शामे-बनारस
गंगा के दूसरी तरफ खुली चाँदी जैसी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है. सूरज की रोशनी अब धूमिल हो चली है और इस पर घाट पर पास ही बरगद के पेड़ पर पक्षियों का झुंड कलरव कर रहा है. बेशक, आख़िर सारा दिन खाने और जिंदा रहने की जद्दो-जहद के बाद सबको सही सलामत साथ देखकर उनका खुश होना लाजिमी है. उनके लिए एक दिन उनकी छोटी सी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा है.
शामे-बनारस
शाम के करीब चार बाज रहे हैं. नवंबर की गुलाबी सर्दियाँ अब अपनी मौजूदगी का अहसास दिला रही हैं. बनारस के घाट पर सीढ़ियों पे ऊपर की तरफ बैठे हुए मैं बस इस मौसम की खूबसूरती को अपने जहाँ में समेटने में लगा हुआ हूँ.
बारीशों का मौसम बीते अब ख़ासा समय बीत चुका है. गंगा का पानी जो कुछही समय पहले मटमैला हुआ करता था, अब हल्की नीली रंगत पकड़ रहा है. नदी में नावें घूम रहीं हैं. लोग गंगा की लहरों को छू कर देखना चाह रहे हैं. विदेशी सैलानी कुछ ज़्यादा ही उत्साहित लग रहे हैं और बनारस और गंगा के हर एक पहलू को कैमेरे में क़ैद करने से चूकना नही चाहते हैं.
गंगा के दूसरी तरफ खुली चाँदी जैसी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है. सूरज की रोशनी अब धूमिल हो चली है और इस पर घाट पर पास ही बरगद के पेड़ पर पक्षियों का झुंड कलरव कर रहा है. बेशक, आख़िर सारा दिन खाने और जिंदा रहने की जद्दो-जहद के बाद सबको सही सलामत साथ देखकर उनका खुश होना लाजिमी है. उनके लिए एक दिन उनकी छोटी सी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा है.
घाट पर देशी विदेशी सभी अपनी अपनी बातों में, कार्यकलापों में व्यस्त हैं.महात्मा जी उधर संध्या करने की तैयारी में लगे हैं और पप्पू चाय वाला अपने ग्राहको को चाय देने में लगा हुआ है. कुछ विदेशी सैलानियों ने तो जटा भी बढ़ा रखी है. भारतीय संस्कृति की छाप संसार के कोने कोने से अपने अनुयायियो का दुलार प्राप्त करती प्रतीत होती है.
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अंधेरा हो चला है और मैं इन सब के बीच बैठाअपनी ही यादों में खोता जा रहा हूँ.