छह मूर्ख
(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक ग्वाला था। उसके एक लड़का था। वह रोज गायें लेकर जंगल में जाता था। एक दिन जब वह जंगल की तरफ जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक बहुरुपिया मिला। बहुरुपिये ने भगत जी का वेश बना रखा था और चुटकी बजाता जाता था, और ‘राधाक्रष्ण’, ‘राधाक्रष्ण’ बोलता जाता था। चुटकी की आवाज सुनकर अहीर के लड़के को बड़ा अचंभा सा हुआ। उसने चुटकी की आवाज कभी सुनी ही नहीं थी। लड़के ने बहुरुपिये से पूछा, “महाराज, आप क्या बजा रहे हैं?” बहुरुपिया चालाक था। उसने तुरन्त ताड़ लिया। बोला, “अरे भैया! यह तो मेरी ‘फूलकी’ है। मैंने इसे पाला है।”
लड़के ने कहा, “महाराज, आप अपनी यह ‘फूलकी’ मुझे दे देंगे, तो मैं तो अपनी ‘लीलकी’ गाय आपको दे दूंगा।” बहुरुपिये को तो हां भर कहना था। उसने झटपट लड़के को चुटकी बजाना सिखा दिया, और वह गाय लेकर चला गया।
लड़का खुश होता होता घर पहुंचा। वहां आंगन में खाट पर दादाजी बैठे थे। उन्हें देखकर लड़के ने मौज-ही-मौज में चुटकी बजाते हुए कहा, “दादाजी, दादाजी! देखिए तो! अपनी लीलकी गाय देकर मैं यह फूलकी ले आया हूं। दादाजी! जरा सुनिए तो! यह कितनी अच्छी बजती है!”
दादाजी भी उस लड़के से कुछ कम नहीं थे। बोले, “अरे वाह, यह फूलकी तो बहुत ही बढ़िया दिखती है। फट-फट बजती है, और पट-पट बोलती है।” लड़के की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। जब ब्यालू का समय हुआ, तो लड़के ने पूछा, “मां, इस फूलकी को मैं कहां रख दूं? ”
मां बोली, “बेटे, इसे उस कुल्हड़ में रख दे। वह कुल्हड़ कुठले पर पड़ा है। ज़रा संभाल कर रखना।”
उस रात लड़के ने मौज-ही-मौज में दो गुना खाना खाया। लेकिन जब हाथ धोकर वह फूलकी लेने पहुंचा, तो उसे कुल्हड़ में फूलकी नहीं मिली।हाथ गीले होने से चुटकी कैसे बजे| लड़के का चेहरा उतर गया। वह बोला, “मां-मां! मेरी फूलकी गुम हो गई।”
दादाजी ने कहा, “अभी-की-अभी कहां चली गई? लगता है कि कुल्हड़ ही उसे निगल गया! ”
सब एक साथ बोले, “इस कुल्हड़ को तो तपाना ही होगा। इसे तपाने पर ही फूलकी वापस आयेगी।”
आंगन में बड़ा-सा अलाव जलाया गया और उसमें कुल्हड़ डाल दिया गया। जब ज़ोर की आग जली, तो लड़के के हाथ सूख गए और चुटकी फिर बजने लगी।
लड़का बोला, “लो, यह मेरी फूलकी आ गई।” सुनकर सब खुश हो गए।
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