गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरितमानस में सुंदरकांड में श्री हनुमान जी के किए गये अद्भुत कार्यों का वर्णन है। श्री हनुमान जी अष्ट सिद्धि के स्वामी हैं। प्रभु श्री राम के कार्यों को संपन्न करने के लिए उन्होने कई बार इन सिद्धियों का प्रयोग किया। इनके उदाहरण दोहों के साथ दिए गये हैं।
सुंदर कांड के सिद्ध मंत्र:
सुंदरकांड में श्री हनुमान जी के अद्भुत कार्यों का वर्णन किया गया है। सुंदर कांड में कुछ दोहे सिद्ध मन्त्र (Sundar Kand ke siddh mantra) की तरह की तरह कार्य करते हैं।
1. यात्रा के समय कार्य सिद्धि:
जब लगी आवउँ सीतहि देखी, होई काज मोहि हरष विशेषी।
Jab lagi avaun sitahi dekhi, hoi kaaj mohi harash visheshi।
अनुभसिद्ध मन्त्र है। यात्रा के समय इसे जपने से कार्य सिद्धि अवश्य होती है।
2. गरिमा सिद्धि प्राप्ति मन्त्र:
ज़ेहि गिरी चरण देई हनुमंता | चलेऊ सो गा पाताल तुरंता।
Jehi Giri Charan dei Hanumanta | Chaleu so ga Patal Turanta।
गरिमा सिद्धि प्राप्ति का अनुभूत मन्त्र है।
3. लघिमा सिद्धि प्राप्ति मन्त्र:
शत योजन तेहि आनन कीन्हा, अति लघु रूप पवन सुत लीन्हा।
Shat yojan tehi Anan keenha, Ati laghu roop Pavansut leenha।
4. आशीर्वाद मन्त्र:
आशीष देई सुरसा गयी, हरषि चले हनुमान।
Ashish dei Surasa Gayi, Harashi Chale Hanumaan।
जिस समय अपना की परिजन कोई शुभ कार्य के लिए जाता हो तो यह मंत्र पढ़ कर आशीर्वाद देना चाहिए।
5. संकट हरण मन्त्र:
उमा ना कछु कपि के अधिकाई, प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।
Uma na kachu kapi ke adhikaai, prabhu patap jo kalahi khaai।
6. कार्य के लिए निकलते समय कार्य सिद्धि मन्त्र:
प्रविशि नगर कीजै सब काजा , हृदय राखी कौशलपुर राजा।
Pravishi nagar keejai sab kaja , hriday rakhi Kaushalpur Raja।
किसी कार्य के लिए निकलते समय इस मन्त्र का जाप करें तो अभीष्ट सिद्धि होगी। यह बहुत प्रचलित मंत्र है।
7. कठिन कार्य की सिद्धि के लिए:
गरल सुधा रिपु करई मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई।
Garal sudha ripu karai mitai, Gopad sindhu anal sitalaai।
8. चित्त छोभ शमन मन्त्र:
यहि विधि कहत राम गुन ग्रामा, पावा अनिर्वाच्य विश्रामा।
(yahi vidhi kahat Ram gun grama, Pava anirvachya vishrama।
9. आपत्तिरहित होने के लिए मन्त्र:
बूड़त विरह जलधि हनुमाना, भयहु तात मो कहं जलजाना।
Boodat virah jaladhi hanumana, bhayahu taat mo kahn jalajana।
10. शत्रु सन्मुख पड़ जाने पर उबरने का मन्त्र:
कनक भूधराकार शरीरा , समर भयंकर अति बलवीरा।
Kanak bhoodharakaar shareera , Samar bhayankar ati Balveera।
11. पराक्रमी शत्रु को वश में करने का मूल मन्त्र:
प्रभु प्रताप से गरुड़हि, खाइ परम लघु व्याल।
Prabhu Pratap se Garudahi, khaai param laghu vyaal।
12. आशीर्वाद देने का मन्त्र:
आशीष दीन्हि राम प्रिय जाना, होउ तात बल शील निधाना।
Ashish deenhi Ram Priy jaana, hou taat bal sheel nidhaana।
13. व्याधि ग्रस्त प्राणी के बचाने का मन्त्र:
अजर अमर गुन निधि सुत होहू, करहि बहुत रघुनायक छोहू।
Ajar Amar gun nidhi sut hohu, karahi bahut Raghunayak chhohu।
14. प्रतिपक्ष का नाश और ऐश्वर्य प्राप्ति मन्त्र:
अब कृत्य कृत्य भयउँ मैं माता, आशीष तव अमोघ विख्याता।
Ab kritya kritya bhayau main mata, Ashish tav amogh vikhyata।
इस मन्त्र के जाप से प्रतिपक्ष का नाश और ऐश्वर्य प्राप्ति होती है।
15. आनंदपूर्वक जीवन निर्वाह मन्त्र:
रघुपति चरण हृदय धरि , तात मधुर फल खाउ।
Raghupati charan hridya dhari , Taat madhur fal khaau।
उत्तम और शुभ कर्म का निर्वाह करते हुए यदि मनुष्य इस चौपाई की रट लगाए रहे तो निर्वाह आनंदपूर्वक होता रहेगा।
16. कठिन कार्य की सिद्धि के लिए चलते समय:
हरषि राम तब कीन्ह पयाना, सगुन भए सुंदर सुभ नाना।
Harashi Ram tab keenh payana, Sagun bhaye sundar subh naana।
17. घोर पाप करने पर पश्चाताप का मन्त्र:
सरन गये प्रभु ताहु न त्यागा, विश्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा।
Saran gaye Prabhu taahu na tyaga, Vishva droh krit agh jehi laaga।
यदि पश्चाताप के साथ यह मन्त्र जाप करे तो क्षमा मिल जाती है।
18. अपराध क्षमा याचना के लिए दूसरा मन्त्र:
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहि, जनम कोटि अघ नासहि तबहि।
Sanmukh hoi jeev mohi jabahi , janam koti agh naasahi tabahi।
19. किसी से कष्ट पाने पर यह चौपाई जपे तो बड़ा लाभ हो:
जरत विभीषण राखेऊ , दीन्हेउ राज अखंड।
Jarat Vibhishan raakheu , deenheu Raaj akhand।
20. श्रीराम जी की भक्ति और मुक्ति के लिए:
सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुणगान । सादर सुनहि ते तरहि भव, सिंधु बिना जलजान।
Sakal sumangal dayak, Raghunayak Gungan। Sadar Sunahi te tarahi bhav, Sindhu Bina Jaljaan।
अष्ट सिद्धियों के प्रयोग के उदाहरण
1. महिमा सिद्धि उदाहरण :
कपि बढ़ि लाग अकास||- (Kapi Badhi laag akash )
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥
यह तब की बात है जब हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई गयी थी| तब हनुमान जी ने अपना आकार बढ़ा लिया था।
2. अणिमा सिद्धि उदाहरण :
अति लघु रूप धरेऊ हनुमंता॥- (Ati laghu roop dhareu Hanumanta॥)
अति लघुरूप धरेऊ हनुमंता।
आनेहु भवन समेत तुरन्ता।।
जब लक्ष्मण जी शक्ति लगाने से मूर्छित थे तो हनुमान जी ने एकदम छोटा रूप लिया और लंका से सुषैन वैद्य को घर सहित उठा ले आए।
3. गरिमा सिद्धि उदाहरण:
ज़ेहि गिरि चरण देई हनुमंता ।
चलेऊ सो गा पाताल तुरंता।।
Jehi Giri Charan dei Hanumanta ।
Chaleu so ga Patal Turanta।।
जब हनुमान जी समुद्र पार करने किए लिए उड़े यह तब की बात है। जब वह पर्वताकार हो गये तो जिस भी पर्वत पर उन्होने चरण रखा वह धरती में धँस गया।
4. लघिमा सिद्धि उदाहरण:
देह विशाल परम हरुआइ , मंदिर ते मंदिर चढ़ि जाई।
Deh Vishal param haruaai , Mandir te mandir Chadhi jaai।
पूंछ में आग लगाने पर हनुमान जी ने आकर को बढ़ा लिया और एक से दूसरे महल पर कूद-कूद कर आग लगाने लगे पर इतनी विशाल देह होने के बावजूद भी उनका शरीर बहुत हल्का था।
5. प्राप्ति सिद्धि उदाहरण:
सीता माता के दर्शनो की प्राप्ति
देखी मनहि मन कीन्ह प्रणामा : Dekhi manahi man keenh Pranama।
माता सीता के दर्शन उन्होने अशोक वाटिका में किया।
6. प्रकाम्य सिद्धि उदाहरण:
वचन सुनत कपि मुस्काना, भई सहाय शारदा मैं जाना : Vachan sunat kapi muskana, bha sahay Sharada main jaana।
जब राक्षसों ने हनुमान जी के पूँछ में आग लगने का निश्चय किया तो हनुमान जी मन ही मन प्रसन्न हुए कि इससे मेरा लंका जलाने का काम और आसान हो जाएगा।
7. ईशित्व सिद्धि उदाहरण:
तिन कर भय माता मोहि नाही। :Tin kar bhaya mata mohi naahi।
हनुमान जी को किस भी राक्षस का बिल्कुल भी भय नही था। उनकी अपने शत्रुओं पर भी संपूर्ण प्रभुता थी।
8. वशित्व सिद्धि उदाहरण:
इसके अंतर्गत पॅंच तत्व भी हैं:
- देह विशाल परम हरुआइ- भूमि तत्व वशित्व (Deh vishal param haruaai- Bhoomi tatva vashitva)
- कूदी परा तब सिंधु माझारी|- जल तत्व वशित्व (Koodi para tab sindhu majhari|- Jal tatva vashitva)
- ताकर दूत अनल जेई सिरिजा जरा ना सोते ही कारन गिरिजा| – अग्नि तत्व वशित्व (Takar doot anal jei sirija jara na sote hi karan Girija| – Agni tatva vashitva)
- चले मरुत उन्चास- वायु तत्व वशित्व (Marut chale unchaas- Vaayu tatva vashitv )
नवनिधियाँ :
1. पद्म निधि :
पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक गुणयुक्त होता है, तो उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा पीढ़ियों को तार देती है। इसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति स्वर्ण-चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है। यह सात्विक प्रकार की निधि होती है जिसका अस्तित्व साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है।
2. महापद्म निधि :
यह निधि भी पद्म निधि की तरह सात्विक ही है। हालांकि इसका प्रभाव 7 पीढ़ियों के बाद नहीं रहता। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है।
3. नील निधि :
इस निधि में सत्व और रज गुण दोनों ही मिश्रित होते हैं। ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। हालांकि इसे मधुर स्वभाव वाली निधि कहा गया है। ऐसा व्यक्ति जनहित के काम करता है और इस तरह इस निधि का प्रभाव 3 पीढ़ियों तक रहता है।
4. मुकुंद निधि :
इस निधि में पूर्णत: रजोगुण की प्रधानता रहती है इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोगादि में ही लगा रहता है। यह निधि एक पीढ़ी बाद नष्ट हो जाती है।
5. नंद निधि :
इसी निधि में रज और तम गुणों का मिश्रण होता है। माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। यह व्यक्ति कुटुम्ब की नींव होता है। तारीफ से खुश होता है। यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है।
6. मकर निधि :
इस निधि को तामसी निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र को संग्रह करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति का राजा और शासन में दखल होता है। वह शत्रुओं पर भारी पड़ता है और युद्ध के लिए तैयार रहता है, लेकिन उसकी मौत भी इसी कारण होती है।
7. कच्छप निधि :
इसका साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है। न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न करने देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है।
8. शंख निधि :
इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा करता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार वाले गरीबी में ही जीते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का उपयोग स्वयं के सुख-भोग के लिए करता है जिससे उसका परिवार दरिद्रता में जीवन गुजारता है।
9. खर्व निधि :
इसे मिश्रत निधि भी कहते हैं। नाम के अनुरूप ही यह निधि अन्य 8 निधियों का सम्मिश्रण होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति को मिश्रित स्वभाव का कहा गया है। उसके कार्यों और स्वभाव के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।
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