अन्य नाम: इस व्रत को हलषष्ठी, हलछठ , हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर या खमर छठ
श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति और पुत्रों के दीर्घायु और सुख-सौभाग्य की कामना के लिए भाद्रपद कृष्ण षष्ठी तिथि को हलछठ व्रत-पूजा का विधान है। हलछठ का व्रत उत्तरभारत में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में जन्मे बलराम के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलछठ मनाई जाती है। इसलिए इससे बलराम जयंती, ललई छठ या बलदेव छठ के नाम से भी जाना जाता है।
यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं करती हैं। यह व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिट्टी या चीनी के वर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरतीं हैं। जारी (छोटी कांटेदार झाड़ी) की एक शाखा ,पलाश की एक शाखा और नारी (एक प्रकार की लता ) की एक शाखा को भूमि या किसी मिटटी भरे गमले में गाड़ कर पूजन किया जाता है। महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा (सूखे फूल) को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करतीं हैं।
चूंकि बलराम का प्रमुख शस्त्र हल है इसलिए इसे हल छठ कहा जाता है। माना जाता है बलराम भगवान विष्णु की शैया के रूप में विराजमान शेषनाग के अवतार हैं। इस दिन ब्रज, मथुरा समेत समस्त बलदेव मंदिरों में धूमधाम से बलराम जयंती मनाई जाती है।
पूजा विधान
इस दिन हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का अस्त्र हल होने की वजह से महिलाएं हल का पूजन करती है।
हल छठ के दिन प्रातःकाल स्नानादि के बाद पृथ्वी को लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है, जिसमें झरबेरी, पलाश, गूलर और कांसी की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हर छठ को स्थापित कर देते हैं। हरछठ में झरबेरी, कास (कुश) और पलास तीनों की एक-एक डालियां एक साथ बंधी होती हैं। इसकी पूजा की जाती है। सबसे पहले कच्चे जनेउ का सूत हरछठ को पहनाते हैं।
शाम के समय पूजा के लिये मालिन हरछ्ट बनाकर लाती है।
पूजन में सतनजा यानी गेहूं, चना, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा और जौ सात प्रकार के अनाज का भुना हुआ लावा चढ़ाया जाता है। हल्दी में रंगा हुआ वस्त्र तथा सुहाग सामग्री अर्पित की जाती है। पूजा के बाद कथा सुनी जाती है।
लाई, महुआ, चना, गेहूं चुकिया में रखकर प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। हरछठ में बिना हल लगे अन्न और भैंस के दूध का उपयोग किया जाता है। इसके सेवन से ही व्रत का पारण किया जाता है।
हलछठ की कथा
एक गांव में एक ग्वालिन रहती थी। वह गर्भवती थी और उसके प्रसव का समय समीप ही था। उसका दही-मक्खन बेचने के लिए घर में रखा हुआ था। तभी अचानक उसे प्रसव पीड़ा होने लगी, लेकिन उसने सोचा कि बच्चे ने जन्म ले लिया तो दही-मक्खन घर में ही रखा खराब हो जाएगा इसलिए वह उसे बेचने गांव में निकल पड़ी। रास्ते में उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई तो वह एक झरबेरी की झाड़ी की ओट में बैठ गई और उसने वहां एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को बच्चे से ज्यादा चिंता दूध बेचने की थी।
इसलिए वह बच्चे को कपड़े में लपेटकर झाड़ी में छोड़कर गांव की ओर चल दी। उस दिन संयोग से हल छठ थी इसलिए गांव में सभी को केवल भैंस का दूध-मक्खन चाहिए था, लेकिन ग्वालिन के पास तो गाय का दूध था। उसने पैसों के लालच में आकर सबसे झूठ बोलकर गाय के दूध को भैंस का बताकर बेच दिया। उधर जहां ग्वालिन ने बच्चे को झाड़ी में छुपाया था वहां समीप ही एक किसान खेत में हल चला रहा था। उसके बैल बिदककर खेत की मेढ़ पर जा चढ़े और हल की नोक बच्चे के पेट से टकरा जाने से बच्चे का पेट फट गया।
किसान ने यह देखा और झरबेरी के कांटों से बच्चे का पेट सिलकर उसे वहीं पड़ा रहने दिया। ग्वालिन ने लौटकर देखा तो उसके होश उड़ गए। वह तुरंत समझ गई कि यह उसके पाप और झूठ बोलने का फल है। उसने गांव में जाकर लोगों के सामने अपने पाप के लिए क्षमा मांगी। ग्वालिन की दशा जानकर लोगों ने उसे माफ कर दिया और उसे आशीर्वाद भी दिया।
आशीर्वाद पाकर जब वो वापस झरबेरी के नीचे पहुंची तो उसे उसका बालक जीवित मिला। तभी उसने अपने स्वार्थ के लिए झूठ न बोलने का प्रण लिया।
माता देवकी ने छठ का व्रत किया
एक अन्य आख्यान के अनुसार द्वापर युग में माता देवकी ने छठ का व्रत किया था, क्योंकि खुद को बचाने के लिए मथुरा का राजा कंस देवकी की सभी संतानों का वध कर रहा था। देवर्षि नारद ने देवकी को हल षष्ठी व्रत करने की सलाह दी थी। उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से ही बलराम और कृष्ण कंस पर विजयी हुए थे।
यह भी है मान्यता:
हलछठ का व्रत करने वालों के बीच मान्यता है कि इस दिन ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं खेतों में पैर नहीं रखती है और इस दिन हल की पूजा की जाती है। व्रत करने वाले के लिए इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना वर्जित माना गया है। इस दिन हल से जुता हुआ अन्न नहीं खाया जाता है। इस दिन वृक्ष पर लगे खाद्यान्न खाए जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रती को महुए की दातून करना चाहिए।
||Date in 2020: 9 August 2020||
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