मुर्गा और सियार
मुर्गा और सियार
(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक था मुर्गा और एक था सियार। एक बार दोनों में दोस्त हो गई दोनों ने बेर का एक-एक पेड़ संभाला। मुर्गा अपने पेड़ को रोज पानी देता, लेकिन सियार बेर के पेड़ को पानी तो देता नहीं था, उल्टे हमेशा उसके तने पर पेशाब करता रहता था।
सियार का पेउ़ बिलकुल सूख गया ओर मुर्गे के पेड़ में बढ़िया मीठे बेर लगे।
एक दिन मुर्गा बेर के अपने पेड़ से लेकर बेर खा रहा था, तभी पेड़ के नीचे से सियार निकला।
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सियार ने कहा, “मुर्गे भैया, मुर्गे भैया! मुझे भी दो न!”
मुर्गे ने जवाब दिया, “मैं तुमको बेर नहीं दूंगा।”
यह कहकर मुर्गे ने सियार के सिर पर बेर की गुठलियां मारी। उस समय तो गुस्सा पीकर सियार वहां से चला गया। बाद में एक दिन, जब मुर्गा बेर के पेड़ के पास नहीं था, सियार वहां पहुचा, और उसके पेड़ के बेर खा गया।
मुर्गे ने आकर सियार से पूछा, “मेरे पेड़ के बेर तुमने क्यों खाए?”
सियार बोला, “हां, खाए, खाए, खाए! और अगर तुम ज्यादा बोलोगे, तो मैं तुमको भी खा जाऊंगा!” यह कहकर सियार ने मुर्गे को दबोच लिया और वह उसे फौरन चट कर गया।
इसके बाद सियार रौब दिखाता हुआ आगे बढ़ा। रास्ते में उसको एक
बुढ़िया मिली। सियार ने बुढ़िया से कहा “मा जी मां जी! मुझे थोड़ा गोबर दो।”
बुढ़िया बोली, “चल, चल अपना रास्ता पकड्र। ज्यादा बोलेगा, तो अपनी इस गेंडरी से ऐसा मारुंगी कि तेरा सिर फट जायगा।”
सियार ने कहा:
“मांजी!
सेरों खाए कच्चे बेर।
सेरों खाए पक्के बेर।
खाया है एक मुर्गा।
और अब तुमको भी खाऊंगा।”
यह कहकर सियार तो बुढ़िया को भी खा गया। फिर तो सियार मोटा-ताजा होकर रौब के साथ आगे बढ़ा। रास्ते में सियार को एक किसान मिला। सियार ने किसान से कहा, “किसान, किसान! मुझे पानी पिला।” किसान बोला, “मुझे फुरसत नहीं है। तुम अपने रास्ते चले आओ, नहीं तो अपने पैने से मैं तुम्हें ऐसा मारुंगा कि तुम यहीं ढेर हो जाओगे!”
सियार ने कहा:
“सेरों खाए कच्चे बेर।
सेरों खाए पक्के बेर।
खाया है एक मुर्गा
खाई है एक बुढ़िया।
और अब तुमकों भी खाऊंगा।”
ऐसा कहकर सियार ने अपना मुंह खोला और वह उस किसान को भी खा गया। वहां से सियार चर्मकारों की बस्ती में पहुंचा। उसने एक चर्मकार से कहा, “चर्मकार , चर्मकार ! मुझे एक हड्डी दो।”
चर्मकार बोला, “यह हड्डी लो, और अपने रास्ते जाओ।”
कुछ दूर जाने के बाद सियार हड्रडी खाने बैठा। हड्डी उसके गले में अटक गई, और वह मर गया। जब चर्मकार को सियार के मरने की खबर मिली, तो उसने सियार का पेट चीरा। चीरते ही पेट में से ढेरों बेर, कुकुडुक्कूं करता हुआ मुर्गा, बुढ़िया और किसान सब बाहर निकल आये।
फिर तो सब अपने-अपने घर चले गये और सबने खा-पीकर मौज की।