पतईया झार भागना-भोजपुरी मुहावरा
पतईया झार भागना एक भोजपुरी मुहावरा है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी तथा बिहार के भोजपुर नामक क्षेत्र के आस-पास इलाके के गावों में पहले एक मुहावरा सुनाने को मिलता था कि ‘पतईया झार भागना’। उदाहरण के लिए:-
जइसहीं गाँव में पुलिस आयल चोरवा पतईया झार भागल।
अर्थात- जैसे ही गाँव में पुलिस आयी चोर पतईया झार भागा।
पतईया झार का अर्थ-Meaning of Pataiya Jhaar
यहाँ पतईया झार का मतलब बहुत हड़बड़ी में भागना है , यहाँ तक कि इतनी जल्दी में भागने के चक्कर में उसका कोई सामान भी छूट जाए तो उसकी परवाह न करे।
प्रायः ऐसी स्थिति तब आती है जब आदमी बहुत डरा हुआ हो या उसे अचानक कोई ऐसी सूचना मिल गयी हो कि उसके ऊपर कोई बहुत बड़ी आपदा आने वाली हो। ऐसी दशा में आदमी हर चीज की परवाह छोड़ के बेतहाशा भागता है। इसी को पतईया झार भागना कहते हैं।
अधिकतर पतईया झार का प्रयोग अनौपचारिक तरीके के बात चीत में होता है। कभी कभी लोग इसका प्रयोग मजाक में भी करते हैं। जैसे होली के अवसर पर जब गांव के लडके रामआसरे पर रंग डालने आये तो वह अपने घर से पतईया झार भागे लेकिन अगली ही गली में धर लिए गए।
आइये अब जानते हैं की इस मुहावरे की व्युत्पत्ति कैसे हुई ? पतईया झार दो शब्दों से मिलकर बना है पतईया और झार। यहाँ पतईया से तात्पर्य ‘पत्ते’ (जैसे पेड़ के पत्ते) से है और झार का तात्पर्य ‘झड़ने’ से है।
पतईया झार भागना की व्युत्पत्ति 1-Origin of Pataiya Jhar Bhagana
पतईया झार भागना की व्युत्पत्ति कैसे हुई होगी आइये इस पर एक नज़र डालते हैं। प्रायः फाल्गुन से चैत्र (अंग्रेजी कलंदर से करीब मार्च -अप्रैल) का महीना पतझड़ का होता है। इस समय गावों में तेज हवाएं चलती हैं पहले से ही सूख चुके पत्ते हवा की इस मार से बड़ी मात्रा में पेड़ों से झड़कर गिरने लगते हैं। हवा के बवंडर ऐसे तेजी से चलते है जैसे जब उड़ा ले जायेंगे , परन्तु अंत में उसके पेड़ के शाखों से उखड़े गए पत्ते हवा के साथ आगे न जाकर कुछ दूरी पर ही गिर जाते हैं। ऐसे जैसे की चोर सब कुछ चुरा ले जाना चाहते हो लेकिन इतनी हड़बड़ी में हो कि सब चुराया हुआ वहीँ गिरा के चला जाए। यही पतईया झार भागना है।
पतईया झार भागना की व्युत्पत्ति 2-Alternate Origin of Pataiya Jhar Bhagana
पतईया झार भागना की व्युत्पत्ति कैसे हुई होगी आइये इस पर एक और भी दृष्टिकोण उपलब्ध है ऐसे उसे भी देखते हैं। गावों में अक्सर धुल धक्कड़ भरे रास्तों के अगल बगल घने पेड़ होते हैं और ऐसी अवस्था में यदि कोई व्यक्ति या वाहन बड़ी तेजी से तेज़ी से उनके पास से गुजरे तो भी सूखे पत्ते उनसे टकरा के या उनके संपर्क कि तेज हवा के प्रभाव से झड़ कर गिरते हैं। यह भी पतईया झार भागना ही हुआ। इस प्रकार से बिना परवाह भागना कि सब अस्त व्यस्त हो जाए।
मैं अपने चाचा से एक और बार एक मजाकिया कहानी बताते हुए सुना था कि कैसे गाँव का एक तरुण लड़का रात के अँधेरे में भूतिये बगीचे में गया लेकिन जरा सी अवाज़ सुनते ही कैसे पतईया झार भागा। वो कहानी सुनकर हँसते हँसते हमारे पेट में बल पड़ गए थे।
ग्रामीण संस्कृति के अपने रंग हैं। शायद शहर उनकी तह तक कभी पहुंच ही न पाएं परन्तु एक गाँव से निकला व्यक्ति मन से कभी गाँव कि निकल नहीं पाता।