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शरद पूर्णिमा रात्रि – क्या करें, क्या न करें?

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शरद पूनम की रात दिलाये आत्मशांति, स्वास्थ्य लाभ

चारुचंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से॥

इन अनुपम पंक्तियों से शरद ऋतुू का आज से आरंभ …..।

आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें

आश्विन पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ कहते हैं । इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है । गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत का पान कराया था । अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है । इस रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है ।
शरद पूनम की रात को क्या करें, क्या न करें ?


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  •  दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें ।
  •  अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं । जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना ।
  •  इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।
  •  चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है । शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है ।
  • अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।

खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद:

खीर को रसराज कहते हैं । सीताजी को अशोक वाटिका में रखा गया था । रावण के घर का क्या खायेंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे ।
खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जायेगा । इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे । रात्रि 8 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 11 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए ।  सुबह भी गर्म करके खा सकते हैं ।
(खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।)

चन्द्रमा के दर्शन करते जाइए और भावना कीजिए कि ‘चन्द्रमा के रूप में साक्षात् परब्रह्म-परमात्मा की रसमय, पुष्टिदायक रश्मियाँ आ रही हैं । हम उसमें विश्रांति पा रहे हैं । पावन हो रहा है मन, पुष्ट हो रहा है तन, ॐ शांति… ॐ आनंद…’ पहले होंठों से, फिर हृदय से जप और शांति… निःसंकल्प नारायण में विश्रांति पाते जाना । परमात्म-विश्रांति, परमात्म-ज्ञान के बिना भौतिक सुख-सुविधाएँ कितनी भी मिल जायें लेकिन जीवात्मा की प्यास नहीं बुझेगी, तपन नहीं मिटेगी ।

देखें बिनु रघुनाथ पद जिय कै जरनि न जाइ । (रामायण)

श्रीकृष्ण गोपियों से कहते हैं कि ‘‘तुम प्रेम करते-करते बाहर-ही-बाहर रुक न जाओ बल्कि भीतरी विश्रांति द्वारा मुझ अपने अंतरात्मा प्रेमास्पद को भी मिलो, जहाँ तुम्हारी और हमारी दूरी खत्म हो जाती है । मैं ईश्वर नहीं, तुम जीव नहीं, हम सब ब्रह्म हैं – वह अवस्था आ जाय ।’’

शरद पूर्णिमा के चांद में होती हैं लक्ष्मी कृपा करने वाली ये खास बातें!

धन और पुण्य का गहरा संबंध है। धनवान बनने का सकारात्मक पक्ष विद्या, शील व कुल के रूप में सामने आता है। वहीं, धनहीन होने पर ये तीनों गुण नष्ट हो सकते हैं। धर्मशास्त्र भी पिछले जन्म के सद्कर्म वर्तमान में धन पाने की वजह बताते हैं और ऐसा धन ही पुण्य कर्मों की प्रेरणा भी।

इस तरह जीवन में सारे कर्म-धर्म और कलाओं में दक्षता के पीछे धन की भूमिका अहम होती है। जीवन में धन की इसी अहमियत को जानते हुए धर्मशास्त्रों में अच्छे कर्म से धन संचय के उद्देश्य से कुछ खास घडिय़ों पर विशेष देव उपासना की अहमियत बताई गई है। इसी कड़ी में शरद पूर्णिमा पर चंद्रदर्शन व देवी लक्ष्मी की उपासना का महत्व है।

असल में देवी लक्ष्मी धन का देवीय स्वरूप ही है। धार्मिक नजरिए से भी देवी लक्ष्मी की उपासना दरिद्रता का नाश कर वैभव संपन्न बनाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शरद पूर्णिमा पर के पूर्ण कलाओं वाले चंद्रमा में मौजूद  खास बातें किसी भी इंसान को लक्ष्मी की अपार कृपा का पात्र बना सकती हैं? ये दो बातें शास्त्रों में अच्छे कर्मों से धन संचय के लक्ष्य को भी सार्थक करती है। जानिए शरद पूर्णिमा के चांद की ये  खास बातें –

लक्ष्मी कृपा देने वाले शरद पूर्णिमा के चंद्रमा की दो खासियत है – रोशनी और शीतलता।  रोशनी यानी प्रकाश ज्ञान स्वरूप माना जाता है। संकेत है कि व्यावहारिक जीवन में  ज्यादा से ज्यादा ज्ञान अर्जन ही दक्ष, कुशल व माहिर बनाता है, यानी ज्ञान, गुणी बनने के साथ धनी बनने की राह आसान बनाता है।

दूधिया रोशनी के साथ चंद्रमा की एक ओर विशेषता – शीतलता, यानी ठंडक यही संकेत करती है कि स्वभाव से शांत, वाणी से मधुर बने व व्यवहार में विनम्रता को अपनाए। प्रतीकात्कात्मक रूप से लक्ष्मी का आनंद स्वरूप भगवान विष्णु का संग भी इस बात की ओर इशारा है। क्योंकि शांत, सरल, सौम्य, सात्विक और सहज रहने से न केवल तन व मन भी निरोगी और ऊर्जावान रहता है बल्कि चंद्रमा की शीतलता की तरह दूसरों को भी प्रेम, सेवा, परोपकार व दया के रूप में बेहद राहत दी जा सकती है। ये गुण ही जीवन में सफल और वैभवशाली बनने के सूत्र हैं।

शरद पूर्णिमा की चांदनी पर नजर डालकर इन दो बातो को संकल्प के साथ जीवन में उतार लिया जाए तो धन ही नहीं तमाम सांसारिक सुखों को पाना भी बेहद आसान हो सकता है।

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  1. शरद पूर्णिमा
  2. शरद पूर्णिमा रात्रि – क्या करें, क्या न करें?

(शरद पूर्णिमा : 24 अक्टूबर 2018)

1.Sharad Purnima in Year 2021 - 19 October 2022,Tuesday 
(Tithi Timings-7.02pm on 19 October 2021 to 8.25pm on 20 October 2021)
  (मंगलवार  १९.१०.२१-७.०२ सायं से, बुधवार  २०.१०.२१ -८.२५ सायं तक )
2.Sharad Purnima in Year 2022 - 24 October 2018
3.Sharad Purnima in Year 2022 - 9 October 2022, Sunday
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