भारत का उत्थान कब होगा ?
व्यक्ति या देश-दोनों की उन्नति का एकमात्र स्रोत आध्यात्मिक शक्ति ही है।
मधुसूदन ओझा जी के अनुसार जब पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव अभिजित् नक्षत्र की दिशा में था तब भारत विश्व गुरु था, अतः इस नक्षत्र का स्वामी ब्रह्मा हैं। अभिजित से ध्रुव दूर हटने पर भारत का पतन आरम्भ हुआ। अभी पुनः उत्तरी ध्रुव अभिजित नक्षत्र की तरफ बढ़ रहा है। यह भारत की उन्नति का समय है।
भागवत पुराण के अनुसार जब सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति पुष्य नक्षत्र में एक राशि में होंगे तो कृत (सत) युग का आरम्भ होगा तथा शम्भल ग्राम में विष्णुयश के पुत्र कल्कि द्वारा दुष्टों का संहार होगा और प्रजा सात्विक हो जायेगी-भागवत पुराण, स्कन्ध १२, अध्याय २-
शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति॥।१८॥
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अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पतिः। असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्यगुणान्वितः॥१९॥
यदावतीर्णो भगवान् कल्किर्धर्मपतिर्हरिः। कृतं भविष्यति तदा प्रजासूतिश्च सात्विकी॥२३॥
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्ये बृहस्पती। एकराशौ समेष्यन्ति भविष्यति तदा कृतम्॥२४॥
१ अगस्त, २०३८ को भारतीय समय ९ बजे सूर्य, चन्द्र. बृहस्पति तीनों ग्रह पुष्य नक्षत्र तथा एक राशि में होंगे। तब भारत सबसे उन्नत होगा, किन्तु उसके पूर्व बहुत हिंसा होगी।
ब्रह्मा के अयनाब्द युग गणना के अनुसार १९९९ से त्रेता युग की सन्ध्या समाप्त हो कर मुख्य त्रेता आरम्भ होगा। महाभारत के अनुसार त्रेता में यज्ञ की उन्नति होती है। यज्ञ द्वारा अन्य यज्ञों के साधन सेही देव उन्नति के शिखर पर पहुंचते हैं।
अयनाब्द युग २४,००० वर्ष का है, जो ३१२,००० वर्ष के दीर्घकालिक मन्दोच्च चक्र तथा विपरीत दिशा में २६,००० वर्ष के अयन चक्र का योग है। इसका प्रथम भाग १२,००० वर्ष का अवसर्पिणी है। इसमें खण्ड युगों का क्रम है-सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि, जो ४, ३, २, १ के अनुपात में हैं। उसके बाद १२,००० वर्ष का उत्सर्पिणी काल होगा जिसमें खण्ड युग विपरीत क्रम से होंगे। यह जल प्रलय का वास्तविक चक्र है, जो विश्व इतिहास का दीर्घकालिक चक्र है। अवसर्पिणी त्रेता में जल प्रलय तथा उत्सर्पिणी त्रेता में हिमयुग होता है। अभी तृतीय अयनाब्द चल रहा है, जो वैवस्वत मनु से आरम्भ हुआ था।
प्रथम अयनाब्द-६१,९०२-३७९०२ ईपू.
द्वितीय अयनाब्द-३७९०२-१३९०२ ईपू.
तृतीय अयनाब्द-१३९०२ ईपू. से १०,०९९ ई. तक।
इसमें अवसर्पिणी १३९०२-१९०२ ई.पू. तक-सत्य युग-९१०२ ईपू. तक, त्रेता ५५०२ ईपू. तक, द्वापर ३१०२ ईपू. तक, कलि १९०२ ईपू. तक।
उत्सर्पिणी १९०२ ई.पू. से-कलि ७०२ ई.पू. तक, द्वापर १६९९ ई.पू तक (ईस्वी सन् में ० वर्ष नहीं है), त्रेता १६९९-५२९९ ई. तक, सत्य युग १०,०९९ ई. तक।
इस त्रेता में हिम युग होगा, पृथ्वी की प्रदूषण से गर्मी अल्पकालिक घटना है।
त्रेता में यन्त्र युग का आरम्भ हुआ, ३०० वर्ष की सन्ध्या १६९९ में समाप्त होने के बाद कम्प्यूटर तथा सञ्चार युग आरम्भ हुआ है, जो महाभारत के अनुसार है।
विधिस्त्वेष यज्ञानां न कृते युगे। द्वापरे विप्लवं यान्ति यज्ञाः कलियुगे तथा॥
त्रेतायां तु समस्ता ये प्रादुरासन् महाबलाः। संयन्तारः स्थावराणां जङ्गमानां च सर्वशः॥
(महाभारत, शान्ति पर्व, २३२/३१-३४)
यज्ञेनयज्ञमयजन्तदेवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥ (पुरुष सूक्त, १६)