बाबा नीम करोली द्वारा विधवा के पुत्र को जीवनदान
एक बार बाबा कुछ भक्तों के साथ कहीं से हनुमानगढ़, नैनीताल को कार में जा रहे थे। हल्द्वानी पहुँचने के पूर्व से ही वे चालक रामानन्द से गाड़ी की रफ्तार अधिकाधिक बढ़वाते जा रहे थे। मानो उन्हें बहुत शीघ्रता से किसी गंतव्य को पहुंच जाना हो। काठगोदाम और ज्योलीकोट के बीच एक निर्जन स्थान में उन्होंने रामानन्द से कहकर गाड़ी रुकवा दी और स्वयं उतर कर बाहर आ गए।
पास ही के जंगल में एक ग्रामीण औरत अपने बच्चे के लिए रो रही थी जो साँप के काटने से कभी का मरा पड़ा था। प्रतीत होता था कि उसे मरे काफी समय व्यतीत हो चुका था।
बाबा अंतर्यामी थे परन्तु फिर भी सब जानते हुए भी उससे कारण पूछा। कारण बताने पर उन्होंने पुनः प्रश्न किया; कहने लगे, ” क्या यह तेरा अकेला लड़का था?” उस औरत ने स्वीकार किया कि वह उसका एकमात्र पुत्र था। बाबा फिर बोले, “तेरा पति भी अब नहीं रहा ?” यह सुनकर वह स्त्री अपने कठिन दुर्भाग्य पर रोने लगी।
बाबा ने पुनः कहा, “तेरा लड़का मरा नहीं है, क्यों रो रही है ? चुप हो, चुप हो।”
बाबा ने लड़के के धरती पर पड़े निश्चल शरीर पर हाथ फेरा | उसमें चेतना का संचार होने लगा| थोड़ी ही देर में वह चैतन्य हो कर उठ कर बैठ गया। उस औरत की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसके जीने का सहारा उसे पुनः प्राप्त हो गया था।
परन्तु बाबा ने उस औरत को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का मौका नहीं दिया, तुरंत अपनी कार में बैठकर आगे चल दिये।
!!श्री बाबा नीम करौली जी की महाराज सर्वशक्तिमत्ता!!
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अलौकिक यथार्थ से
मुद्रलेखन श्री प्रेम तिवारी द्वारा
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