बनिया और कौआ
(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक कौआ था। वह रोज बनिये के बेटे के हाथ से पूड़ी छीनकर ले जाता था। उसने कौए को सबक सिखाने की सोची।
एक दिन बनिये ने अपने मुंह में दही भर लिया और वह गांव के बाहर खड़े बरगद के पेड़ के नीचे जाकर ऐसे लेट गया। मानो वह मर गया है। तभी वह कौआ उड़ता-उड़ता वहां आ पहुंचा कौए ने सोचा, यह बनिया तो मर गया है। इसलिए अब मैं इसके मुंह मे रखा हुआ दही खा लूं।’
जैसे ही कौए ने बनिए के मुंह में अपनी चोंच डाली, वैसे ही बनिये ने अपना मुंह जोर से बन्द कर लिया और कौए की चोंच को मजबूती से दबाया। कौए ने सोचा कि अब इससे छूट निकलने की कोई तरकीब खोजनी होगी। कौए ने बनिये से पूछा, “कौन, नन्दू काका हैं?”
बनिये ने विचार किया कि अगर जवाब दूंगा तो मुंह खुल जाएगा और कौआ उड़ जायगा। इसलिए जोर से दांत दबाकर बोला, “हूं…काका…हूं…।” इससे कौए की चोंच बुरी तरह दबी और कौआ अधमरा-सा हो गया!
फिर बनिये ने सोचा, ‘कौए को काफी सजा मिल चुकी है, इसलिए अब इसे छोड़ देना चाहिए।” उसने कौए को छोड़ दिया। इसके बाद कौआ बनिये के बेटे के हाथ से पूड़ी छीनना ही भूल गया।
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