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कोहबर की शर्त उपन्यास -‘हम आपके हैं कौन’ और ‘नादिया के पार’ फिल्मों का आधार

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कोहबर की शर्त-उपन्यास जिसके आधार पर ‘हम आपके हैं कौन’ और ‘नादिया के पार’ फिल्म बनी ….

‘कोहबर की शर्त’ श्री केशव प्रसाद मिश्र की अनमोल कृति है| श्री केशव प्रसाद मिश्र जी इलाहाबाद शहर में महालेखखाकर कार्यालय में लेखाकर(ऑडिटर) के पद पर कार्यरत थे| सन 1976-77 की एमर्जेन्सी में इंदिरा गाँधी ने कर्मचारियों की उपस्थति के लिए कड़े कड़ा उठाए और 3 बार उपस्थिति सुबह, दोपहर, शाम दर्ज होने लगी| श्री केशव प्रसाद मिश्र ने इस वातावरण से उकता के नौकरी छोड़ दी और बम्बई चले गये, जहाँ उन्होने अपने भाई ए. के. मिश्रा के सहयोग से फिल्म रज़िया सुल्तान प्रोड्यूस कर दी|

इसी बीच फिल्मकार श्री ताराचंद बड़जात्या ने श्री केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ को पढ़के उसके उपर फिल्म बनाने की अनुमति माँगी| पहली बार तो केशव जी यह कहकर इनकार कर दिया कि,” रचनाकारो के लिए उनकी रचनायें बच्चों की तरह होती हैं| जैसे माता अपने पुत्र से स्नेह रखती है, उसी प्रकार हम अपनी कृतियों से स्नेह रखते है| आप फिल्मकार संवेदना के इस तल को ना समझ सकेंगे…जब जी चाहा कहानी को जहाँ तहाँ से काट-छाट देंगे..”

ताराचंद बड़जात्या ने पुनः लिखा, “आपकी कहानी में बिना आपकी अनुमति के कुछ भी परिवर्तन न होगा|


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केशव चंद्र ने अपने मित्र सुशील कुमार(सुशील कुमार जी ने हमें ‘एक तांत्रिक की डायरी’ और अन्य बहुप्रशंसित कृतियाँ दीं हैं) से सलाह करने के बाद बंबई चले गये और श्री ताराचंद बड़जात्या से अनुबंध करके ही लौटे| इसी ‘कोहबर की शर्त’ उपन्यास के आधार पर बड़ी सफलता प्राप्त भोजपुरी-हिन्दी फिल्म ‘नादिया के पार’ बनी जिसमे मराठी फिल्मों के सुपर स्टार सचिन ने बेहतरीन भूमिका अदा की |

बाद में इसी कहानी को शहर की पृष्ठभूमि में रखकर ‘हम आपके हैं कौन’ फिल्म बनी, जिसमे सलमान ख़ान,माधुरी दीक्षित आदि ने अभिनय किया था|

कोहबर की शर्त एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के दो गाँवों-बलिहार और चौबेछपरा-का जनजीवन गहन संवेदना और आत्मीयता के साथ चित्रित हुआ है-एक रेखांकन की तरह, यथार्थ की आड़ी-तिरछी रेखाओं के बीच झांकती-सी कोई छवि या आकृति | यह आकृति एक स्वप्न है | इसे दो युवा हृदयों ने सिरजा था | लेकिन एक पिछड़े हुए समाज और मूल्य-विरोधी व्यवस्था में ऐसा स्वप्न कैसे साकार हो ? चन्दन के सामने ही उसके स्वप्न के चार टुकड़े-कुंवारी गुंजा, सुहागिन गुंजा, विधवा गुंजा और कफ़न ओढ़े गुंजा-हो जाते हैं | इतना सब झेलकर भी चन्दन यथार्थ की कठोर धरती पर पूरी दृढ़ता और विश्वास से खड़ा रहता है |

कोहबर की शर्त पढ़ चुके दो पाठकों का अनुमोदन बड़ा ही अच्छा लगा और यहाँ पर इनको उद्घृत करना बड़ा ही सामयिक रहेगा :

उनका अनुमोदन , उन्ही के शब्दों में

  1. Ajeet Pratap Giri ( 2 October 2015) : This novel is an awesome potrayal of lives of eastern UP. After reading this book, I felt something pierced my heart. I felt like crying. The story is different and far better than Nadiya Ke Paar or Hum Apke Hain Kaun. The story describes each and every character in such a way that one feels watching it on a screen. Highly recommended.
  2.  anand prasad sharmaon (28 September 2017) : one of the great novel which i read yet. though i have watched the movie NADIYA KE PAR but this whole novel is far far better than that movie. n after completing it i was just crying. No more word for that type of great n sensitive n emotional novel

नीच दिये गये लिंक से आप ‘कोहबर की शर्त’ उपन्यास इसके मूल स्वरूप में खरीद सकते हैं|

From US: 

Kohabar Ki Shart (Hindi Novel):

Our Note: Available in  all formats – Kindle , Hardcover & paperback

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कोहबर की शर्त(हिन्दी उपन्यास):

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