24 फरवरी 1568 ई. को वीर कल्ला राठौड़, वीर जयमल राठौड़, रावत साईंदास जी चुंडावत समेत हज़ारों राजपूतों ने चित्तौड़ दुर्ग की दीवारों को अपने व शत्रुओं के लहू से लाल कर दिया। मुगल बादशाह अकबर के जीवनकाल में उसने कभी ऐसी लड़ाई न देखी।
सभी बलिदानियों को शत शत नमन…
25 फरवरी 1568 ई. को रावत पत्ता चुण्डावत के बलिदान के बाद अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग में कत्लेआम का हुक्म दिया।चित्तौड़ के लोग मन्दिरों व मकानों के बाहर तलवार, भाले, पत्थर वगैरह लेकर खड़े हो गए और बादशाही सैनिकों पर वार किए।
अकबर ने दुर्ग में 30,000 नागरिकों को मरवाया व बाकि बचे 10,000 को दास बना कर ले गया।अबुल फजल लिखता है “चित्तौड़ की रअय्यत लड़ाकू थी, इसलिए शहंशाह ने कत्लेआम का हुक्म दिया”। काल्पी के 1000 अफगानों में कईं तो कत्ल हुए और कईंयों ने चालाकी से अपने ही बाल-बच्चों को बांधकर दुर्ग से बाहर निकलने की तैयारी की | मुगलों ने इन्हें मुगल समझकर नहीं रोका और ये बचने में कामयाब रहे | अबुल फजल के अनुसार “शहंशाह के हुक्म से काल्पी के बचे-खुचे अफगानों के सर काटकर उनका ढेर लगाया गया”।
किले में तीन जगह शवों का ढेर सबसे ज्यादा लगा व यहां हजारों लोग और सैकड़ों राजपूतों ने बलिदान दिए :-
- राणा के महल में (ये महल वर्तमान में महाराणा रतन सिंह जी के महल कहलाते हैं)।
- रामपोल दरवाजे पर : रावत पत्ता चुण्डावत इसी दरवाजे से कुछ दूरी पर कई राजपूतों समेत काम आए थे। बारिकी से निरीक्षण करने पर रामपोल दरवाजे पर खून के दाग आज भी देखे जा सकते हैं।
- महादेव मन्दिर में (इस मंदिर की पहचान नहीं हो पाई है)।
मुगलों ने कालिका माता के प्राचीन मन्दिर को काफी नुकसान पहुंचाया था। साथ ही साथ कईं मन्दिर ध्वस्त कर दिए गए और कईयों की तो आज तक मरम्मत नहीं हुई है। चित्तौड़ दुर्ग में आज भी कईं मन्दिरों के शिखर नहीं है।
सभी बलिदानियों को शत शत नमन…..
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
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