माता श्री चामुंडा देवी चालीसा
आज कल इंटरनेट पर चामुंडा देवी चालीसा कई सारी वेब साइट्स पर उपलब्ध है। परन्तु मैंने पाया की सब के सब किसी अपभ्रंश एवं त्रुटिपूर्ण शब्द विन्यास के दोष से ग्रसित हैं। इतनी अधिक त्रुटियां हैं की चालीसा का वास्तविक रूप ही विकृत हो गया है। इस त्रुटिपूर्ण चालीसा को पढ़ने पर कितना लाभ होगा यह नहीं कहा जा सकता। ऐसा लगता है किसी एक ने गलत चालीसा अपलोड की और बाकी सब उसी त्रुटिपूर्ण चालीसा को बिना ध्यान दिए कॉपी पेस्ट करते गए। इसके पश्चात मैंने स्वयं दुर्गा शप्तशती आदि ग्रंथों का अध्ययन करके इसमें बहुत सारी शुद्धियाँ की हैं। अब यह पढ़ने के लिए सही शब्द विन्यास के साथ प्रस्तुत है।
॥दोहा॥
नीलवरण माँ कालिका रहती सदा प्रचंड ।
दस हाथो माई शस्त्र धर देती दुष्ट को दंड।।
मधु कैटभ संहार कर, करी धर्म की जीत ।
मेरी भी बाधा हरो, हो जो कर्म पुनीत ।।
॥चौपाई॥
नमस्कार चामुंडा माता । तीनो लोक में माई विख्याता ।
हिमालय में पवित्र धाम है । महाशक्ति तुमको प्रणाम है ।।1।।
मार्कण्डेय ऋषि ने ध्याया । कैसे प्रकटी भेद बताया ।
शुम्भ निशुम्भ दो दैत्य बलशाली । तीनो लोक जो कर दिए खाली ।।2।।
वायु अग्नि व कुबेर संग । सूर्या चंद्र वरुण हुए तंग ।
अपमानित हो चरणों में आये । गिरिराज हिमालय को लाये ।।3।।
भद्रा-रूद्र नित्य ध्याया । चेतन शक्ति करके बुलाया ।।
क्रोधित होकर काली आई । जिसने अपनी लीला दिखाई ।।4।।
चंड मुंड ओर शुम्भ पठाये । कामुक बैरी लड़ने आए ।।
पहले सुग्रीव दूत को मारा । भगा चंड भी मारा मारा ।।5।।
अरबों सैनिक लेकर आया । ध्रूम लोचन क्रोध दिखाया ।।
जैसे ही दुष्ट ललकारा । ‘हं‘ शब्द गुंजा के मारा ।।6।।
सेना ने मचाई भगदड़ । फाड़ा सिंह ने आया जो बढ़।
हत्या करने चंड मुंड आए । चतुरंगी सेना संग लाए ।।7।।
मदिरा पी कर के गुर्राई । ऊँचे ऊँचे शिखर गिराई ।।
तुमने क्रोधित रूप निकाला । प्रगटी डाल गले मुंड माला।।8।।
चर्म की साड़ी चीते वाली । हड्डी ढ़ाचा था बलशाली।।
विकराल मुखी आँखे दिखलाई । जिसे देख सृष्टि घबराई ।।9।।
चंड मुंड ने चक्र चलाया । ले तलवार हुं शब्द गुंजाया ।
पापियों का कर दिया निस्तारा। चंड मुंड दोनो को मारा ।।10।।
हाथ माई मस्तक ले मुस्काई । पापी सेना फिर घबराई ।।
सरस्वती मां तुम्हे पुकारा । पड़ा चामुंडा नाम तिहारा।।11।।
चंड मुंड की मृत्यु सुनकर । कालक मयूर आए रथ पर ।।
अरब- खरब युद्ध के पीठ पर । झोंक दिए सब चामुंडा पर ।।12।।
उग्र चंडिका प्रगटी आकर । गीदड़ियों की वाणी भरकर ।।
काली ख़टवांग घूंसों से मारा । ब्रह्माणी ने फेंकि जल धारा ।।13।।
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया । माँ वैष्णवी चक्र घुमाया ।।
कार्तिके की शक्ति आई । नारसिंही दैत्यों पे छाई ।।14।।
चुन चुन सिंह सभी को खाया । हर दानव घायल घबराया ।।
रक्तबीज माया फैलाई । शक्ति उसने नई दिखाई ।।15।।
रक्त्त गिरा जब धरती उपर । नया दैत्य प्रगटा था वही पर ।।
चंडी माँ अब शूल घुमाया । मारा उसको लहू चुसाया।।16।।
शुम्भ निशुम्भ अब दौड़े आए । सरपट सेना भरकर लाए ।।
वज्रपात संग सूल चलाया । सभी देवता कुछ घबराए ।।17।।
ललकारा फिर घूँसा मारा । लै त्रिशूल किया निस्तारा।।
शुम्भ निशुम्भ धरती पर सोए । दैत्य सभी देखकर रोए ।।18।।
कह मुंडा माँ धर्म बचाया । अपना शुभ मंदिर बनवाया ।।
सभी देवता आके मनाते । हनुमत भैरव चंवर डुलाते ।।19।।
अष्टमी चैत्र नवरात्रे आओ । ध्वजा नारियल भेट चढ़ाओ।।
वांडर नदी स्नान कराओ (कर आओ?)। चामुंडा माँ तुमको (पिआऔ?) पियौ ।।20।।
॥दोहा॥
शरणागत को शक्ति दो, हे जग की आधार ।
‘ओम’ ये नैया डोलती , कर दो भव से पार ।।
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