पंडित बाबा का फिदाईन बदला
पंडित बाबा का फिदाईन बदला
तासीर मोहम्मद रसूख वाले आदमी थे उनके मजहब में उनकी चर्चा थी। जलसा हो या मज़लिस हर जगह उनकी धाक होती थी, पैसे वाले भी थे इकलौते बेटे का निकाह था पूरा मजमा गया था बारात में।
नब्बे दशक की कहानी है तब बरात या तो पैदल या तो साइकिल से जाती थी! रसूख वालों की बारातें बसों में जाया करती थी। बारात भिंड से चलकर मुरैना आई थी।. भाईजान का निकाह था बिल्कुल “अज़ीम ओ सान शहंशाह” मरहबा वाला माहौल था। तो मुर्ग मुसल्लम सालन बड़े छोटे में कोई कमी न थी।
अब मियां भाई के निकाह में दही चूड़ा तो चलेगा नहीं दुर्भाग्यवश उस बरात में एक “पंडित” जी भी शामिल थे जनेऊधारी टीका धारी पंडित जी जो नॉनवेज खाना तो दूर उसकी महक भी नहीं लिए होंगे जीवन में कभी।
हालांकि वह बिना निमंत्रण के आए थे मजबूरी में आए थे अपनी रोजी रोटी के चक्कर में बारात आए थे उस बस के ड्राइवर थे जिस बस में नब्बे मोमिन सवार होकर बरात आए थे।
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कहानी अब शुरू होती है रात को जश्न शराब और शबाब के नशे में धुत मजहब के मुजाहिदों ने पंडित जी को जबरजस्ती सालन और मांस के टुकड़े खिला दिए।
निरीह बामन भीख दया की भीख मांगता रहा, फफकता रहा।
गरीब ब्राह्मण बड़ा खुदरंग में होता है हो भाई, वह मिट जाना पसंद करता है परंतु अगर उसने कभी वेद छुआ भी है तो अपने धर्म सिद्धांत से कभी समझौता नहीं करता।
पंडित जी की आंखों में बदले की आग जल रही थी सुबह बरात वापसी थी पंडित जी की बस सोन नदी को पार कर रही थी और फिर उसके बाद जो हुआ वह भिंड और मुरैना के इतिहास में दर्ज है।
पंडित बाबा फिदाईन बन गए उन बारातियों के साथ पूरी बस नदी में गिरा दी……
दुलहा बाबू भी जन्नत देखे बिना ही दुनिया से रुख़सत हो गये।
और उन्होंने उस बस के कंडक्टर से पहले ही नीचे उतर जाने को कहा था। उनमें से सिर्फ वही कंडक्टर बचा था जीवित। कईयों का जनाजा भी नहीं निकल पाया था क्योंकि नदी में पार्थिव शरीर भी नहीं मिला।
बाद में उस सहचालक ने पूरी कहानी बताई क्योंकि वो सहचालक ही बस का मालिक था, और पंडित ने उसका नमक खाया था! और उनका नाम था मोहम्मद ज़मील! ज़मील ने ये पूरी वारदाद रोते रोते बताइ थी पुलिस को की रात में क्या हुआ।
अब सेक्युलर सेकुलर मन में यह सवाल उठता है कि चार पांच लफंगो की उद्दंडता के लिए इतना बड़ा अपराध सब को मौत के घाट उतार देना कहां का न्याय है! तो बैठ जाइए एक गिलास पानी पीजिए और आराम से सोचिए जब रात में ये उद्दंड लोग एक सिद्धांत वादी व्यक्ति के मुंह में सालन पेल रहे थे तो बचे हुए अस्सी लोगों ने इसका विरोध क्यों नहीं किया?
सनद रहे:
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध
सीता हरण एक मात्र रावण की करनी थी पर भुगता पूरा लंका!


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