श्री गऊ माता चालीसा1 -जय गऊ माता ज्ञान दायनी
॥दोहा॥
श्री गौ मात का ध्यान धरु चित माय।
सुमिरन से गौ चालीसा प्रभु कृपा हो जाय।।
गौरी गणेश सर्व देव सकल सम हो जाये।
गौ माँ की कृपा से श्री हरि चरण रज पाये।।
॥चौपाई॥
जय गऊ माता ज्ञान दायनी । सकल कर्म शुभ प्रदायनी ।।
सूंदर रूप मनोहर शरीरा । पूजन से हरई सब पीरा ।।
चारो वेदों ने महिमा गाई । सबहि ग्रंथो में जिनकी प्रभुताई ।।
सर्व देव वासनी कहलायी । पूजहि जो सब सिद्धि पाई ।।
कपिला गोतमी सुरभि नामा । नव दुर्गा का रूप हो श्यामा ।।
गौ माता की सकल प्रभुताई । श्री गंगा गीता गायत्री गाई ।।
गौ धूली जो लगाये माथा । कृपा करहि उन पर रघुनाथा ।।
कामधेनु जो यज्ञ करवाये । धर्म सम्पदा वंश बढ़ा बढ़ाये ।।
सहस्त्र रश्मि भानु से आई । तीन रश्मि गौ में समाई ।।
पावन दूध धृत अमी सामना । गौमूत्र औषध सब जग जाना ।।
गौ सेवा जो करे नर नारी । मंगल करे उनका त्रिपुरारी ।।
जग माता गौ कहलायी । विश्वधरा में जिनकी प्रभुताई ।।
सबहि धर्म की है गौ माता । पूजहि मंगल करे विधाता ।।
गौ रूप में आई जगदम्बा । पूजन से खुश होवे अम्बा ।।
कृष्ण मोहन के उर में समाई । जानहि सब देव प्रभुताई ।।
गोरी गणेश की कृपा पावे । जो श्री गौ माता को ध्यावे ।।
सकल विकार और दुःख हरणी । मंगल कारज सब सुख करणी ।।
सूर्य चंद्र है नेत्र जिनके । शितलता की मूर्ति इनमे ।।
ध्यान धरे जो सुबह श्यामा । सिद्ध होवे सब उनके कामा ।।
अज्ञानी को कर दे ज्ञानी । नारद शारद ऋषि सब मानी ।।
होवे घर कुबेर की कृपा । गऊ माता का आशीष सिर पा ।।
वैतरणी से पार लगावे । रौरव् नरक की पीड़ा हरावे ।।
गोपाष्टमी जो करते वंदन । खुश होवे उन पर बृजनंदन ।।
सकल दोष पीड़ा की हरणी । कर दे नर की सीधी करणी ।।
कल्पतरु सम इनकी सेवा । करहि सब कर्म शुभ देवा ।।
गौ मात सर्व वर प्रदायनी । गौ सेवा है धन दायनी ।।
गौ दुग्ध जो शिव लिंग पे चढ़ावे । द्वादश ज्योतिलिंग फल पावे ।।
करहि जो गौशाला की सेवा । हरे विघ्न सब गणपति देवा ।।
यमपुरी की पीड़ा छुड़ावै । साधक का सब दुःख हटावे ।।
गौ रक्षा जो करे नर नारी । प्रसन्न होत राधे कृष्ण मुरारी ।।
प्रदक्षिणा करे जो गौ माता की । पावे कृपा सीता राम हनुमान की ।।
सब तीर्थो का सार गौ माता । सब देवो का तुमसे नाता ।।
कुमति हरे सुमति कर देती । समस्त पितरो को तृप्त करती ।।
गौ कर्ण सुनहि नर की कठिनाई । शीघ्र कारज हल हो आई ।।
क्रूर ग्रहों की पीड़ा भगाई । जिस द्वार गौ मात है आई ।।
त्रिदेव भी करते है वंदन । गौ धूली का लगावे चन्दन ।।
नव दुर्गा का सार तुम्ही हो । नवधा भक्ति आधार तुम्ही हो ।।
ऋषि मुनि साधु करते वंदन । काटे जीव का सब भव बंधन ।।
समुद्र मंथन से प्रकट ही गौ माई । तेतीस करोड़ देवन आप समाई ।।
जिन यह गऊ चालीसा गाई । निश्चही वागीश भरत सदगति पाई ।।
॥दोहा॥
अजर अमर है माता गौ, पूजहि वृन्द सुजान ।
सकल देवो की पूज्यनीय , करहि सब कल्याण ।।
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