आँवला-अक्षय नवमी व्रत कथा फल एवं पूजन विधि
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाते हैं।मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन दान करने से पुण्य का फल इस जन्म के साथ अगले जन्म में भी मिलता है।
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन उत्तर भारत और मध्य भारत में अक्षय नवमी या आँवला नवमी का पर्व मनाया जाता है। जबकि दक्षिण और पूर्व भारत में इसी दिन जगद्धात्री पूजा का पर्व मनाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करते हुए परिवार की खुशहाली और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। इसके साथ ही इस दिन वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया जाता है। प्रसाद के रूप में भी आंवला खाया जाता है।
मान्यता है कि इस दिन अच्छे कार्य करने से अगले कई जन्मों तक हमें इसका पुण्य फल मिलता रहेगा। धर्म ग्रंथो के अनुसार आँवला नवमी के दिन आँवले के पेड़ पर भगवान विष्णु एवं शिव जी वास करते हैं।
इसलिए इस दिन सुबह उठकर इस वृक्ष की सफाई करनी चाहिए। साथ ही इस पर दूध एवं फल चढ़ाना चाहिए। पुष्प अर्पित करने चाहिए और धूप-दीप दिखाना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार आँवला नवमी या अक्षय नवमी उतनी ही शुभ और फलदायी है जीतनी की वैशाख मास की अक्षय तृतीया।
आँवला नवमी कथा – 1 :व्यापारी की पत्नी की कथा
किसी समय काशी नगरी में एक व्यापारी और उसकी पत्नी रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसी कारण व्यापारी की पत्नी हमेशा दु:खी रहती थी। एक दिन उसे किसी ने कहा कि यदि वह संतान चाहती है तो उसे किसी जीवित बच्चे की बलि भैरव को चढ़ाना होगी। उसने यह बात अपने पति से कही, लेकिन पति को यह बात जरा भी पसन्द नहीं आई।
चूंकि उसकी पत्नी को संतान की बहुत अधिक लालसा थी, इसलिए उसने पति से छुपाकर और अच्छे-बुरे की परवाह किए बिना एक बच्चा चुराकर उसकी बलि भैरव बाबा को दे दी। इसका गंभीर परिणाम हुआ और व्यापारी की पत्नी को कई रोग हो गए। पत्नी की यह हालत देख व्यापारी दु:खी था। उसने इसका कारण पूछा तो पत्नी ने बताया कि बच्चे की बलि के कारण उसकी यह हालत हुए है। यह सुनकर व्यापारी को बहुत क्रोध आया, लेकिन पत्नी की हालत से वह दु:खी था। इसलिए उसने उपाय बताया कि वह इस पाप से मुक्ति के लिए गंगा स्नान करे और सच्चे मन से ईश्वर से प्रार्थना करे। व्यापारी की पत्नी ने कई दिनों तक यह किया।
इससे प्रसन्न होकर गंगा माता ने एक बूढ़ी औरत के रूप में व्यापारी की पत्नी को दर्शन दिए और कहा कि उसके शरीर के सारे रोग दूर हो जाएंगे, यदि वह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वृंदावन में व्रत रखकर आँवले के वृक्ष की पूजा करे। व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि-विधान से आँवला नवमी का व्रत-पूजन किया। इससे शीघ्र ही उसके सभी कष्ट दूर हो गए और उसे एक स्वस्थ व सुन्दर संतान की प्राप्ति हुई। इसी दिन से महिलायें सुख-सौभाग्य, रोग मुक्ति और उत्तम संतानसुख की प्राप्ति के लिए आँवला नवमी का व्रत करती हैं।
आँवला नवमी कथा – 2 : राजा रानी के सत की कथा
एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आँवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आँवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहु ने सोचा कि राजा इतने सारे आँवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बन्द कर देना चाहिए।
बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गये। राजा रानी आँवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जायेगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग -बगीचे सब बना दिए और ढेरों आँवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।
राजा रानी से कहने लगा – रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाये, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आय। आओ नहा धोकर आँवले दान करें और भोजन करें। राजा रानी ने आँवले दान करके खाना खाया और खुशी- खुशी जंगल में रहने लगे।
उधर आँवला देवता का अपमान करने व माता पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहु बेटे के बुरे दिन आ गए। राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुँचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे बहु सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मलिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना।
एक दिन बहु ने सास के बाल गूँथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आँवले दान करने से रोका था की हमारा धन नष्ट हो जायेगा। आज वे लोग न जाने कहाँ होंगे ? यह सोचकर बहु को रोना आने लगा और आँसू टपक-टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरन्त पलट कर देखा और पूछा की , तू क्यों रो रही है ?
उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आँवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कही चले गए। तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे बहु को समझाया की दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे बहु भी अब सुख से राजा रानी के साथ रहने लगे।
हे भगवान ! जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते सुनते सारे परिवार का सुख रखना।
पूजन सामग्री
आँवले का पौधा, फल, तुलसी के पत्ते एवं तुलसी का पौधा, कलश और जल, कुमकुम, सिंदूर, हल्दी, अबीर-गुलाल, चावल, नारियल, सूत, धूप-दीप, श्रृंगार का सामान और साड़ी-ब्लाउज, दान के लिए अनाज।
पूजन विधि
प्रात:काल स्नान कर आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें। दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें।
संकल्प के बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ‘ॐ धात्र्यै नम:‘ मंत्र से आह्वानादि षोडशोपचार पूजन करके आँवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आँवले के वृक्ष की आरती करें।
अब पूजन की कथा कहें एवं सभी महिलायें इक्कट्ठा होकर कथा सुनें। पूजा के बाद पेड़ की कम से कम सात बार परिक्रमा करें, तभी सूत भी लपेटे। वैसे मान्यता है कि जो भी इस दिन आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। परिक्रमा के समाप्त होने पर फिर वहीं पेड़ के नीचे अथवा पास में बैठकर भोजन करें। ऐसी मान्यता है की इस परम्परा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी।
इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी माँ ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आँवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को।
आँवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर माँ लक्ष्मी ने आँवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परम्परा चली आ रही है।
इस दिन किसी गरीब अथवा ब्राह्मण महिला को श्रृंगार का सामान एवं साड़ी-ब्लाउज दान करें एवं दक्षिणा दें। इस दिन अपने सामर्थ्य अनुसार गरीबों को अनाज का भी दान करें।
आँवला नवमी का महत्व
1. मान्यता है कि जो व्यक्ति आँवला नवमी या अक्षय नवमी का व्रत रखता है अथवा पूजा करता है उसे असीम शांति मिलती है। उसका मन पवित्र होता है और वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसलिए उसे बार-बार जन्म लेने की आवश्यकता नही होती है। वह अपने लक्ष्य को भली-भांति समझता है।
2. जो महिलायें आँवला नवमी की पूजा करती हैं उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। वह दीर्घायु होता है और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। वह अपने वंश का नाम रोशन करने वाला होता है। इसके अतिरिक्त इस पूजा से घर का वंश भी बढ़ता है।
3. कहते हैं आँवला नवमी की पूजा से पति-पत्नी के बीच रिश्ता बहुत ही मधुर होता है। दोनों के बीच आपसी तालमेल बहुत अच्छा रहता है। इसका एक वैज्ञानिक फायदा भी है। कहा जाता है कि ये आँवले के सेवन से गरिष्ठ भोजन जल्दी पच जाता है।
4. आँवला नवमी के दिन आँवले के पेड़ के नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन भोजन करते समय यदि आपकी थाली में आँवला या उसका पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ संकेत होता है। माना जाता है कि इससे आप वर्ष भर स्वस्थ्य रहेंगे।
5. अक्षय नवमी को कार्तिक शुक्ल नवमी भी कहते हैं। इसी दिन द्वापर युग का भी आरम्भ हुआ था। इसके अतिरिक्त इस दिन भगवान विष्णु ने कुष्माँडक नामक असुर का वध किया था। तभी उसके रोम से कुष्माँड नामक बेल उत्पन्न हुई थी। इसलिए इस इस बेल का दान करने से बेहतर परिणाम मिलते है।
लेख स्त्रोत : श्रीजी की चरण सेवा
Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,
Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com