“453 वर्ष पूर्व आज ही के दिन हुआ था चित्तौड़ का तीसरा जौहर”
23-24 फरवरी की अर्द्धरात्रि, 1568 ई.
इस जौहर का नेतृत्व रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी फूल कंवर जी ने किया
ये जौहर दुर्ग में 3 अलग-अलग स्थानों पर हुआ –
1) रावत पत्ता चुण्डावत के महल में
2) साहिब खान जी के महल में
3) ईसरदास जी के महल में
(फोटो में रावत पत्ताजी का महल दिखाया गया है, जो अब तक काला है)
अबुल फजल लिखता है “हमारी फौज 2 दिन से भूखी-प्यासी होने के बावजूद सुरंगों को तैयार करने में लगी रही। इसी दिन रात को अचानक किले से धुंआ उठता नजर आया। सभी सिपहसालार अंदाजा लगाने लगे कि अंदर क्या हुआ होगा, तभी आमेर के राजा भगवानदास ने शहंशाह को बताया कि किले में जो आग जल रही है, वो जौहर की आग है और राजपूत लोग केसरिया के लिए तैयार हैं, सो हमको भी तैयार हो जाना चाहिए”
रावत पत्ता चुण्डावत की आंखों के सामने उनकी माता सज्जन कंवर, 9 पत्नियों, 5 पुत्रियों व 2 छोटे पुत्रों ने जौहर किया।
दुर्ग में जौहर करने वाली कुछ प्रमुख राजपूत वीरांगनाओं के नाम इस तरह हैं –
चित्तौड़ के तीसरे जौहर के प्रमाण स्वरुप भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने समिद्धेश्वर मन्दिर के पास सफाई करवाई तो राख और हड्डियां बड़ी मात्रा में मिलीं
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
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