तुलसीदास के दोहे-1: संतजन
साधु चरित सुभ चरित कपासू।निरस विशद गुनमय फल जासू।जो सहि दुख परछिद्र दुरावा।वंदनीय जेहि जग जस पावा। संत का चरित्र कपास की भांति उज्जवल है लेकिन उसका फल नीरस विस्तृत और गुणकारी होता है। संत स्वयं …
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