बहुत से लोगो को इतिहास की अनभिज्ञता के कारण लगता है की चंगेज खान मुस्लिम था । जबकि ऐसा नही है, चंगेज खान मुस्लिम नही था, बल्कि इस्लाम के महान शत्रुओ में उनका नाम शुमार होता है ।पिछले 1500 वर्षों में अगर किसी एक राजा ने सबसे बड़ी भूमि जीती हो, तो वह चंगेज खान ही है।
चंगेज खान मंगोल जाति से थे, मंगोलों का सम्बन्ध मंगोलिया से है, जो संस्कृत के मङ्गल नाम का अपभ्रंस है । मंगोलों ओर भारतीयों की संस्कृति में भी काफी समानता है, अपने ध्वज को वे स्वयम्भू (सायंबू )कहते है, इसमें भू स्वर संस्कृत का है । मंगोलिया के एक भूतपूर्व राष्ट्रपति का नाम शंभु था।
कुब्लेखान नाम के मंगोल ने चीन की विष्वविख्यात महाभित्ती के पश्चिमीद्वार पर उष्णीश विजयाधारणी नामक संस्कृत मंत्र लिखवायाः-
ॐ नमो भगवत्यै आर्य समन्त विमलोष्णीषविजयायै।
यह मंत्र सबसे ऊपर संस्कृत में, फिर तिब्बती में और फिर मंगोल और चीनी लिपियों में लिखा गया।
मंगोल देश के विहारों में स्थान-स्थान पर संस्कृत मंत्र लिखे रहते हैं। वे संस्कृत लिखने के लिये लांछा लिपि का प्रयोग करते हैं। भारत में बंगाल के पाल वंश में संस्कृत मंत्र लिखने के लिए जो सुन्दर अक्षर प्रयोग किये जिन्हें रंजना लिपि कहा जाता था, उसी रंजना लिपि को लांछा के रूप में मंगोलिया में प्रयोग किया जाता है। संस्कृत अक्षर सिखाने के लिये जो पुस्तक है उसे आलि, कालि, बीजहारम् कहते हैं। आलि अर्थात् अ, क इत्यादि स्वर व्यंजन। क्यांकि संस्कृत के अक्षर बीजमंत्र के रूप में भी प्रयोग में लाये जाते हैं।इस कारण अक्षर माला को बीजहारम् की संज्ञा दी गई।
मंगोल ओर भारत का इतना अटूट सम्बन्ध संस्कृत और संस्कृति दोनो से है, मंगोलिया के लोग शिखा भी रखते थे । इसी मंगोल वंश में हुआ था चंगेज खान, जिसका वास्तविक नाम Genghis खान उर्फ गांगेश खान था, गांगेश भी संस्कृत का ही नाम है, जैसे भीष्म पितामह को गांगेय कहा जाता था, यह गांगेश नाम भी उसी का समानार्थी नाम है, मंगोलियन लोग भी गंगा नदी को बहुत पवित्र मानते है , इस कारण वहां के किसी राजा का नाम गंगापुत्र के नाम पर हो, तो यह आश्चर्य की बात नही ।
चंगेज खान ने अपना मंत्रिमंडल ईरान भेजा था, इस्लामिक नीति के अनुसार ईरानी मुसलमानो ने चंगेज खान के मंत्रियों को मार डाला, चंगेज खान इस बात से इतना बिफर गया कि उसने ईरान और इराक की 70% आबादी को ही समाप्त कर दिया, बगदाद पहुंचकर उसने आसमानी ग्रन्थो को भी घोड़े की टॉप के नीचे मसल दिया था ।।
चंगेज खान इतना शक्तिशाली था, की इसने गजनी और पेशावर तक आकर वहां के शासक अल्लाउद्दीन मूहम्मद को खदेड़ कर मारा था, लेकिन उसके बाद भी चंगेज खान भारत की तरफ नही आया, जहां हिन्दू थे । पेशावर गजनी के सुल्तान अल्लाउदीन के बेटे जलालउद्दीन ने चंगेज खान से बचने के लिए उस समय के दिल्ली सल्तनत के बादशाह इल्तुतमिश से अपने ही अफगान भाई से मदद मांगी की वह उसे शरण दे, लेकिन चंगेज खान का तहलका इतना ज्यादा था, की उससे भयाक्रांत इल्तुतमिश ने जलालउद्दीन को शरण देने से मना कर दिया ।।।
आगे चलकर चेंगेज खान के वंसज भी इस्लाम के आगे ढेर हो गए, ओर भारत मे चलने वाला मुगल वंश उसी मंगोल राजवंश का एक छोटा सा टुकड़ा था ।
खान शब्द इस्लाम के जन्म से बहुत पहले से भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रो की कई सभ्यताओं में प्रयोग होता रहा है। यह एक उपाधि की तरह भी प्रयोग की जाती थी , जो शासकों और अत्यंत शक्तिशाली सिपहसालारों को दी जाती थी – बाद में मंगोलों से ये उपाधि मंगोलों के गुलाम बने तुर्कों के बीच पहुँचा और वहाँ से भारत में तलवार के बल पर बनाये कई मुसलमानों ने इसे अपने नाम के साथ जोड़ लिया।
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