श्री कानिफनाथ चालीसा
श्री कानिफनाथ चालीसा
॥दोहा॥
वन्दौ पद गणराज के विघ्नहर्ता करतार।
देउ मोहे सन्मति शारद नाम आधार।।
ओम नमो आदेश गुरुजी परब्रम्ह अवतार।
तोर दास चालीसा रटे कर लिजो स्वीकार।।
॥चौपाई॥
जय जय कानिफनाथ कपाली । सदा करो भक्तन रखवाली।।१।।
नव योगेश्वर प्रबुद्ध योगी। उपदेशत निमी उध्दव जोगी।।२।।
भगवी कफनी विखुरे केषा ।धरि मेखला अदभूत वेशा।।३।।
भाल चंद्रमा सोहत भारी कानन कुंडल खप्पर धारी।।४।।
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त्रिशुल डमरु कर मा साजे। अलख नाद का चिमटा बाजे।।५।।
जती जालंधर के मन मोह्यो। आदीनाथ दत्तात्रय भायो।।६।।
रुप मनोहर सुवर्ण कांती ।कमलनयन मिटावत भ्रांती।।७।।
नारी राज्य प्रभु शिष्य उतारे। हनुमत् मुर्छित किये सकारे।।८।।
नाथ मछंदर धरे कसोटी। तब तुम भये विरक्तता मुर्ती।।९।।
शिव गोरख तुम राह दर्शाए। गुरुस्थान अदभुत दिखलाए।।१०।।
अरि जब संकट सुत पर छाइ। सेवा मे मैनावती आयी।।११।।
आप जालंधरनाथ सवारे। गोपीचंद कु प्राण उबारे।।१२।।
लइ शिव आज्ञा अघोर सुधारे। तंत्र जगत के तुम रखवारे।।१३।।
भाव भगत का जब चढे पारा। तब देह मे प्रभु तुम संचारा।।१४।।
कुंडलिनी तुम जागर करते। बढे भक्ती प्रत्यक्ष हो जाते।।१५।।
ध्वज काठी को देते कंधा। यमदुतो का चले ना धंदा।।१६।।
भस्म आभुषण कुंडल धारी। चौसठ जोगण आज्ञाकारी।।१७।।
कनकासन अरु झालर धरता। सिर सोने का छत्र है फिरता।।१८।।
कर्णपिशाची छिन्नमा काली। बावन वीर तुम सिध्द कराली।।१९।।
मंत्र साधना जग को देते। घोर अघोर तुम्हीको पुजते।।२०।।
सुर नर मुनी आरती उतारे। जय जय कानिफनाथ उचारे।।२१।।
डालीबाई की कसी परिक्षा। भये प्रकट दी पंथ की दिक्षा।।२२।।
क्रुष्णाजीन का जनेऊ साजे। त्रिभुवन किर्ती आपकी गाजे।।२३।।
शिष्य सातसो कटक भारी। पुरण योगी ब्रम्हचारी।।२४।।
जब तुम रुप धरे वीकराला । दुश्मन दल क्षण मे संहारा।।२५।।
संकट आफत आए भोगी। रक्ष रक्ष शिव कानिफ योगी।।२६।।
भुत प्रेत खल डाकण शाकण। सब भागे जब तुमको ध्यावत।।२७।।
अश्व श्वान अरु गज दल चाले। राजयोग प्रभु सुंदर भाले।।२८।।
माथे पगडी सोहत न्यारी। स्वर्ण मुकुट प्रभु सोहत प्यारी।।२९।।
स्वर्ण पादुका रजत पालखी। राजयोग हठयोग सारथी ।।३०।।
सदा भरा भंडार तुम्हारा । फिर मै क्यु दारिद्रय से मारा।।३१।।
रोट चुरमा तुमको भावे। निशदीन सेवक भोग लगावे।।३२।।
जय जय कानिफ दीन दयाला। सदा करो भक्तन प्रतिपाला।।३३।।
भक्तीसार है ग्रंथ निराला । भक्तन चित्त करत उजियारा।।३४।।
विधिवत जो पारायण करते। तिनके कार्य नाथजी करते।।३५।।
विकल ह्रदय से जो भी पुकारे। भस्म से भस्म करे दुख सारे।।३६।।
नाथ नाम जो तुम्हारा जपते। शत्रू भी उनके नाम से डरते।।३७।।
जो यह पढे कानिफनाथ चालिसा। कारज सिध्द करे जगदीशा।।३८।।
कहत ओम चालीसा स्विकारो। अंतर सोहsम अलख जगाओ।।३९।।
इष्ट आप्त प्रभु आपण माना। जयत विजय कानिफ भगवाना।।४०।।
॥दोहा॥
कुंडल झोली मेखला धरिया भगवा वेष।
भक्तन कारज सिध्द करो हरिकानिफ आदेश।।
नित्य चालिसा जो पढे पाठ करे चालीस।
द्रष्टी तीनपर सदा रखे मढी के श्री जगदीश।।
सिध्दयोगी महाबाहौः योगीराज परम तपः
भक्तवत्सल दयानिधे श्री कानिफनाथं शरणं प्रपद्ये
आदेश आदेश जय गुरूदेव आदेश


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