कौआ और दाल का दाना
(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक किसान था। उसकी घरवाली एक दिन गांव के गोईंड़े में बैठकर दाल साफ कर रही थी। इसी बीच एक कौआ आया और डलिया में से एक दाना लेकर पेड़ पर जा बैठा। किसान की घरवाली बहुत गुस्सा हो गई और उसने कौए के एक पत्थर मारा। कौआ ‘कांव-कांव’ करता हुआ पेड़ पर से नीचे आ गिरा और दाल का एक दाना पेड़ की एक दरार में घुस गया। किसान की घरवाली लपककर कौए के पास पहुंची और उसका एक पंख पकड़कर बोली, “ला, दाल का मेरा दाना ला, नहीं तो मैं तुझे अभी मार डालूंगी।
कौए ने कहा, “मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हारा दाल का दाना अभी लाये देता हूं।”
इसके बाद कौआ पेड़ के पास गया। दाना पेड़ की दरार में जा पड़ा था, इसलिए उसने पेड़ से कहा, “पेड़, पेड़। दाना दो।”
पेड़ बोला, “मैं दाना नहीं दूंगा।”
इस पर कौआ बढ़ई के पास पहुंचा और उसने बढ़ई से कहा:
बढ़ई, बढ़ई! पेड़ काट डालो।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी नहीं देता है।
बढ़ई बोला, “मैं पेड़ को नहीं काटूंगा।”
इस पर कौआ राजा के पास पहुंचा। कौए ने राजा से कहा:
राजा, राजा! बढ़ई को दण्ड दो।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
राजा बोला, “मैं तो बढ़ई को दण्ड नहीं दूंगा।”
फिर कौआ रानी के पास पहुंचा। उसने रानी से कहा:
रानी, रानी! राजा से रूठ जाओ।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
रानी बोली, “मैं तो राजा से रूठूंगी नहीं।”
यह सुनकर कौआ सांप के पास गया। उसने सांप से कहा:
सांप, सांप! रानी को काट लो।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नही है।
सांप बोला, “मैं तो रानी को नहीं काटूंगा।”
यह सुनकर कौआ डण्डे के पास पहुंचा। उसने डण्डे से कहा:
डण्डे, डण्डे! सांप को मार।
सांप रानी को काटता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
डण्डा बोला, “भई, मैं तो सांप को मारूंगा नहीं।”
फिर कौआ आग के पास पहुंचा। उसने आग से कहा:
आग, आग! डण्डे को जला दो।
डण्डा सांप को मारता नहीं।
सांप रानी को डसंता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
आग बोली, “मैं तो डण्डे को जलाऊंगी नहीं।”
फिर कौवा समुद्र के पास पहुंचा। उसने समुद्र से कहा
समुद्र, समुद्र! आग को बुझा दो।
आग डण्डे को जलाती नहीं।
डंडा सांप को मारता नहीं।
सांप रानी को डंसता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
समुद्र बोला, “मैं तो आग को बुझाऊंगा नहीं।”
सुनकर कौआ हाथी के पास पहुंचा। उसने हाथी से कहा:
हाथी, हाथी! समुद्र को सोख लो।
समुद्र आग को बुझाता नहीं।
आग डण्डे को जलाती नहीं।
डण्डा सांप को मारता नहीं।
सांप रानी को डसता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
हाथी बोला, “भई, मैं तो समुद्र को सोखूंगा नहीं।”
इस पर कौआ रस्से के पास पहुंचा। उसने रस्से से कहा:
रस्से, रस्से! हाथी को बांधो।
हाथी समुद्र को सोखता नहीं।
समुद्र आग को बुझाता नहीं।
आग डण्डे को जलाती नहीं।
डण्डा सांप को मारता नहीं।
सांप रानी को डसता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा देता नहीं।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं।
रस्सा बोला, “भई, मैं तो हाथी को बांधूंगा नहीं।”
सुनकर कौआ चूहे के पास पहुंचा। उसने चूहे से कहा:
चूहे, चूहे! रस्से को काट
रस्सा हाथी को बांधता नहीं।
हाथी समुद्र को सोखता नहीं।
समुद्र आग को बुझाता नहीं।
आग डण्डे को जलाती नहीं।
डण्डा सांप को मारता नहीं।
सांप रानी को डसंता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
चूहा बोला, “भई, मैं तो रस्से को काटूंगा नहीं।”
फिर कौआ बिल्ली के पास पहुंचा। उसने बिल्ली से कहा:
बिल्ली, बिल्ली! चूहे को खा जा।
चूहा रस्सा काटता नहीं।
रस्सा हाथी को बांधता नहीं।
हाथी समुद्र को सोखता नहीं।
समुद्र आग को बुझाता नहीं।
आग डण्डे को जलाती नहीं।
डण्डा सांप को मारता नहीं।
सांप रानी को डसता नहीं।
रानी राजा से रूठती नहीं।
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता।
बढ़ई पेड़ नहीं काटता।
पेड़ ने मेरा दाना ले लिया है।
मांगने पर भी देता नहीं है।
बिल्ली ने जैसे ही चूहे का नाम सुना, वह लपककर चूहे को खाने दौड़ी। बिल्ली को आते देखकर चूहा रस्सा काटने दौड़ा। कटने के डर से रस्सा हाथी को बांधने पहुंचा। बंधने के डर से हाथी समुद्र को सोखने लगा। सोखने के डर से समुद्र आग बुझाने चला। आग बुझने लगी, तो उसने डण्डे को जलाना शुरू किया। इस पर डण्डा सांप को मारने दौड़ा। मार के डर से सांप रानी को काटने चला। सांप के डर से रानी राजा से रूठ गई। रानी को रूठा देखकर राजा ने बढ़ई को बुलवाया। बढई को दण्ड का डर लगा, वह अपना बसूला लेकर पेड़ को काटने चला। बढ़ई को आते देखकर पेड़ ने दाल का दाना कौए को दे दिया। फिर तो कौआ दाल का दाना लेकर किसान की घरवाली के पास पहुंचा और दाना उसे सौंप दिया।
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