Join Adsterra Banner By Dibhu

श्री सत्यनारायण कथा पूर्णिमा के दिन क्यों सुनते हैं

0
(0)

आमतौर पर देखा जाता है किसी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्रीसत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गये यज्ञ के बराबर माना जाता है । शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसेके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं । स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं । इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है ।

पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है । कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है । जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें । विशेष लाभ होगा । पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं।

सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है, बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है।

केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें।

भगवान तो बस भाव के भूखे हैं । मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी । इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है । तो जब भी मौका मिले भगवान की कथा सुने और सुनाएं ।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दर्भ

पुराकालमें शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे। ऋषिगण महर्षि सूत से प्रश्न करते हैं कि लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत शौनकादिऋषियों को बताते हैं कि ऐसा ही प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है, वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार में सुखसमृद्धि की प्राप्ति सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरणका अर्थ है ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।

सत्यनारायण व्रत कथा के पात्र दो कोटि में आते हैं, निष्ठावान सत्यव्रतीएवं स्वार्थबद्धसत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुखनिष्ठावान सत्यव्रतीथे। इन पात्रों ने सत्याचरणएवं सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरके लौकिक एवं पारलौकिक सुखोंकी प्राप्ति की।

शतानन्द अति दीन ब्राह्मण थे। भिक्षावृत्ति अपनाकर वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपनी तीव्र सत्यनिष्ठा के कारण उन्होंने सत्याचरणका व्रत लिया। भगवान सत्यनारायण की विधिवत् पूजा अर्चना की। वे इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ (इस लोक में सुखभोग एवं अन्त में सत्यपुरमें प्रवेश) की स्थिति में आए।

काष्ठ-विक्रेता भील भी अति निर्धन था। किसी तरह लकडी बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। उसने भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सत्याचरणकिया; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की।

राजा उल्कामुखभी निष्ठावान सत्यव्रतीथे। वे नियमित रूप से भद्रशीला नदी के किनारे सपत्नीक सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकरते थे। सत्याचरणही उनके जीवन का मूलमन्त्र था।

दूसरी तरफ साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वजस्वार्थबद्धकोटि के सत्यव्रती थे। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होकर इन दोनों पात्रों ने सत्याचरणकिया ; सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकी।

साधु वणिक की सत्यनारायण भगवान में निष्ठा नहीं थी। सत्यनारायण पूजार्चाका संकल्प लेने के उपरान्त उसके परिवार में कलावतीनामक कन्या-रत्न का जन्म हुआ। कन्याजन्मके पश्चात उसने अपने संकल्प को भुला दिया और सत्यनारायण भगवान की पूजार्चानहीं की। उसने पूजा कन्या के विवाह तक के लिए टाल दी। कन्या के विवाह-अवसर पर भी उसने सत्याचरणएवं पूजार्चासे मुंह मोड लिया और दामाद के साथ व्यापार-यात्रा पर चल पडा। दैवयोग से रत्नसारपुरमें श्वसुर-दामाद के ऊपर चोरी का आरोप लगा। यहां उन्हें राजा चंद्रकेतुके कारागार में रहना पडा। श्वसुर और दामाद कारागार से मुक्त हुए तो श्वसुर (साधु वाणिक) ने एक दण्डीस्वामीसे झूठ बोल दिया कि उसकी नौका में रत्नादिनहीं, मात्र लता-पत्र है। इस मिथ्यावादनके कारण उसे संपत्ति-विनाश का कष्ट भोगना पडा। अन्तत:बाध्य होकर उसने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। साधु वाणिकके मिथ्याचार के कारण उसके घर पर भी भयंकर चोरी हो गई। पत्नी-पुत्र दाने-दाने को मुहताज। इसी बीच उन्हें साधु वाणिकके सकुशल घर लौटने की सूचना मिली। उस समय कलावतीअपनी माता लीलावती के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजार्चाकर रही थी। समाचार सुनते ही कलावतीअपने पिता और पति से मिलने के लिए दौडी। इसी हडबडी में वह भगवान का प्रसाद ग्रहण करना भूल गई। प्रसाद न ग्रहण करने के कारण साधु वाणिकऔर उसके दामाद नाव सहित समुद्र में डूब गए। फिर अचानक कलावतीको अपनी भूल की याद आई। वह दौडी-दौडी घर आई और भगवान का प्रसाद लिया। इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया।

लगभग यही स्थिति राजा तुंगध्वज की भी थी। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। राजसत्तामदांध तुंगध्वज न तो पूजास्थलपर गए और न ही गोपबंधुओंद्वारा प्रदत्त भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसीलिए उन्हें कष्ट भोगना पडा। अंतत: बाध्य होकर उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजार्चा की और सत्याचरणका व्रत लिया।

सत्यनारायण व्रतकथाके उपर्युक्त पांचों पात्र मात्र कथापात्रही नहीं, वे मानव मन की दो प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। ये प्रवृत्तियां हैं, सत्याग्रह एवं मिथ्याग्रह। लोक में सर्वदाइन दोनों प्रवृत्तियों के धारक रहते हैं।

इन पात्रों के माध्यम से स्कंदपुराण यह संदेश देना चाहता है कि निर्धन एवं सत्ताहीनव्यक्ति भी सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ हो सकता है और धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रहीहो सकता है। शतानन्दऔर काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन और सत्ताहीनथे। फिर भी इनमें तीव्र सत्याग्रहवृत्ति थी। इसके विपरीत साधु वाणिक एवं राजा तुंगध्वजधन सम्पन्न एवं सत्तासम्पन्न थे। पर उनकी वृत्ति मिथ्याग्रही थी। सत्ता एवं धनसम्पन्न व्यक्ति में सत्याग्रह हो, ऐसी घटना विरल होती है। सत्यनारायण व्रतकथा के पात्र राजा उल्कामुख ऐसी ही विरल कोटि के व्यक्ति थे।

पूरी सत्यनारायण व्रतकथा का निहितार्थ यह है कि लौकिक एवं परलौकिकहितों की साधना के लिए मनुष्य को सत्याचरणका व्रत लेना चाहिए। सत्य ही भगवान है। सत्य ही विष्णु है। लोक में सारी बुराइयों, सारे क्लेशों, सारे संघर्षो का मूल कारण है सत्याचरणका अभाव।

सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका में इस संबंध में श्लोक इस प्रकार है :

यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:। विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।

केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच। सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।

नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:। भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।

अर्थात् सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है। कलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायीहोती है। सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपीविष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे।

Read Shri SatyaNarayan Story, Pooja Procedure and Arati on following link:

श्री सत्यनारायण कथा, पूजन विधि एवं आरती

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः