि शाकम्भरी, नाना लोचन शोभिनी शंकरि ।
दुःखित देखि देवगण माता, दयामयि हरि सब दुःख जाता ।

शाक मूल फल दी सुरलोका, क्षुधा तृषा हरली सब शोका ।
नाम शताक्षी सब जग जाना, शाकम्भरी अपर अभिघाना ।

सुनि दुर्गम दानव संहारो, संकट मे सब लोक उबारो ।
किन्हीं तब सुरगण स्तुति-पूजा, सुत पालिनी माता नहि दूजा ।

दुर्गा नाम धरे तब माता, संकट मोचन जग विख्याता ।
एहि विधि जब-जब उपजहिं लोका, दानव दुष्ट करहि सुर शोका ।

तब-तब धरि अनेक अवतारा, पाप विनाशनि खल संहारा ।
पालहि विबुध विप्र अरू वेदा, हरहिं सकल संतन के खेदा ।

जय जय शाकम्भरी जग माता, तब शुभ यश त्रिभुवन विख्याता ।
जो कोई सुजस सुनत अरू गाता, सब कामना तुरंत सो पाता ।

नेति नेति तुअ वेद बखाना, प्रणब रूप योगी जन जाना ।
नहि तुअ आदि मध्य अरू अन्ता, मो जानत तुअ चरित्र अनन्ता ।

हे जगदम्ब दयामयि माता, तू सेवत नहिं विपति सताता ।
एहि विधि जो तच्च गुण गण जाता, सो इह सुखी परमपद पाता ।

॥दोहा॥

जो नित चालीसा पढ़हि, श्रद्धा मे नव बार ।
शाकम्भरी चरण युगल, पूजहिं भक्ति अपार ॥

सो इह सुख सम्पत्ति लभहि, ज्ञान शक्ति श्रुति सार ।
बिनु श्रम तरहिं विवेक लहि, यह दुर्गम संसार ॥

कृष्णानन्द अमन्द मुद, सुमति देहु जगदम्ब ।
सकल कष्ट हरि तनमन के, कृपा करहु अविलम्ब ॥

॥ बोलो श्री शाकम्भरी माता की जय ॥

1.चालीसा संग्रह -९०+ चालीसायें
2.आरती संग्रह -१००+ आरतियाँ

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!